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कुछ भी मांग लीजिये हमसे, आपके लिए सब कुछ कुर्बान है, बस एक जान मत माँगना हमसे, क्योंकि आप ही हमारी जान है। - DINESH KUMAR KEER
एक तो तेरी नजरों की छुअन, दूजी फागुन की तरंग। रोम-रोम में दौड़ी सिहरन, ज्यों प्रेम रंग लगने लगा अंग।। - DINESH KUMAR KEER
हमें अब उस रिश्ते की चाह नहीं जिस रिश्ते को हमारी परवाह नहीं ज़ेहन में जो उथल पुथल मचाता हो आँखें अब उसकी देखती राह नहीं ख़ुद ही संभाल लेंगे अब बिखरेंगे तो धोखे खाकर चाहिए अब सलाह नहीं पल पल ज़बान बदलने वाले के पीछे ज़िंदगी अब और करनी तबाह नहीं - DINESH KUMAR KEER
तेरे इश्क़ के झरने से मन को भिगोना है तेरे हर रंग से अबकी फागुन मनाना है - DINESH KUMAR KEER
कुछ को पा लिया, कुछ को छोड़ दिया। वक़्त मिला लम्हों में, यादों से जोड़ दिया।। - DINESH KUMAR KEER
फुर्सत मिली तो आयेंगे और पियेंगे ज़रूर सुना है चाय बनाती हो तो गली महक उठती है - DINESH KUMAR KEER
मेहनत बताती है कि परिणाम कैसा होगा, वरना परिणाम तो बता ही देगा मेहनत कैसी थी? - DINESH KUMAR KEER
अगर मेरे पास एक रुपया है, और आपके पास भी एक रुपया है। तथा हम एक-दूसरे से बदल लें, तो दोनों के पास एक-एक रुपया ही रहेगा। अगर मेरे पास एक विचार है, और आपके पास एक विचार है । और दोनों आपस में बदल लें, तो दोनों के पास दो-दो विचार होंगे। आश्चर्यजनक है न। इसलिये विचारों का आदान-प्रदान जारी रखिये । अपनी मानसिक पूंजी बढ़ाते रहिये। - DINESH KUMAR KEER
हमें किसी की बुराई करना क्यों अच्छा लगता है? क्यों हम अपने आप को ऐसी बातचीत का हिस्सा पाते हैं जहां किसी एक इंसान की बड़े उत्साह के साथ बुराई की जा रही हो? अक्सर हमारा रोमांच बहुत ज़ाहिर होता है जब हम दूसरे लोगों के साथ मिलकर किसी तीसरे को भला बुरा बोल पाते हैं। जितना हमें ऐसी गपशप में रस आता है उतना ही यह हमें दर्शाता है कि हमारी अपनी जिंदगी कितनी सूनी है। हमारे जीवन का खालीपन हम इन्हीं सस्ते रोमांच से भरते हैं। एक खरी जिंदगी जो जीवन की चुनौतियों से लड़ रही होती है, उसके पास रोमांच की कोई कमी नहीं होती। वहीं एक औसत जिंदगी जहां इंसान ने भले ही अपने आप को तरह-तरह के शारीरिक सुख दे रखे हों लेकिन एक मानसिक उत्तेजना की कमी उसको अक्सर खलती है। इसी उत्तेजना को पूरा करने के लिए वह अलग-अलग तरीके निकालता है। उन्ही में से एक तरीका होता है अपने मन की भड़ास निकालना। और यह भड़ास हमारे मन में भरती ही कैसे है? जो जीवन दबा हुआ होता है, घुटा हुआ होता है, जिसको एक आजाद अभिव्यक्ति नहीं मिल रही होती है वही अपने अंदर सौ मनमुटाव लेकर चलता है। जितना दबा हुआ, जितना सीमित, जितना कुंठित हमारा जीवन, उतना ही हमें दूसरे लोगों से मलाल रहता है। क्या दूसरों की बुराई वाकई में हमारी अपनी जिंदगी से चिड़चिड़ापन और शिकायत का एक जरिया नहीं है? जब हमारे व्यक्तित्व को कोई सृजनात्मक अभिव्यक्ति नहीं मिलती है तो मजबूरी वश वह अपने आप को छोटी चर्चाओं और बैठकों में ही अभिव्यक्त करता है। और इन बैठकों का मुद्दा अक्सर रसीला ही तब बनता है जब हम किसी तीसरे का मज़ाक बना सकें। हमारी बेरंग, हतोत्साहित और ऊबी हुई जिंदगी को रंग देने का हमारे पास इसके अलावा कोई और तरीका नहीं होता। हम अपनी चाहत से ऐसी बातचीत का हिस्सा नहीं बनते हम असल में विवश ही हैं ऐसा बर्ताव करने के लिए।
जीवन रूप अनेक हैं, जीवन रंग अपार | कोई देखे कुरुक्षेत्र यहाँ, कोई गीता सार || जीवन एक कुरुक्षेत्र है, रण भूमि या कर्म भूमि | जानो अपनी भूमिका तुम, हो महारथी, या हो सारथी || जैसा अपना साथ है, अंत यथोचित होता है | कहने को है भाग्य मगर, चुनाव हमारा होता है ||
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