Quotes by Ala chouhan musafir in Bitesapp read free

Ala chouhan musafir

Ala chouhan musafir

@alachouhangmailcom


गिरते झड़ते पत्तो के बीच
लहलहाती है गेंहू की बालियां
चटक पिला रंग खिला है सरसो का
उतावला है पलाश
खिलने को आतुर है टेसू भी
महुआ भी बिखेरेगा महक़
मद मयी होगा वन सारा
नये बने है छत्ते मधु के भी
भिनभिना उठी है पवन यहाँ
कह रही प्रकृति लो बसन्त आ गया !

आला चौहान"मुसाफ़िर"

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खुद से किए वादों से अच्छा कुछ भी नहीं
दोस्तों में किताबों से अच्छा कुछ भी नहीं !

उसकी महक़ है अब भी सीने में मेरे
रखे सूखे गुलाबों से अच्छा कुछ भी नहीं !

उसे छूकर नापाक हो जाती मुहब्बत मेरी
दिल में नेक इरादों से अच्छा कुछ भी नहीं !

मेरे छालों से मेरे हौसले की पहचान करना
बहते पसीने के ख़्वाबो से अच्छा कुछ भी नहीं!

यहाँ ख़ुद को खींचकर चलना पड़ता है आला
उफनते सीने की आवाजों से अच्छा कुछ भी नहीं !

आला चौहान"मुसाफ़िर"

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हल, हथौड़ी, करनी और कुदाले दे दो !
लड़ना है सबसे बंदूकें और भाले दे दो !!

रोक लूँगा पश्चिम में डूबते सूरज को भी
धधकते सीने में अँगारे हाथों में मशाले दे दो !!

आला चौहान "मुसाफ़िर"

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चंद सिक्कों में, रही ज़िन्दगी
बन्द बोतल में, बंद है ज़िन्दगी

बड़ी ग़मज़दा, बड़ी है थकी
टिफ़िन के संग चल रही ज़िन्दगी

बस्तो किताबों के बोझ से दबी
बिखरें पन्नों में मसल रही ज़िन्दगी

खिड़की झांकती है भीतर मेरे
दर पे ताले सी जड़ी ज़िन्दगी

ज़िन्दगी ने है पूछा ज़िन्दगी से
क्या अब असल में रही ज़िन्दगी

~आला चौहान"मुसाफ़िर"

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"मिट्टी"
आ गया लौटमलोट होकर, मुझे और दूसरा कोई काम नहीं है भला क्या?
बस दिनभर तुम्हारे ही काम करती रहूं, कितनी बार समझाया है पर चिकने घड़े पर कोई असर नहीं होता !
जब देखो मिट्टी में नहाकर आ जाता है !
मेरे गाँव में हर माँ की यही रामकथा रहती थी मेरे बचपने में !
उस समय शहर का डामर रोड़ मेरे गाँव तक नहीं पहुँचा था ! खेलने के लिए चारो तरफ मिट्टी के बड़े-बड़े खुले मैदान हुआ करते थे !
सब बच्चे अपने-अपने मिटटी के घर बनाते, दादी-नानी पुराने कपड़ो को फाड़कर गुड्डा-गुड्डी बना देती थी जिसे मेरे गाँव की बोली में ढिंगला-ढिंगली कहकर बुलाया जाता ! उन बिना दीवारों और खुली छत वाले मिट्टी के घरों में उन गुड्डे-गुड्डो की शादीयाँ भी होती थी !
कुछ लड़के-लड़कियां उन गुड्डे-गुड्डो के माता-पिता और रिश्तेदारों का किरदार निभाते थे !
गांव के सारे बच्चे मिलकर खेलते रहते मिट्टी में, गीली काली चिकनी मिट्टी की बसें और कारे भी बनाते थे हम लोग, कुछ बच्चे तो खुले डाले वाले ट्रक भी बनाते और ख़ूब मिट्टी भर भर ढोते भी !
घर पर पड़ी पुरानी ईंटे भी हमारी मोटर गाड़ियां हुआ करती, सुखी मिट्टी पर ख़ूब दौड़ती हमारी ये मोटर-गाड़ियां और एक खास बात ये होती की सबकी मोटर की अपनी अलग सड़क होती !
स्कूल से आने के बाद ये हमारा रोज का काम था !
हम खेलते तो थे मिट्टी से किन्तु हमारी धुलाई हमेशा डंडे से ही होती थी !

आला चौहान

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कुत्ते की दुआ

काश इंसान भी इंसान के लिए दुआ करने लगे तो, सारी तकलीफें दूर हो जाए!
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