in lonely nights in Hindi Horror Stories by Mohammad Ajim books and stories PDF | अकेली रातों में

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अकेली रातों में

शो नमस्कार दोस्तों, मैं हू mr.raaj आप पड़रहे है matrubharti पर  मेरे यानी raaj के साथ। अब बस आप पढ़िए और सोचिए की आप घार पर आप अकेले है  और सोचिए कि बीच रात का वक्त है। आप घर में अकेले हैं और अचानक कोई आपके घर का दरवाजा खटखटाता है। आप सोच रहे हो कि इतनी रात में कौन आया होगा। आप धीरे से उठकर दरवाजे के पास चले जाते हो। और फिर आप दरवाजे के की होल से झांक कर देखते हो। लेकिन दरवाजे के पीछे कोई नहीं है। लेकिन वहां कुछ है जिसकी मौजूदगी को आप महसूस कर सकते हो और आप महसूस कर सकते हो कि वहां जरूर कोई है जो दरवाजा खोलने का इंतजार कर रहा है। आप एक तक ध्यान से देखने की कोशिश कर रहे हो। आपकी नजर अब भी सामने है और उसी पल ठंडी हवा गर्दन के पास से गुजरती हुई शरीर में सिहरन पैदा कर देती है आपको कुछ भी समझा नहीं कि अचानक क्या हुआ और आपने घबरा कर पीछे देखा लेकिन पीछे कमरे में सिर्फ अंधेरा है और उसी पल वो आवाज इतने नजदीक से आती है कि आपका दिल बैठ जाता है। शरीर में झटका सा लगता है और मन में एक सवाल उठता है। क्या यह सिर्फ हमारा भ्रम है या सच में कहीं कोई एक ऐसी दुनिया है जहां पर परछाइयां हमारी हर हरकत पर नजर रखती है। ऐसा अनुभव शायद कई लोगों के साथ हुआ होगा। लेकिन सभी इसे बता नहीं पाते। कई लोग विश्वास नहीं करते तो कुछ लोग इसका मजाक उड़ाते हैं। अगर कभी आपके साथ ऐसा हुआ है तो हमें जरूर बताइए। हमें आपका अनुभव मेल कीजिए। मेरा ईमेल आईडी है mazim3470@Gmail.com और आज की जो कहानी है वह भी कुछ ऐसी ही है जो हमारे ही एक दोस्त के दोस्त ने शेयर की है। उन्होंने अपना नाम बताया नहीं है और ना ही वह जगह का नाम शेयर करना चाहते हैं। तो आइए हमेशा की तरह बिना देरी किए आज की कहानी शुरू करते हैं। कहानी उन्हीं की जुबानी। मेरा नाम दीपक है और मैं एक एंबुलेंस का ड्राइवर हूं। यह घटना मेरे साथ 2001 में हुई थी और उस समय तक एंबुलेंस चलाते हुए मुझे लगभग चार या पांच साल हो चुके थे। इतने सालों में मैंने कई तरह के मरीज देखे थे। कई तरह की लाशें देखी थी और बार-बार यह सब देखने की वजह से मेरा दिल पत्थर हो चुका था। इंसानों की आहें, उनका रोना और मौत इन सब बातों का मुझ पर अब कोई असर नहीं होता था। लेकिन उस रात मेरे साथ एक बेहद भयानक घटना हुई थी और उसके बाद उन सब चीजों को देखने का मेरा पूरा नजरिया बदल गया था। वो अनुभव इतना भयानक था कि मैंने उसके बाद से रात में एंबुलेंस की ड्राइविंग सीट पर बैठना ही छोड़ दिया था। उस दिन शाम धुंधली थी। जैसे ही दिन की रोशनी बुझ गई, चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था। उस वक्त मैं अस्पताल के बाहर अपनी एंबुलेंस को पार्क कर उसी में बैठा था। दिन भर कोई ट्रिप नहीं थी। इसलिए मुझे थोड़ी नींद भी आने लगी थी। वक्त क्या हुआ था