यह एक ऐसी पौराणिक कथा है ।
यकीनन अपने अभी तक कही और कभी नहीं सुनी होगी ।
✨ प्रारम्भ
लगभग नौ हजार वर्ष पूर्व, जब पृथ्वी के ऊपर देवताओं का आशीर्वाद गहराई से बसता था, तब राजाओं के पास सिर्फ तलवारों की ताकत नहीं, बल्कि दैवी शक्तियाँ भी होती थीं। उस समय का हर राज्य मानो किसी पौराणिक गाथा का हिस्सा था।
🌍 पृथ्वी के उत्तरी भाग में फैला हुआ था नवंतरताल — झीलों, मंदिरों और पर्वतों से घिरा हुआ राज्य। यहाँ के राजा थे महाराज शौर्य तेज, जिनका नाम ही उनके व्यक्तित्व की तरह दमकता था। ऊँचा कद, शांत स्वभाव, और न्याय में अडिग। उनके राज्य की जनसंख्या लगभग ग्यारह लाख थी। लोग उन्हें देवता समान पूजते थे, क्योंकि कहा जाता था कि शौर्य तेज के हाथों में अग्नि की दैवी शक्ति थी — वे युद्ध में अपनी ऊर्जा से तलवार को ज्वाला बना देते थे 🔥⚔️
इसके दक्षिण में फैला था त्रिलोगढ़ राज्य, जिसके राजा थे यज्ञबर्धन। उनके नाम में “यज्ञ” इसलिए था क्योंकि वे बचपन से ही देवताओं की पूजा में तल्लीन रहते थे। उनके राज्य की जनसंख्या तेरह लाख थी, और वे विद्या, राजनीति और युद्धनीति में अद्वितीय माने जाते थे। वे वायु के स्वामी कहे जाते थे — अपनी दैवी शक्ति से वे पवन की दिशा बदल सकते थे, तूफ़ान को रोक सकते थे, या युद्ध के समय शत्रु के तीरों को हवा में ही मोड़ सकते थे 🌪️🏹
🌿 तीसरा राज्य — मेघवंती, जहाँ शासन करते थे महाराजा इंद्रवर्मा। यह राज्य हरियाली से भरा था, बादलों की तरह कोमल और विशाल। इंद्रवर्मा को वर्षा पर नियंत्रण प्राप्त था, इसलिए वहाँ कभी अकाल नहीं पड़ता था ☔
उनकी पुत्री — राजकुमारी अदित्या सौंदर्य और शालीनता की मूर्ति, साथ ही अत्यंत बुद्धिमान और करुणामयी थी 👸
🤝 मित्रता
शौर्य तेज और यज्ञबर्धन की मित्रता की कहानी युगों तक सुनाई जाती थी। दोनों ने बचपन से साथ शिक्षा पाई थी — धर्म, शास्त्र और युद्धकला में समान रूप से प्रशिक्षित।
लोग कहते थे —
✨ “अगर शौर्य तेज सूर्य हैं ☀️ तो यज्ञबर्धन चंद्रमा 🌙 — दोनों मिलकर ही आकाश को पूरा करते हैं।”
दोनों ने वचन लिया था कि किसी भी परिस्थिति में वे एक-दूसरे के विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाएँगे।
👑 स्वयम्वर
एक दिन महाराजा इंद्रवर्मा ने घोषणा की —
“मेरी पुत्री अदित्या अब विवाह योग्य हो चुकी है। मैं चाहता हूँ कि उसका स्वयम्वर इस धरती का सबसे महान पुरुष बने।”
निमंत्रण शौर्य तेज और यज्ञबर्धन को भी मिला।
दोनों राजा अपने अपने रथ पर चल दिए
यात्रा में यज्ञबर्धन ने कहा —
😄 “भाई शौर्य, सुना है इंद्रवर्मा की पुत्री अति सुंदर है।”
शौर्य हँसे — “मुझे तो बस यह देखने की इच्छा है कि कौन उसकी योग्य परीक्षा पार कर पाता है।”
पर यज्ञबर्धन के हृदय में एक अदृश्य प्रतिस्पर्धा जन्म ले चुकी थी 💢
स्वयम्वर में पचास से अधिक राजा उपस्थित थे 👑
तीन परीक्षाएँ हुईं — धनुर्विद्या 🏹, घुड़सवारी 🐎, बल परीक्षा 💪
अंतिम परीक्षा — “सत्य और संयम” — में शौर्य तेज ने सबका मन जीत लिया।
राजकुमारी ने स्वर्ण माला शौर्य तेज के गले में डाल दी 💐
सभा में जयघोष हुआ, पर उसी शोर में यज्ञबर्धन के भीतर तूफ़ान उठ चुका था 🌩️
वह अपमान और ईर्ष्या से भरकर वहाँ से चला गया —
“कभी-कभी नियति भी छल करती है, शौर्य।”
⚡ श्राप
शौर्य तेज और अदित्या का विवाह हो रहा था — संगीत, फूल, देवताओं का आशीर्वाद 🌸
तभी तेज़ हवा चली 🌬️
महल के द्वार अपने आप खुल गए 🚪
वहाँ प्रकट हुए — यज्ञबर्धन।
🔥 “तुमने वह पाया जो मेरा अधिकार था। सुनो मेरा श्राप —
तुम्हारी पहली और आखिरी संतान एक कन्या होगी।
जब वह दस वर्ष की होगी, तो गहरी नींद में चली जाएगी — ऐसी नींद जिससे वह कभी जाग नहीं सकेगी।
⚡ बिजली कड़की — यज्ञबर्धन विलीन हो गए।
उसी समय वृद्ध राजा सोमकेत आगे आए —
✨ “मैं श्राप मिटा नहीं सकता, पर हल्का कर सकता हूँ।
जब वह कन्या 25 वर्ष की होगी, तब एक ऐसा योद्धा आएगा जो यज्ञबर्धन को परास्त कर श्राप समाप्त करेगा।”
😢 राजकुमारी आन्या
पूर्णिमा की रात जन्मी — राजकुमारी आन्या 🌕
पिता का तेज, माँ की करुणा, दैवी अग्नि और वर्षा शक्ति — दोनों का संगम 🌸🔥
जब वह दस वर्ष की हुई —
शाम को इंद्रधनुष 🌈, रात को भयावह सन्नाटा ❄️
“माँ... मुझे बहुत नींद आ रही है...”
