गामाक्ष मारा गया लेकिन ये कौन है..?
गामाक्ष हैरानी से उस सप्त शीर्ष वाले तारे को हैरानी से देखते हुए कहता है...." ठीक है इसे फैंक दो...."
लेकिन तभी उबांक कहता है......
अब आगे.....…....
उबांक गामाक्ष के पास आकर कहता है....." दानव राज , , ये कोई शक्ति कवच नहीं लगता , , ये तो साधारण सा तारा दिख रहा है , ......"
गामाक्ष उबांक की बात सुनकर विवेक की तरफ देखते हुए कहता है......" तुम मेरे साथ छल कर रहे हो...."
विवेक थोड़ा नर्वस हो जाता है लेकिन खुद को संभालते हुए सीरियस टोन में कहता है ......" ठीक है फिर , मैं इसे अपने पास ही रखता हूं , और तुम मुझे ऐसे ही खत्म कर दो...."
चेताक्क्षी उसकी प्लेनिंग समझते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगी थी..... विवेक उस सितारे को देखते हुए अपने आप से कहता है....." काश ये तारा दोबारा चमक उठता , , मैं इस खंजर को गामाक्ष को नहीं देना चाहता , , नागदेव कह रहे थे ये खंजर दिव्य है , अगर ऐसा है तो प्लीज़ अपनी सुरक्षा करो , मुझे अदिति को बचाना है...." विवेक के इतना कहते ही वो तारा चमक उठा , , जिसे देखकर गामाक्ष , विवेक और चेताक्क्षी तीनों हैरानी से उसे देखने लगते हैं लेकिन विवेक मुस्कुराते हुए कहता है...." देख लिया , ये तारा ही मेरी सुरक्षा है , अब बोलो...."
गामाक्ष उसकी बात सुनकर कहता है....." ठीक है , इस तारे को अपने से दूर करो , नहीं मैं अदि..." गामाक्ष की बात को काटते हुए कहता है....." अदिति को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं है , मैं तारे को फैंक रहा हूं....."
विवेक उस तारे को हवन कुंड में फैंक देता है जिसे देखकर गामाक्ष हंसते हुए कहता है....." अब तूझे कौन बचाएगा , , लेकिन उससे पहले तो तूझे अदिति को मरते हुए देखना होगा , उसके बाद ही तूझे मरना है....."
विवेक मुस्कुराते हुए धीरे धीरे गामाक्ष की तरफ बढ़ते हुए कहता है......." इतनी भी जल्दी भी नहीं गामाक्ष..... मेरे जिंदा रहते तू मेरी अदिति को कुछ नहीं कर पाएगा.."
गामाक्ष उसे गुस्से में घूरते हुए देखकर कहता है...." मौत के मुंह में खड़े होकर उसे ललकारना अच्छा नहीं होता , , ...."
विवेक बिल्कुल उसके पास पहुंच चुका था , उसकी आंखों में आंखें डालकर कहता है....." मौत किसे आएगी, , ये अब तुझे पता चलेगा...."
" तेरे अंदर सिर्फ बोलने की ताकत है , ..."
विवेक उसे टोकते हुए कहता है...." नहीं गामाक्ष नहीं.... सिर्फ बोलने की नहीं , ....." विवेक तुरंत उस खंजर को निकालकर गामाक्ष के दिल में घोंप देता है ,
जिससे गामाक्ष चिल्ला उठा , उबांक तुरंत विवेक पर हमला करने के लिए उसके पास पहुंचता है लेकिन विवेक ने गुस्से में एक हवाई हमला करके उबांक को घायल कर दिया और वो फड़फड़ाता हुआ नीचे गिर गया , .....
अब विवेक दोबारा गामाक्ष पर वार करने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन गामाक्ष उसपर शक्ति वार करता है जिसे उसने अपने खंजर से रोक लिया था , ,
हाथ में खून से सना खंजर लेकिन खंजर की चमक बरकरार थी , जिसे लिए विवेक गामाक्ष पर दूसरा वार करता है , ,
गामक्ष दर्द भरी आवाज में कहता है....." रुक जाओ नहीं तो मैं तुम्हारी अदिति को भी मार दूंगा....."