इतना याद नहीं। लेकिन रात के लगभग 7 या 7:30 बज रहे थे। मैंने मोबाइल निकालकर समय देखा और उसी पल मोबाइल पर एक नंबर चमक उठा। स्क्रीन पर किसी अनजाने नंबर से कॉल आ रही थी। मैंने वो कॉल रिसीव की और सामने से एक गंभीर आवाज सुनाई दी। दीपक मैं डॉक्टर गिरीश बोल रहा हूं। तुम तुरंत ऑफिस आ जाओ। मैं डॉक्टर की आवाज को पहचान गया। डॉक्टर गिरीश अस्पताल के सीनियर डॉक्टर थे। उनका मैसेज मिलते ही मैंने एक पल की भी देर नहीं की। मैंने तुरंत एंबुलेंस लॉक की और अस्पताल के अंदर डॉक्टर के ऑफिस चला गया। ऑफिस से बाहर आते ही डॉक्टर मेरे पास आ गए। उनके चेहरे पर थकान थी और माथे पर पसीने की बूंदे। उन्होंने धीमी आवाज में कहा, दीपक एक जरूरी काम है। तुम्हें अभी इसी वक्त एक लाश को लेकर जाना होगा। मैं थोड़ा हैरान हो गया क्योंकि आमतौर पर लाश ले जाने के लिए परिवार आता है और उस परिवार का कोई ना कोई सदस्य हमारे साथ होता है। लेकिन डॉक्टर की बात सुनकर मैं समझ गया कि मामला कुछ सीरियस है। मैंने फिर बिना कोई दूसरा सवाल किए उनसे पूछा सर कहां जाना है? डॉक्टर साहब ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। देखो एक आदमी की अभी कुछ देर पहले हार्ट अटैक से मौत हो गई है। पोस्टमार्टम वगैरह सब हो चुका है लेकिन उनका परिवार गरीब है। अस्पताल आने की हालत नहीं है। इसलिए लाश को तुम्हें ही पहुंचाना होगा। वो मेरे पहचान के लोग हैं। बाकी तुम्हें कोई झंझट नहीं होगा। इसकी सारी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। मैंने कागज वगैरह सब तैयार कर रखे हैं। बस तुम्हें लेकर जाना है। उन्होंने मुझे कुछ कागज थमाए और साथ ही एक कागज का टुकड़ा भी दिया जिस पर कोई पता लिखा था। मैंने उसे पढ़ा और समझ गया कि वो जगह काफी दूर है। वो लगभग 3 घंटे की दूरी होगी। अब रात में अकेले इतनी दूरी तय करना मतलब थोड़ा डरावना था। खासकर तब जब तुम्हारे साथ कोई नहीं होता। और उस दिन तो मेरा हेल्पर भी मेरे साथ नहीं था। वो दोपहर को ही एक इमरजेंसी के लिए किसी और एंबुलेंस के साथ चला गया था। इसलिए अब मुझे अकेले ही जाना था। मतलब उस लाश के साथ। मैं बिना देर किए मुर्दा घर की तरफ बढ़ा। कुछ पेपर दिखाकर मैंने एंबुलेंस को मुर्दा घर के गेट के पास खड़ा किया। दो वार्ड बॉय ने तुरंत ही आकर लाश को स्ट्रेचर पर रखकर उस एंबुलेंस पर लाद दिया। वो लाश किसी अधेड़ उम्र के आदमी की थी। लगभग 40-45 साल का होगा। चेहरा फेंका और सख्त था। उन्होंने स्ट्रेचर को ठीक से लॉक किया और ऊपर से सफेद चादर डाल दी। सब सेट करने के बाद मैंने एंबुलेंस का दरवाजा बंद कर दिया। ड्राइविंग सीट पर बैठा और भगवान का नाम लेकर इंजन स्टार्ट किया। एंबुलेंस आगे बढ़ने से पहले मैंने एक नजर चारों तरफ देखा। यह वो वक्त था जब अस्पताल का यारार्ड धीरे-धीरे खाली हो रहा था। रात की खामोशी बढ़ रही थी और मुझे भी कुछ अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। वो एक अजीब सा एहसास था। इससे पहले मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ था। मानो मुझे ऐसा लग रहा हो जैसे आज की रात कोई साधारण रात जैसी नहीं होगी। मैं अपने सफर पर निकल पड़ा। रास्ता लंबा था। शहर के ट्रैफिक को पार करने के बाद एंबुलेंस जैसे ही हाईवे पर आई, मैंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। चारों तरफ अंधेरा फैला हुआ था। रास्ते के किनारे सिर्फ पेड़ ही पेड़ दिखाई दे रहे थे। बीच-बीच में दुकानों की कुछ झलकियां दिख रही थी। गाड़ी चलाते हुए अब करीबन आधा घंटा बीत चुका था। सब कुछ ठीक था। मैंने रेडियो ऑन किया और हल्की आवाज में गाना बजने लगा। तो मैं भी खुद को शांत रखने के लिए गाने के साथ-साथ गुनगुनाने लगा। एंबुलेंस के अंदर उस लाश की गंध और दवाइयों की मिलीजुली महक फैली हुई थी। यह गंध मेरे लिए नई नहीं थी। इसलिए मुझे कोई खास परेशानी नहीं हो रही थी। लेकिन अचानक एक अजीब बात हुई। मेरा सारा ध्यान सामने की ओर था और मैं उस वक्त लगभग 70-80 कि.मी. की रफ्तार से गाड़ी चला रहा था। हेडलाइट की तेज रोशनी में सामने का रास्ता मुझे साफ दिख रहा था। अचानक मेरी नजर एक चीज पर पड़ी। मैंने देखा कि सड़क के बीचोंबीच एक आदमी खड़ा है। ऐसा लगा जैसे वो कहीं से अचानक मेरे सामने आकर खड़ा हो गया हो क्योंकि मैंने उसे पहले नहीं देखा था और वो आदमी रास्ते में इस तरह खड़ा था कि उसे बचाकर निकलने की कोई जगह नहीं थी। उसे देखते ही मैंने जोर से ब्रेक लगाया। टायरों की एक चीख गूंज उठी और उस आवाज से रात की खामोशी टूट गई। मेरा पूरा शरीर झटका खाकर आगे की ओर झुक गया। उस पल मेरा दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था कि लगा कि दिल अभी सीने से बाहर निकल आ जाएगा। घबराहट में मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। यह सोचकर कि शायद वो आदमी गाड़ी के नीचे आ गया हो। कुछ सेकंड तक मैं वैसे ही बैठा रहा। कुछ देर बाद जब सब शांत हुआ तो मैंने अपने आप को समझाया। और कांपते हाथों से गाड़ी का दरवाजा खोला। उस पल मेरे हाथपांव ही नहीं बल्कि मेरा चेहरा तक कांप रहा था। मेरा शरीर पूरा डर से भरा हुआ था। मुझे पूरा यकीन था कि जरूर कोई भयानक हादसा हो गया है। लेकिन जब मैं गाड़ी से नीचे उतरा और मैंने सामने देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। क्योंकि सामने कोई नहीं था। वो सड़क पूरी तरह खाली थी। हेडलाइट की रोशनी जहां तक जा रही थी वहां तक सब सुनसान था। कोई इंसान नहीं, कोई निशान तक नहीं। मैंने घबराकर गाड़ी के चारों तरफ देखा। नीचे झुक कर भी देखा लेकिन कुछ नहीं था। मेरा दिमाग सुन्न हो गया। मैंने साफ-साफ देखा था कि कोई आदमी गाड़ी के सामने था। उसका चेहरा, उसका हुलिया सब आंखों में ताजा था। तो फिर वो गया कहां? क्या वह गायब हो गया था या फिर मैंने कुछ गलत देखा या वह मेरा वहम था। लेकिन इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है? क्योंकि उस वक्त भी मैं पूरी तरह होश में था और अब भी मैंने अपने मन को समझाने की पूरी कोशिश