इंदौर शहर अपनी साफ़-सुथरी सड़कों, स्वादिष्ट पोहे-जलेबी और अपनत्व से भरे मोहल्लों के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक पुराना मोहल्ला था—गणेश नगर। यह मोहल्ला छोटा ज़रूर था, लेकिन यहाँ रहने वालों के दिल बहुत बड़े थे।
सुबह मंदिर की घंटी, मस्जिद की अज़ान, और शाम को बच्चों की खिलखिलाहट—सब मिलकर इस मोहल्ले को और चार चांद लगाते थे।
इसी मोहल्ले में पनपी एक सच्ची और सादगी भरी प्रेम कहानी,
**मोहल्ले का प्यार**।
आनंद इसी मोहल्ले में पला-बढ़ा था।
उसके पिता नगर निगम में क्लर्क थे और माँ एक गृहिणी। आनंद पढ़ाई में ठीक-ठाक था, लेकिन दिल का बहुत साफ़।
वह सुबह-सुबह अपने पिता के साथ मंदिर के सामने वाली चाय की दुकान पर बैठकर चाय पीता और मोहल्ले की खबरें सुनता।
उसे बड़े सपने देखने की आदत नहीं थी, बस इतना चाहता था कि उसकी ज़िंदगी सुकून से चले और माता-पिता खुश रहें।
उसी गली के कोने वाले मकान में रहती थी सोनाक्षी।
वह अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी।
सोनाक्षी पढ़ाई में तेज़ थी और इंदौर के ही एक कॉलेज से बी.कॉम कर रही थी।
उसकी मुस्कान में मासूमियत थी, जो सीधे दिल तक उतर जाती।
सुबह वह छत पर तुलसी के पौधों को पानी देती और शाम को बालकनी में खड़े होकर किताब पढ़ती।
आनंद और सोनाक्षी एक-दूसरे को बचपन से जानते थे, लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया।
समय के साथ यह जान-पहचान धीरे-धीरे एहसास में बदलने लगी।
कभी मंदिर में आरती के समय, कभी गणेश चतुर्थी की तैयारियों में, तो कभी बारिश के दिनों में गली में भरे पानी को पार करते हुए—उनकी नज़रें अक्सर मिल जातीं।
न कोई इज़हार, न कोई वादा—बस एक खामोश-सा रिश्ता।
मोहल्ले में त्योहार हमेशा मिल-जुलकर मनाए जाते थे। गणेश उत्सव के दौरान सोनाक्षी आरती की थाली सजाती और आनंद पंडाल की सजावट करता।
एक दिन आरती के बाद सोनाक्षी का दुपट्टा दीये की लौ से छू गया।
आनंद ने तुरंत उसे बुझाया। उस पल सोनाक्षी की आँखों में डर था।
वहीं आनंद को पहली बार एहसास हुआ कि सोनाक्षी उसके लिए कितनी ख़ास है।
समय बीतता गया। कॉलेज खत्म होते ही सोनाक्षी के लिए रिश्ते आने लगे।
उसके पिता चाहते थे कि वह किसी अच्छे परिवार में शादी करके सेटल हो जाए।
यह बात जब आनंद को पता चली, तो उसके मन में बेचैनी घर कर गई।
वह जानता था कि उसके पास न बड़ी नौकरी है, न ज़्यादा पैसा।
वह एक प्राइवेट ऑफिस में छोटी-सी नौकरी करता था।
आनंद ने वादा किया कि वह अपनी क़ाबिलियत साबित करेगा।
उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। सुबह ऑफिस, शाम को कोचिंग और रात को पढ़ाई—उसकी ज़िंदगी एक संघर्ष बन गई।
मोहल्ले वालों ने उसका साथ दिया। शर्मा अंकल ने पुराने नोट्स दिए, रशीद चाचा ने हौसला बढ़ाया, और सोनाक्षी… वह तो हर रोज़ मंदिर में उसके लिए प्रार्थना करती।
एक शाम सोनाक्षी और आनंद की मुलाक़ात मंदिर के पीछे हुई।
पहली बार दोनों ने खुलकर बात की। न बड़े वादे, न कसमें—बस इतना कि वे एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं। उस दिन के बाद आनंद की मेहनत और बढ़ गई।
लभाग 8 महीनों की मेहनत के बाद आनंद का चयन mp पुलिस में हो गया।
पूरे मोहल्ले में खुशियाँ फैल गईं। ढोल बजे, मिठाइयाँ बंटी।
सोनाक्षी की आँखों से खुशी दिखाई दे रही थी ।
अब आनंद सिर्फ एक आम लड़का नहीं था, बल्कि मेहनत और ईमानदारी की मिसाल बन चुका था।
आनंद अपने माता-पिता के साथ सोनाक्षी के घर गया। इस बार उसके शब्दों में आत्मविश्वास था।
सोनाक्षी के पिता ने मोहल्ले की तरफ़ देखा—जहाँ हर चेहरा इस रिश्ते का गवाह था। उन्होंने मुस्कुराकर हामी भर दी।
शादी सादगी से उसी मोहल्ले में हुई। वही गली, वही घर, वही लोग। सोनाक्षी लाल जोड़े में और आनंद सफ़ेद कुर्ते में—दोनों एक-दूसरे के सपनों का सहारा बन गए।
शादी के बाद भी ज़िंदगी बहुत नहीं बदली।
आनंद रोज़ ऑफिस जाता, सोनाक्षी घर और अपने नए सपनों को संभालती।
शाम को दोनों छत पर बैठकर इंदौर की ठंडी हवा में चाय पीते और अपने मोहल्ले को देखते।
गणेश नगर आज भी वैसा ही है—सादा, अपनापन लिए हुए। और उस मोहल्ले की हर गली जानती है कि सच्चा प्यार दिखावे का मोहताज नहीं होता।
**मोहल्ले का प्यार**—एक ऐसी कहानी, जो इंदौर के एक छोटे से मोहल्ले में जन्मी और उम्र भर के रिश्ते में बदल गई।
writer...................Vikram kori .