Ashvdhaama: Ek yug purush - 2 in Hindi Science-Fiction by bhagwat singh naruka books and stories PDF | Ashvdhaama: एक युग पुरुष - 2

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Ashvdhaama: एक युग पुरुष - 2

अभी तक आपने पढ़ा कि ये कहानी विज्ञान ओर पौराणिक का एक मिश्रण है ,एक ऐसा युग पुरुष जिसका जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ ,दर्द दुखों के बीच ।
ओर आपने पढ़ा कि श्री कृष्ण ने कैसे उस योद्धा को महाभारत युद्ध में उसके गलत परिणाम के कारण श्राफ दिया ,,।

फिर आपने पढ़ा कि उस युग पुरुष की तलाश लाखों साल बाद एक कलयुग के युग में उसको वापिस लाने की कोशिश करता है ।

अब आगे _______



           योगेश्वर अग्निवंश का रहस्य”

दिल्ली—रात के 2:17 बजे।
ISAR (Indian Scientific Advanced Research) की मुख्य इमारत में,
लैब-7 की रोशनी अब भी जल रही थी।

काँच की दीवारों के पीछे एक ऊँचा, तेज़ निगाहों वाला आदमी
माइक्रोस्कोप के नीचे रखे स्लाइड पर झुका हुआ था—
डॉ. योगेश्वर अग्निवंश। उसके माथे पर चिंता की लकीर साफ नजर आ रही थी ओर आंखों में विश्वास की ज्योत भी दिखाई दे रही थी ।
भारत का सबसे तेज दिमाग,,सरकार का भरोसेमंद वैज्ञानिक, योगेश्वर अग्निवंश 
और—
एक ऐसा व्यक्ति जो पुराणों को विज्ञान के साथ जोड़कर देखता था। 
लेकिन कभी कभी कुछ स्टॉप के लोगों को उसकी बाते अजीब सी लगती थी , हालांकि उसका सब सम्मान भी करते थे । 
उसने कई अच्छे अच्छे युवाओं को अच्छे पद पर भी पहुंचाया था जो आज भी उसके शिष्य है ।

वह खुद से बुदबुदाया—
“ये रक्त का कण… 5000 वर्ष पुराना जरूर है 
बल्कि सक्रिय है अभी भी किसी जगह पर 
यह सामान्य मनुष्य का नहीं हो सकता।”

उसकी उँगलियाँ काँप उठीं।
वह कई वर्षों से यह दावा करता आया था कि—
“अश्वत्थामा जीवित है।”
पर कोई उसकी बात पर भरोसा नहीं करता था।

आज सैंपल देखते ही उसका दिल धड़क उठा। ओर एक अजीब सी खुशी उसके चेहरे पर थी ,उसको फर्क नहीं पड़ता जब लोगो ने उसका मजाक बनाया क्योंकि उसको विश्वास जो था अपनी रिसर्च पर ,क्योंकि उसका मानना था कि इस धरती पर जो भी घटनाएं इतिहास में घटी है वो सब सत्य है लेकिन समय के साथ ओर समय की जरूरत के हिसाब से वो लुप्त होती है ।

क्योंकि जो भी धरती पर आया उसका जाना तय है जिसको कोई झुठला नहीं सकता है । फिर विज्ञान ही क्यों नहीं । 

             लैब का माहौल

पीछे खड़ा उसका जूनियर हेमंत हँस पड़ा—
“सर, फिर वही पौराणिक थ्योरी?
अश्वत्थामा, कर्ण, अमर योद्धा…?
सर, ये साइंस है, रामायण-टीवी सीरियल नहीं।”

दूसरा स्टाफ बोला—
“सर रात के 2 बजे तक पुराणों के पीछे भागते रहना ठीक नहीं…”
और हँसी की आवाज गूँज गई।

योगेश्वर ने पलटकर क्रोध से देखा—
“विज्ञान कल्पनाओं पर टिका होता है,
और कल्पनाएँ कभी-कभी इतिहास होती हैं…
बस हम समझ नहीं पाते।” ऐसा ही कुछ तुम्हारे साथ ही रहा है ,लेकिन दावा है मेरा की एक दिन सब मेरी बातों पर यकीन करेंगे ।

सब चुप।

वह अकेला था—
अपनी लैब में,
अपनी खोज में,
अपने विश्वास में।

              योगेश्वर का एकांत

लैब से बाहर निकला तो कॉरिडोर खाली था।
वह लिफ्ट में खड़ा छत की ओर देख रहा था।

“अश्वत्थामा…”
उसने धीर स्वर में कहा,
“तुम सच में हो… मुझे इसका प्रमाण मिल गया है।
केवल भारत ही नहीं—
पूरी दुनिया समझेगी पुराणों की शक्ति।” क्योंकि पुराण हमारी संस्कृति ही नहीं आत्मा भी है इस देश की , मै भी एक अग्निवंश कुल से हु ।

लिफ्ट के दर्पण में उसका चेहरा थका हुआ था।
दाढ़ी हल्की बढ़ी हुई, आँखों में नींद का अभाव—
वह पागल वैज्ञानिक नहीं था,
वह दूरदर्शी था…
जिसे दुनिया पागल समझती थी।

