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નિશાનતો બેઠું છે નિયત જગા એ ગોઠવ તું આંખોને બરાબર #બરાબર
हररोज कहने को कुछ हो।। ऐ मुमकिन नहीं है उदासियों को आवाज देने का काम अभी रुका सा है वो बनके जब कोई गीत गूंजेगी ,तुम भी सुनना। अभी तो ठहरी हुई है कहीं दूर जाके सांसो के तले उसे बहने के लिए सहारा चाहिए किसी दर्द का। कोई अल्फ़ाज़ शायद ही बयां कर पाए।। पर उसे तान पे लाना ही होगा।। जो रुका सा है उसे,नदी सा बनाना होगा।। एक गीत गाना होगा। Amit chavda(all rights reserved)
मैं चल रहा था या रात समजमें नहीं आया, मैंने भी अंधेरे निकाल लिए जेब से खुर्दरे सन्नाटे बज़्म में बैठने को बेक़रार थे दिन की टहेनी पे पक्की हुई रात को तोड़ के पूरी चूस जाने को जी चाहा।।।। पर रात टूट पड़ी मुझ पर चूसने लगी मुझे, मेरे अँधेरे ख्वाबो पर उजालो की सलवटें पड गईं फिर मैं भी मेरी उँगलियों पे चिपकी रोशनी चाटने लगा पर में पूरी तरह चाट न सका, उसकी बुँदे सरक के पहुँच जाती थी कोहनी तक।।। पर एक दो बूंद जो मुँह में गई, घुल गई मेरे अंदर के अंधेरे से गाढ़ा कर दिया मेरे अंदर के अंधेरे को । बस उसी रात से अंदर दिया जलाके बैठेते है ।।।।।।। अमित चावडा(all rights reserved)
#KAVYOTSAV मैं अपने गाँव से कब का निकल चुका काम की तलाशमें शहर की और ।।।।। पर अब भी उसके पेड़ की एक टहनी पे कहीं मेरी पतंग अटकी हुई है ना ..उसकी डोर आज भी उंगलियों में उलझी हुई है , निकलती ही नहीं.. मैं कब का भूल चुका उसे.. पर वो नदी हैं ना .. जिसमे स्कूल से भागकर हम तैरते रहते थे देर तक अब तो वो सुख चुकी है.. पर मेरे अंदर अब भी कहीं बहती रहती है मैं गांव छोड़ आया.. कभी भूल से भी आकाश की और नज़र जाती है ना.. चौंक जाता हूँ मैला लगता है आकाश यहाँ का ,इंसानो की तरहा और छोटा भी. मेरा गाँव छोटा था पर आकाश बहोत बड़ा हम छत पर से घंटो निहारा करते थे तारे.. तब हम भी बच्चे तारों जैसे,अब वो भी नज़र नहीं आते शायद कहीं और गये होंगे कमाने को... हम से गांव छूटा या गांव से हम ..पता नहीं वक़्त के पाँव है या पंख..पता नहीं बड़ी बड़ी होटलो में खाना खाते है पर जी नहीं बहेलता बचपन में खाई हुई मिट्टी ह्रदय के आसपास कहीं चिपकी हुई हैं। बूढा बरगद गिरा दिया गया अब उसकी जड़े निकलने का काम हमें मिला है जो खुद उखड़े उखड़े हुई है अपनी जड़ो से। सुना है वहाँ अब बच्चो के लिए जुले लगाये जायेगें । शहरो में तो बड़ी बड़ी बिल्डिंगे होती है, फिर भी न जाने कैसे उसकी हवा गाँव तक पहुँच जाती हैं । Amit chavda (ALL RIGHTS RESERVED)