वह सो गई — और फिर कभी नहीं जागी 🕯️
राजा शौर्य तेज ने उसे देववन मंदिर में सुरक्षित रखा — अग्नि मंडल उसकी रक्षा करता रहा 🔥
समय बीतता गया। 25 वर्षों तक राजा हर दिन कहते —
“बस एक योद्धा... एक सच्चा हृदय चाहिए।”
⚔️ भविष्यवाणी का नायक
दूर अग्निमित्रपुर में एक युवक था — राजकुमार आर्यंत 🛡️
सच्चा, पराक्रमी और दयालु।
उसके जन्म पर कहा गया था —
“यह बालक पवन के स्वामी को पराजित करेगा और एक सोई हुई आत्मा को मुक्त करेगा।”
उसे अक्सर सपना आता — एक कन्या सो रही है, नीले फूल खिले हैं, पर अग्नि की दीवार उसे रोकती है 🔥🌸
नवंतरताल में सोई राजकुमारी की खबर मिली —
वह समझ गया — यही उसकी नियति है।
राजा शौर्य तेज उसे देखकर भावुक हुए —
युवक को देववन मंदिर ले जाया गया।
आर्यंत ने राजकुमारी को देखा —
💖 “यही है वह... जो हर रात मुझे बुलाती थी।”
🌩️ निर्णायक युद्ध
यज्ञबर्धन को पता चल गया — कोई योद्धा श्राप तोड़ने आया है।
उसने युद्ध छेड़ दिया ⚔️
आकाश में वज्र बरस रहे थे 🌩️
हवा शस्त्र बन गई 🌪️
अग्नि तलवार बन गई 🔥
कई दिनों तक युद्ध चला।
अंततः आर्यंत ने तलवार आकाश की ओर उठाकर प्रार्थना की —
“देवताओं, यदि यह धर्म का युद्ध है तो मुझे शक्ति दो।”
तलवार अग्नि से धधक उठी 🔥
एक ही वार में यज्ञबर्धन की तलवार टूट गई।
यज्ञबर्धन घुटनों के बल गिर पड़े —
👑 “यदि यही नियति है... तो मैं स्वीकार करता हूँ।”
✨ शाप का अंत
आर्यंत ने यज्ञबर्धन का मुकुट देववन मंदिर में राजकुमारी के चरणों में रखा 👑
रोशनी फैल गई 🌟
फूलों की वर्षा होने लगी 🌸
और राजकुमारी आन्या जाग उठी ❤️
“तुम वही हो... जो मेरे सपनों में आते थे।”
राजा शौर्य तेज ने आर्यंत को गले लगाया —
“तुमने मेरी बेटी के साथ मेरी ज़िंदगी भी लौटा दी।”
💍 विवाह और नया युग।
राजकुरी अन्या और राजा आर्यंत का
कुछ समय बाद नवंतरताल में भव्य विवाह हुआ 💐
इस बार यज्ञबर्धन भी आए — साधु के रूप में।
“जिस श्राप से यह कथा शुरू हुई थी, उसी प्रेम ने उसे समाप्त किया।”
तीनों राज्यों ने मिलकर नया युग शुरू किया —
🌅 “आर्यंतकाल”
जिस दिन श्राप टूटा, उसी दिन हर वर्ष राजकुमारी आन्या की मूर्ति पर फूल चढ़ाए जाते थे —
याद दिलाने के लिए कि हर नींद का अंत प्रेम से ही होता है। ❤️
sorty writer:-
...... Vikram kori