समय: रात्रि        घर 
         योगेश्वर का परिवार

घर का दरवाज़ा खोला तो
टेबल बल्ब की हल्की रोशनी में एक बच्चा बैठा पढ़ रहा था।

“पापा… फिर लेट?”
8–9 साल का लड़का, नाम—ओजस अग्निवंश।

योगेश्वर ने मुस्कुराकर उसके बालों पर हाथ फेरा—
“एक दिन… मैं तुम्हें अपनी रिसर्च दिखाऊँगा बेटा।
जो मैं खोज रहा हूँ,
वह दुनिया को बदल देगा।”

कमरे से पत्नी आयुषी निकली—
“योगेश…
कभी-कभी लगता है तुम किसी अदृश्य चीज़ का पीछा कर रहे हो। जो युग बीत चुका उसको वापिस लाने की कोशिश कर रहे हो ,,जो असंभव है योगेश ओर हा क्या 
तुम्हें डर नहीं लगता?”

योगेश्वर मुस्कुरा दिया—
“डर?
अगर अश्वत्थामा सच में मिला…
तो डर भी सीखने को मिलेगा।
और शायद… मुक्ति भी।” वो एक मात्र ऐसा योद्धा था महाभारत का जिसकी शुरूआत चाहे गुप्त थी लेकिन उसका योगदान इतना महत्वपूर्ण था कि महाभारत के युद्ध का परिणाम ही बदल दिया था ,, खैर तुम क्या जानो गीता पढ़ी होती तो पता होता । ओर हा तुम तो मेरा मजाक मत बनाया करो , स्टाफ ही काफी है इसके लिए ।
अब जाओ खाना बनाओ तब तक मै बेटे से अपनी रिसर्च पर दो बाते कर लेता हु ।


पत्नी कुछ नहीं बोली।
वह जानती थी—
यह आदमी किसी और सृष्टि में जीता है। 
रात का सब का खाना हो गया उसके बाद वो अपने लिए कुछ समय निकालता था उस समय उसको घर का कोई भी सदस्य डिस्टर्ब नहीं करते थे क्योंकि उसकी यही दिनचर्या थी ।

रात में सबके सो जाने के बाद
योगेश्वर अपनी अलमारी के पीछे छुपे छोटे दरवाज़े से नीचे उतरता है।

वहाँ—
एक गुप्त भूमिगत प्रयोगशाला थी।

यह लेब सरकार को भी पता नहीं,
सिर्फ़ योगेश्वर अग्निवंश को।

दीवारों पर लगे विशाल स्क्रीन,
पुराणों के पाठ,
DNA स्ट्रक्चर,
द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा की मूर्तियाँ,
एक नकली कुरुक्षेत्र मैप,
और लाखों नोट्स—

सालों की खोज इस कमरे में कैद थी।

वह फाइलें पलटते हुए बोला—
“अश्वत्थामा…
कृष्ण का श्राप…
अमरता…
युग-चक्र…
और… कल्कि अवतार।”

फिर उसने एक नक़्शे पर लाल निशान लगाया—
‘उत्तराखंड – घनघोर जंगल’।

“वहाँ एक अनदेखा, अनट्रेस्ड अस्तित्व देखा गया है…
क्या तुम वहीं हो, अश्वत्थामा?” मेरा यकीन है तो तुम मेरे पास अवश्य आओगे या मैं तुम्हे खोज लूंगा ।
(लंबे समय तक वो कुछ ना कुछ करने लगा कभी परेशान होता कभी हताश,फिर आराम से बैठ जाता ओर कुछ पल बाद पुरानी चीजें देख कर मिलान करता ) 

स्क्रीन पर अचानक बीप-बिप हुई।

Unknown Energy Signature Detected
Location: Himalayan Belt

योगेश्वर की आँखें चमक उठीं।

“हाँ…
तुम हो…हा तुम ही हो ,,,


समय: रात्रि का पहर 

दूसरी ओर—जंगल में Ashvathama

अश्वत्थामा रात के सन्नाटे में बैठा था।
उसका घाव हल्का-सा चमक रहा था।

वह फुसफुसाया—
“किसी ने मुझे ढूँढना शुरू कर दिया है…” ऐसा मुझे क्यों लग रहा है इतने सालों सदियों के बाद ऐसा क्यों लगा कि कोई है जो मुझे जगाने की कोशिश कर रहा ,,,ओर क्यों ?? 
आँखें सिकुड़ गईं—
“और यह शक्ति… इंसान की नहीं।
विज्ञान की गंध आ रही है।” ये मानव भी कितना ना समझ हो गया इस युग का उसको नहीं पता कि इसका परिणाम क्या हो सकता है ,, खैर ये जो भी है मुझ तक पहुंचने ओर मुझे आह्वान करने की ताक़त किसी आम आदमी में तो नहीं हो सकती ।
फिर कौन हो सकता है ???

वह उठा।
भारी कदमों की आवाज जंगल में गूँजने लगी।

“जो ढूँढ रहा है…
उसे तैयार रहना चाहिए।
मैं कोई कथा नहीं…अपने आप में 
एक युग हूँ।”

#क्या दोनों मिल पाएंगे,,या फिर योगेश्वर अग्निवंश को इसका परिणाम भयंकर भुगतना होगा ???



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लेखक भगवत सिंह नरूका ✍️ ✍️