The Risky Love - 28 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 28

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The Risky Love - 28

महाकाल का मंदिर 

आदित्य को चेताक्क्षी की बातें समझ नहीं आ रही थी फिर भी उसके बताए अनुसार वो उस पेड़ के पीछे जाकर छिप जाता है..... आदित्य के जाने के बाद चेताक्क्षी मुड़कर कहती हैं....." मुझे पता था तुम जरूर आओगे...."

अब आगे...............
 " हमें पता था , तुम हमारा पीछा कर रहे हो...."चेताक्क्षी ने उस तरफ देखते हुए कहा .... आदित्य उसकी नज़रों को पीछा करते हुए , उसे देखकर हैरानी से कहता है...." ये चेताक्क्षी उस चमगादड़ जो देखकर ऐसा क्यूं बोल रही है...?..."
वो चमगादड़ धीरे धीरे एक बड़े आकार में बदलने लगती है , जिसे देखकर चेताक्क्षी गुस्से में उसे देखते हुए कहती हैं...." तुम्हारे इस रूप से हम डरने वाली नहीं है , तुम्हारे उस गामाक्ष की अब कोई भी क्रिया काम नहीं करेंगी ..."
उबांक उससे कहता है...." चेताक्क्षी तुम इन सबसे दूर रहो , नहीं तो तुम भी मारी जाओगी...."
चेताक्क्षी हंसते हुए कहती हैं......" हम ये तो नहीं जानती तुम्हें उसने कैसे बनाया है , लेकिन हमारी भी बात सुन लो हम एक बेताल का अंश और तांत्रिका की बेटी है , , तो गामाक्ष हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता लेकिन हम उसे उसके मकसद में कभी कामयाब नही होने देंगे , , ...."
उबांक उसे गुस्से में देखते हुए कहता है....." तुम्हें शांति से समझाया जा रहा है अगर गामाक्ष के मार्ग से नहीं हटी तो तुम्हें फिर गामाक्ष जिंदा रहने के लिए नहीं छोड़ेगा..... इसलिए तुम्हारे लिए अच्छा है चली जाओ यहां से...."
चेताक्क्षी शातिराना अंदाज में हंसते हुए अपनी मुट्ठी में बंद भभूत को उसपर फैंक देती है.... जिससे वो तड़प उठता है , उबांक वापस अपने आकार में आ चुका था और लड़खड़ाते हुए उड़ते हुए वहां से जाने लगता है लेकिन उसका पंख नीचे गिर जाता है जिसे उठाकर देखते हुए चेताक्क्षी कहती हैं...." बस अब हमे तुम्हारे बारे में भी जानना है , , तुम आ सकते हो आदित्य...."
आदित्य पेड़ के पीछे से बाहर आकर उसे पंख को देखकर देखते हुए कहता है......" ये कैसी चमगादड़ है चेताक्क्षी...?..."
चेताक्क्षी सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए कहती हैं...." तुम्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता आदित्य...." आदित्य न में सिर हिला देता है , चेताक्क्षी उसे बताती है...." आदित्य ये गामाक्ष का सबसे खास सहयोगी है , बाबा ने हमें बताया था , इसने ही अदिति के रक्त की ऊर्जा उस गामाक्ष तक पहुंचाई थी जिससे आज वो दोबारा जीवित हो सका है..."
चेताक्क्षी की बात सुनकर आदित्य कहता है...." मुझे तुम्हारी बातें ठीक से समझ नहीं आ रही लेकिन तुम अब भी बता दो यहां क्यूं आए थे हम और तुम इन सबके लिए पहले से ही तैयार कैसे थी....?..."
" आदित्य आदित्य , इतनी उलझन में की कोई बात नहीं है ... हमें बाबा ने बताया था कि उस बेताल की आत्मा उनके कैद से उस गामाक्ष ने छुड़ा लिया था बस हमें उसके बारे में ही जानना है , अगर बेताल की आत्मा उसके पास कैद है तो हमें उसकी स्थिति के बारे में पता चल जाएगा ताकि हम दोनों परेशानियों से एक साथ मुक्त हो जाएं....."
" लेकिन तुम्हें कैसे पता की ये हमारे पीछे पीछे आ रहा है...?..."