की। शायद सुबह से ऐसे ही बैठा था। हो सकता है कि शायद थकान की वजह से किसी पेड़ की परछाई या झोंके को मैंने इंसान समझ लिया होगा। ऐसा हो सकता है। मैं जाकर ड्राइविंग सीट पर वापस बैठ गया। पानी की बोतल निकाली और आधी बोतल एक ही सांस में पी गया। मैंने खुद को शांत किया। माथे का पसीना पोछा और एक गहरी सांस ली। और फिर खुद को समझाया कि यह सब मेरा वहम था। लेकिन डर अब भी दिल में किसी कोने में छुपा हुआ था। मुझे नहीं पता था कि यह बस उस भयानक रात की शुरुआत थी या आगे और भी कुछ होने वाला था। मैंने एंबुलेंस चालू की और आगे बढ़ा। इस बार मेरी नजरें सड़क पर टिकी थी। जैसे मैं दुनिया का सबसे चौकस ड्राइवर बन गया हूं। लेकिन कान कान अब भी एंबुलेंस के पीछे की ओर लगे थे। जहां वो अधेड़ उम्र के आदमी की लाश रखी थी। पहले झटके से उभर कर मैंने फिर से रफ्तार पकड़ी। लेकिन एक अजीब सा डर दिल में घर कर गया था। मैं खुद को बार-बार समझा रहा था कि मैंने जो कुछ देखा था वो सिर्फ मेरी आंखों का धोखा था। लेकिन दिल के अंदर कहीं गहराई में मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था। और मेरे दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि मैंने जो देखा था वो कोई परछाई नहीं थी। वो एक कोई इंसान था। मैंने गाड़ी की स्पीड थोड़ी और कम कर दी और अब मैं हर हल्की आवाज पर ध्यान दे रहा था। मैंने रेडियो तक बंद कर दिया ताकि कोई हल्की से हल्की आहट या कोई भी आवाज मुझसे छूट ना जाए। रात की खामोशी अब और भारी लगने लगी थी। हेडलाइट की रोशनी के आगे मुझे कुछ भी दिख नहीं रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे आगे अंधेरी दुनिया का रास्ता हो। रास्ते के दोनों तरफ के घने पेड़ जैसे अंधेरे की दीवार बनाकर खड़े थे और उसके बाद करीबन 10-15 मिनट ऐसे ही बीत गए। उस बीच में धीरे-धीरे उस घटना को मन से निकालने की कोशिश कर रहा था। सोच रहा था कि बस 2 घंटे और मैं पहुंच जाऊंगा। फिर लाश को उस परिवार को सौंप कर मैं वापस लौट जाऊंगा। उसी वक्त अचानक पीछे से एक तेज आवाज आई। जैसे कुछ बहुत भारी चीज जमीन पर गिर पड़ी हो। इतनी जोर से आवाज आई कि मेरा दिल उछल कर गले तक आ गया था। पहला ख्याल आया कि शायद स्ट्रेचर का लॉक खुल गया होगा और वो एंबुलेंस के अंदर फर्श पर गिर गया होगा। कभी-कभी झटके से ऐसा हो सकता है। लेकिन वो आवाज बहुत ही भारी और अजीब थी। मैंने देर नहीं की। गाड़ी को रास्ते के किनारे रोका। इंजन को चालू ही रखा और जल्दी से गाड़ी से उतर गया। मेरे माथे पर फिर से पसीना उभर आया। डर और बेचैनी दोनों ने मेरी हालत खराब कर दी थी। आसपास देखकर मैंने कांपते हाथों से एंबुलेंस का पिछला दरवाजा खोला। अंदर झांका और जो देखा उससे मेरा दिमाग घूम गया। अंदर सब कुछ बिल्कुल ठीक था। स्ट्रेचर अपनी जगह पर लॉक था और उस पर वही सफेद चादर से ढकी लाश पड़ी थी। कुछ भी वहां हिला नहीं था। मैंने हैरानी से चारों तरफ देखा। कोई गड़बड़ नहीं थी। तो फिर यह आवाज किस चीज की थी? मैं