#MKGANDHI ગાંધીજીનું જીવન ખરા અર્થમાં નિર્મળ જીવન રહ્યું,ગાંધી એ ક્યારેય સત્યના ગજને ટૂંકો ના થવા દીધો. જીવનમાં જે સત્ય જ્યારે પણ લાધ્યું એ એમણે પુરી પ્રામાણિકતાથી સ્વીકાર્યું.આ જીવન એક જ પોતડીમાં રહેનાર ગાંધીને જોઈએ ત્યારે ભારતમાં લાખો રૂપિયાની ગાડીમાં ફરતાં કોઈ સંત કરતાં એ ક્યાંય ઊંચી કોટીનો સંત લાગે.એમના અગિયાર જીવન મંત્રને આ જીવન એ વળગી રહ્યા..સત્ય, અહિંસા,ચોરી ના કરવી ,વણ જોતું ના સંઘરવું,સ્વાદ ત્યાગ અથવા સ્વાર્થ ત્યાગ,ને જાતે મહેનત કોઈ અડે નવ અભડાવું, એમની ચેતના પ્રેરણા આપતી રહશે. ગાંધી ખરેખર મહાત્મા છે..કોઈકે સાચું જ કહ્યું છે કે 'આટલાં ફૂલો નીચે અને આટલો વખત ગાંધી કદી સુતા નથી'
#KAVYOTSAV ख्वाब बो ना चाहता हूँ । झेलम की धड़कन तेज हो चली है बात वादियों तक चली है उगेगा आज जो आफ़ताब वो इन आँखों की चमक के सामने धुंधला सा लगेगा ये चमकता पहाड़ ,वो जंगल,ये बस्ती वो झीलें मगर क्या देखता मैं ??? वो नन्हा सा हांथोमे थामे किताबे पढ़ता रहा मेरी ही आंखे।। पर मुझे उगाना था ख्वाब जो सोया हुवा था वो अपने ही मुल्क में अपनों से खोया हुवा था ओढ़े हुवे था वो सारे इल्ज़ाम अपने ही किसीके शर्द मौसम भी काँप उठता गर सुनता ये किस्से रूह थरथराती रही घरमे सिकुड़े रातभर लो जलती बुझती रही आदतन अक्सर पर मैं एक ख्वाब बो ना चाहता हूं तू न मंदिर में जाए न नमाजी बने तू तू पैगाम इंसानियत का दे इंसान बने तू ये समा आसमाँ है तेरी आंखे है तारे, तू खुद एक नज़ारा तुझको वादियाँ निहारे तू झेलम की धड़कन तू दल का किनारा तू गांधी के चश्मे से देखे जो खुदको तू मैले से कुर्ते में लिपटा, भारत है सारा बंदूको की भाषा जो जाने वो कहाँ सुनते है कोई ज़बाने तू केसर की महेक है यार मेरे ,बांते न बारूद की माने खुशबू के पौधे से मैं गुलोचमन चाहता हू एक ख्वाब बो ना चाहता हू छूटे हुए खिलौने बैठे उदास कब से क्यों कोई हाथ उसे छूता नही जट्ट से डर के चेहरे पे में एक शिकन चाहता हूं एक ख्वाब बोना चाहता हूं स्कुलो,किताबो की दुनियामे खोया रहे तू ये कंचे,ये गिल्ली के खेलों में पिरोया रहे तू उलझी सी आंखों में सुलझी सी सूरत चाहता हूं एक ख्वाब बोना चाहता हूं फूटे पर तुझे भी उड़े आसमाँ से आगे तू औरो को जगाये और खुद भी जागे तितलियों के रंगों सा तेरा ठिकाना चाहता हु एक ख्वाब बोना चाहता हूं ये जन्नत ही है सदा रहे जन्नत चिनारों के पत्तो ने मांगी है मन्नत बनके बारिश तेरी उंगलियो को छूना चाहता हूं एक ख्वाब बो ना चाहता हूं परियो की कहानी सुनते ही आ जाये नींद तुझको तिलस्म के किस्से करते रहे हैरान तुझको बनाके कस्तियाँ झेलम में बहाना चाहता हूं मैं एक ख्वाब बो ना चाहता हूं गर ये ख्वाब उगे तो ।।।।।।।।।। हटने लगेंगे ये दुख के मंजर छटने लगेंगे ये काले बादल सारी पीड़ा हो जाएंगी छू सारे लफड़े फटाफट सुलझने लगेंगे ये काली राते न लंबी चलेगी तेरे कदमों के नीचे धूप की कालीन बिछेंगी फिर कोई काफ़िला गुजरेगा यहाँ से वो शायद यहीं कहेंगा *अगर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त । *(अगर दुनियामें कहीं स्वर्ग है तो फिर वो यहीं है यहीं है,यहीं है. ये किसी अज्ञात शायर का शेर है) Amit chavda. #kavyotsav
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