उधर विवेक उस आदमखोर जानवर से बचने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी पकड़ के कारण उसका दम घुटने लगा था, , विवेक लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए कहता है...." देखो , जाने दो मुझे... मेरा जाना बहुत जरूरी है...."
लेकिन विवेक की एक भी बात वो आदमखोर जानवर नहीं सुन रहा था , विवेक उससे बचने की कोशिश करता हुआ था चुका था आखिर में वो अपनी कमजोर आवाज में कहता है..." हे भोलेनाथ जैसे पहले मुझे बचाया था क्या अब नहीं बचाओगे ..?... क्या वो पिशाच जीत जाएगा...?..मेरी मदद कीजिए..." 
विवेक के इतना कहते ही थोड़ी ही देर में उसके जेब से एक रोशनी निकलने लगती है जिससे चारों तरफ छाया अंधेरे को दूर करते हुए बाहर निकलने लगती है , इस रोशनी के निकलने की वजह से उस आदमखोर जानवर के आंखों को नुकसान पहुंचाने लगी थी , जिससे उसकी पकड़ ढीली हो जाती है और विवेक उससे छुटकर कर दूर हो जाता है , , 
अपनी जेब से आ रही रोशनी को हैरानी से देखते हुए हाथ डालकर उसे देखते हुए कहता है......" नागरुद्राक्ष में इतनी चमक ,ये जरूर शिवजी का चमत्कार हैं  ......" , विवेक हाथ जोड़कर उसे बाहर निकाल कर उस जानवर की तरफ करता है , उसकी रोशनी से वो तड़पते हुए अपनी आंखों को छुपाते हुए कहता है.." इसे दूर करो यहां से , मुझे इसकी रोशनी से परेशानी हो रही है....."
विवेक  जोश में आकर कहता है....." जाने दो मुझे यहां से नहीं तो इसकी रोशनी से तुम खत्म हो जाओगे....."
वो जानवर बेबस सी आवाज में कहता है....." ठीक है जाओ यहां से.... लेकिन इस रोशनी को मुझसे दूर करो...."
विवेक सीरियस टोन में कहता है......." मैं बेवकूफ नहीं हूं , जो तुम्हारे जाल में फंस जाऊ , पहले मेरे पैरों को खोलो , ,."
वो जानवर बेमन से इशारा करते हुए उन पेड़ों की शाखाओं को उससे दूर करते हुए कहता है......" अब तो इस रोशनी को हटाओ यहां से...."
विवेक अपने हाथ में ही नागरूद्राक्ष को लेकर उल्टे कदमों से चलने लगता है , , वो अपनी सुरक्षा करते हुए वहां से काफी दूर चला जाता है , उसके बाद विवेक ने वहां से भागना शुरू किया......
इधर चेताक्क्षी आदित्य से कहती हैं....." आदित्य तुम अभी परेशान हो इसलिए साधारण सी बात भी नहीं समझ पा रहे हो, , तुम खुद सोचो आदित्य , जब हमने अदिति को उस सुरक्षा घेरे में बांध दिया और उसकी उम्मीदों को पूरा नहीं होने दिया , तो इस बात को जानने के लिए आखिर उसकी शक्ति कमजोर कैसे पड़ सकती है , ये जानने के लिए वो किसी न किसी को जरुर भेजेगा , और बस उसी उम्मीद में हम तुम्हारे साथ बाहर आए हैं , अब चलो मंदिर के कमरे में सुबह भी होने वाली है और मंत्रों की श्रेणी भी बांधनी है और भी काम है हमें....चलो अब....."
आदित्य चेताक्क्षी के साथ वापस मंदिर के तहखाने वाले कमरे में चला जाता है और उधर विवेक भागते भागते काफी दूर आ चुका था.....
अंधेरा बिल्कुल हट चुका था , और सुरज अपनी तेज तर्रार रोशनी फैलाए मुस्कुरा रहा था , , विवेक एक लम्बी गहरी सांस लेते हुए खुद को नार्मल करके चारों तरफ देखते हुए कहता है......" क्या मैं आ गया महाकाल के मंदिर...?..."
विवेक की नजर दूर विशाल मंदिर पर जाती है जिसकी चोटी पर त्रिशूल बना हुआ था, , उसे देखते हुए विवेक खुद से कहता है....." हां यही है महाकाल का मंदिर.....अब बस मैं जल्दी से वहां तक पहुंच जाऊं..." 
विवेक उतावला सा जल्दी जल्दी मंदिर की तरफ जा रहा था , , , वो उस मंदिर के तोरण द्वार तक पहुंच चुका था , जहां वो हाथ जोड़कर आगे बढ़ता है तभी एक आवाज आती है....
.." रूको....तुम अंदर नहीं आ सकते...."
.
 
..............to be continued............