तो साफ सुन चुका था कि कोई भारी चीज गिरी थी और वो आवाज भी मेरे पीछे से आई थी। मैंने झुककर स्ट्रेचर के पहहिए और लॉकिंग सिस्टम को चेक किया और वहां सब कुछ सही था और तब मेरे मन में शक पैदा हुआ कि कहीं मेरा खुद का मन मुझे धोखा तो नहीं दे रहा। क्या यह सब मेरा वहम था? मैंने दरवाजा झट से बंद किया। खटकी आवाज आई। मतलब लॉक ठीक से लग गया था। मैं ड्राइविंग सीट की तरफ बढ़ा। लेकिन जैसे ही मैं अंदर बैठने ही वाला था। फिर से एक आवाज आई। जैसे पीछे का दरवाजा दोबारा खुल गया हो। मैं तुरंत पलटा और जो देखा उससे मेरा खून जम गया। वो दरवाजा जो मैंने अभी-अभी बंद किया था वो अब पूरा खुला हुआ था। हवा में उसका पल्ला हल्का-हल्का हिल रहा था। अब डर ने मुझे पूरी तरह जकड़ लिया था। अब यह कोई भ्रम नहीं था। मैं खुद दरवाजे को हिलते हुए देख सकता था और मैं अच्छे से जानता था कि वो दरवाजा भारी है और मैंने खुद उसे लॉक किया था। तो वो अपने आप कैसे खुल सकता है? मैं धीरे-धीरे पीछे की ओर जाने के लिए अपने कदम बढ़ाने लगा। हर कदम के साथ दिल की धड़कन बढ़ती ही जा रही थी और तेज हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे दिमाग में कोई बार-बार हथौड़ा मार रहा हो। धन धन की आवाज से दिमाग फट रहा था। मैं दरवाजे के पास गया और अंदर झांका। अंदर का नजारा देखकर मेरी रीड में एक ठंडी लहर दौड़ गई। लाश के ऊपर से सफेद चादर खिसक कर नीचे एंबुलेंस के फर्श पर गिर चुकी थी और उस लाश का पीला और सूझा हुआ चेहरा अब पूरी तरह खुल चुका था। लेकिन यह कैसे हो सकता है? जब मैंने दरवाजा पहली बार बंद किया था। तब तो वो चादर लाश के ऊपर ठीक से पड़ी थी। फिर इन कुछ सेकंड्स में वो नीचे कैसे गिर सकती है? एंबुलेंस भी अपनी जगह पर थी। रुकी हुई थी। कोई झटका भी नहीं लगा था। डरते-डरते मैंने लाश के चेहरे की तरफ देखा और उसे देखते ही मेरी सांस थम गई। अपने 5 साल के करियर में मैंने सैकड़ों लाशें देखी थी। एक्सीडेंट में कुचले हुए चेहरे, पानी में सड़े हुए शरीर, आग में जले हुए डरावने चेहरे। लेकिन कभी किसी ने मुझे इतना अंदर तक डराया नहीं था। इस चेहरे में कुछ अलग था। कुछ अजीब था। उसकी आंखें थोड़ी सी खुली हुई थी। लेकिन उनमें जिंदा होने की कोई झलक नहीं थी। उसके होठ मुड़े हुए थे जैसे किसी बात पर वह बेहद गुस्सा हो और उसका जबड़ा इतना कसा हुआ था कि लगता था कि वो किसी भी पल फट पड़ेगा। उसके पूरे चेहरे पर गहरी नफरत और गुस्से की छाप थी। जैसे वो किसी भी पल उठेगा और पूछेगा कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? एक मरे हुए इंसान के चेहरे पर इतना जिंदा गुस्सा मैंने कभी नहीं देखा था। उस पल मुझे लगा इस लाश में कुछ तो गड़बड़ है। कुछ ऐसा जो बिल्कुल सामान्य नहीं है। कुछ बहुत डरावना। मैं वहां एक पल भी खड़ा नहीं रह पाया। शरीर कांप रहा था। लेकिन हिम्मत जुटाकर मैं एंबुलेंस के अंदर चला गया। फर्श पर पड़ी चादर उठाई और कांपते हाथों से उस लाश के चेहरे को ढक दिया। मैं नहीं चाहता