विवेक की आंखें गुस्से से लाल हो चुकी थी और तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहता है....." तू मेरी अदिति को छू भी नहीं सकता , अब तुझे मरना है गामाक्ष। , हर बुराई का अंत जरूर होता है , , और आज तेरा भी होगा......"
विवेक उसे पकड़कर लगातार उसके दिल में तीक्ष्ण वार करके उसे हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया....एक तेज रोशनी के साथ सब तरफ के पिशाची शक्तियां हट गई....
गामाक्ष के मरते ही वो भयानक मूर्ति वहां से अचानक गायब हो गई , जिससे अदिति को उसकी रोशनी से मुक्ति मिलती है , , विवेक चेताक्क्षी के पास जाकर उसे खंजर की शक्ति से मुक्त कर देता है और सीधा अदिति के पास पहुंचकर उसे भी वहां से आजाद करके अपनी बांहों में समेट लिया....
सुरज की लालिमा छाने लगी थी , अंधेरे की वो काली रात सिमट चुकी थी , , उगते हुए सूर्य को देखकर चेताक्क्षी कहती हैं......" एक नई सुबह , बुराई पर अच्छाई की जीत लाई है , , इस किरणों के साथ जीत की खुशी भी फ़ैल जाएगी...."
चेताक्क्षी आदित्य के माथे पर हाथ रखते हुए मंत्र बोलती है जिससे आदित्य के अंदर से एक काले रंग की रोशनी निकल जाती है और उसे होश आने लगता है जिससे देखकर मुस्कुराते हुए चेताक्क्षी इशान को भी उसी तरह होश में लाती है.... लेकिन इधर उधर देखते हुए विवेक से कहती हैं....." विवेक तुम अदिति को लेकर मंदिर जाओ , मैं आदित्य को लेकर अभी थोड़ी देर में आती हूं , यहां से काफी चीजें हैं जिन्हें मुझे किसी ग़लत हाथों में पड़ने से बचाना होगा..."
विवेक चेताक्क्षी की बात पर सहमति जताते हुए वहां से अदिति को लेकर इशान के साथ चला जाता है.....
लेकिन उसे संभालने के चक्कर में खंजर अदिति के हाथों से छू जाता है , जिसे देखकर कोई हंसते हुए कहता है...." अभी मौत बाकी है तेरी , ...."
आधी बेहोशी में आदित्य को वहीं छोड़कर चेताक्क्षी वहां से सभी सामान को इकठ्ठा करने लगती है लेकिन तभी कोई बाहर आकर हंसते हुए कहता है....." चेताक्क्षी , तुमने गलत कहा , नई सुबह जीत नहीं नई तबाही लाई है , , गामाक्ष को मारकर तुमने मुझे आजाद करो दिया है लेकिन मैं अब दहस्त की एक और नई दास्तां बनाऊंगा...."
चेताक्क्षी हैरानी से उसे देखते हुए कहती हैं...." कौन हो तुम...?..."
वो हंसते हुए कहता है.... " मुझे पहचानो चेताक्क्षी.... तुमने समस्त पिशाच जाति का अपमान किया है , उसकी सजा तुम्हें जरुर मिलेगी ,....."
इतना कहकर वो उसपर शक्ति से वार करता है जिससे निढाल होकर चेताक्क्षी वहीं गिर गई लेकिन फिर भी उसपर वार करती है , जिसका उसपर कोई फायदा नहीं हुआ , ,
वो धीरे धीरे आदित्य के पास पहुंच चुका था , आदित्य आधे होश में होने की वजह से उसे देखने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो उसे बेहोश करके अपने साथ ले गया.......
चेताक्क्षी बेबस सी ये सब देखते हुए बेहोश हो गई थी......
...............to be continued............