था कि मैं उस खौफनाक चेहरे को एक पल के लिए भी और देखूं। चादर डालते ही मैं लगभग भागते हुए बाहर आ गया और पीछे का दरवाजा जोर से बंद कर दिया। इस बार सिर्फ बंद ही नहीं किया। हैंडल पकड़ कर कई बार हिलाया ताकि पक्का हो जाए कि अब यह आसानी से खुलेगा नहीं। फिर मैं सीधा ड्राइवर के सीट पर जाकर बैठ गया। मेरा गला सूख गया था। दिल तेजी से धड़क रहा था। मुझे समझ आ गया था कि मैं किसी बहुत बुरी चीज के चक्कर में फंस गया हूं। इस लंबी सुनसान सड़क पर जो कुछ हो रहा था वो ना तो कोई इत्तेफाक था ना ही मेरा वहम। मैंने आसपास कहीं भी ध्यान नहीं दिया। बस एक्सलरेटर पर पैर रख दिया। एंबुलेंस गड़गड़ाहट के साथ आगे बढ़ी। मेरा अब बस एक ही मकसद था कि जितनी जल्दी हो सके इस जगह से निकल जाना है और उस लाश को उसकी मंजिल पर पहुंचाना है। लेकिन मुझे नहीं पता था कि असली डर तो अब शुरू होने वाला है। मैं स्टीयरिंग को कसकर पकड़े हुए आगे अंधेरे में देखता रहा। कानों में अब भी वह भारी धपक की आवाज गूंज रही थी। और आंखों के सामने वही गुस्से से तना मरा चेहरा घूम रहा था। उस चेहरे को देखने के बाद मेरी हालत कैसी थी यह मैं आपको शब्दों में नहीं बता सकता। बस मेरा शरीर कांप रहा था लेकिन दिमाग बहुत तेज चल रहा था। मैं जानता था कि अब यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है। मुझे जितना जल्दी हो सके आगे बढ़ना ही होगा। मैंने गाड़ी की स्पीड लगभग दोगुनी कर दी। और तब मुझे लगा जैसे कि आसपास का अंधेरा जिंदा हो गया हो। ऐसा लग रहा था कि सड़क के दोनों ओर पेड़ों के पीछे से कोई मुझे घूर रहा है। मैंने स्टीयरिंग इतनी कसकर पकड़ी थी कि उंगलियों में दर्द होने लगा था। एक ही ख्याल था कि गाड़ी किसी भी हाल में रुकनी नहीं चाहिए। जो भी हो जाए मुझे बस चलते रहना है। करीब 10-15 मिनट लगातार चलने के बाद मैं एक मोड़ पर पहुंचा। वहां से एक रास्ता दाई तरफ गांव की तरफ जा रहा था। और तब मुझे याद आया यही वो शॉर्टकट था जिसके बारे में मैं सोच रहा था। उस रास्ते से जाऊं तो आधा पौना घंटा आसानी से बच जाएगा। पर दिक्कत यह थी कि वो रास्ता पूरी तरह सुनसान था। दिन में भी वहां शायद ही कोई जाता होगा। और रात में तो वो जैसे मौत का इलाका हो। ना कोई घर, ना दुकान। बस मेलों तक जंगल और दूर-दूर तक पहले खेत थे। एक पल के लिए मैं झिझक गया और सोचने लगा कि इस हालत में क्या उस सुनसान रास्ते पर जाना सही होगा या फिर लंबा लेकिन जाना पहचाना रास्ता लेना चाहिए। दिमाग मुझे कह रहा था कि पुराने रास्ते पर रहो वही सुरक्षित है। पर दिल में एक डर भी था कि जितना जल्दी हो सके इस लाश से पीछा छुड़ा लेना बेहतर होगा। और समय बचाने की लालच में मैंने एक निर्णय लिया। मैंने भगवान का नाम लिया और दाई ओर मुड़कर एंबुलेंस उस अंधेरी सुनसान सड़क पर चढ़ा दी। जैसे ही मैं अंदर गया, लगा जैसे किसी दूसरी दुनिया में आ गया हूं। पक्की सड़क खत्म होकर अब उबड़ खाबड़ कच्चा रास्ता शुरू हो गया था। दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ ऐसे झुके हुए थे। लगता था जैसे मैं किसी अंधेरे सुरंग से गुजर रहा हूं। चांद की रोशनी पत्तों के पार नहीं जा पा रही थी। वहां सिर्फ हेडलाइट की रोशनी थी और वही मेरा सहारा थी। करीब 10-15 मिनट और बीत गए। मैं गाड़ी धीरे और संभाल कर चला रहा था। चारों तरफ ऐसा सन्नाटा था कि इंजन की आवाज के अलावा वहां कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। अचानक फिर वही आवाज आई। इस बार कुछ अलग थी। एंबुलेंस के पीछे जहां लाश रखी थी। वहां से लगातार मुझे ठक की आवाज आ रही थी। जैसे कोई लोहे की रड या भारी चीज से जमीन पर बार-बार मार रहा हो। वो आवाज सुनकर मेरा दिल बैठ गया। डर पूरे शरीर में फैल गया। पसीने छूटने लगे। पीछे तो सिर्फ वो लाश थी। तो फिर यह आवाज कौन कर रहा है? अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने गाड़ी सड़क के एक किनारे रोक दी। इंजन चालू था और मैं ड्राइविंग सीट के पास वाली उस छोटी सी खिड़की या कैबिनेट से पीछे झांक कर देखने लगा। जहां से एंबुलेंस का पिछला हिस्सा दिखता है। अंदर हल्का अंधेरा था। लेकिन जितना दिख रहा था सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा था। सफेद चादर में लिपटा वो शव स्टेचर पर बिल्कुल स्थिर पड़ा था। और वहां कोई हरकत नहीं थी। तो फिर यह आवाज कहां से आ रही थी? मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही गाड़ी रोकी आवाज बंद हो गई। फिर से गहरा सन्नाटा फैल गया। मेरे गले से एक सूखी सी आवाज निकली। गला सूखने लगा था। समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। अबकी बार मैं गाड़ी से उतर कर पीछे जाकर देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था। तभी उस गुस्से से भरा चेहरा मुझे मेरी आंखों के सामने नजर आने लगा और मेरा पूरा शरीर कांप उठा। मैंने फिर से गाड़ी चलाना शुरू कर दिया। लेकिन फिर भी मन का डर कम नहीं हुआ। मुझे लग रहा था कि जो कुछ मेरे साथ हो रहा है वो कोई आम बात नहीं है। यह किसी बुरी ताकत का काम है। यह सोचते ही डर और भी ज्यादा बढ़ गया। खुद को संभालने के लिए मैंने एक कोशिश की। मेरी ड्राइविंग सीट के नीचे हमेशा मैं एक बोतल रखता था। सस्ती देसी शराब की। लंबी यात्रा में थकान मिटाने या दिमाग हल्का करने के लिए मैं कभी-कभी थोड़ा सा पी लिया करता था। मुझे पता है कि यह ठीक नहीं है। लेकिन उस वक्त मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। मैंने एक हाथ में स्टेयरिंग पकड़ा और दूसरे हाथ से सीट के नीचे से वह बोतल निकाली। जल्दी से मैं उसका ढक्कन खोला और दो-तीन घूंट गले से उतार दिए। जलन भरी तीखी तरल चीज गले से उतरते ही शरीर में एक झटका सा लगा। सोचा अब शायद डर कुछ कम हो जाएगा। कहते हैं कि शराब से हिम्मत बढ़ती है। अब शायद मुझे कुछ डरा नहीं पाएगा। कुछ भी हो जाए मैं हिम्मत से सामना कर पाऊंगा। मैंने फिर ध्यान सड़क पर लगाई। यह रास्ता बहुत सुनसान था। जब से इस रूट पर आया था, मैंने बस एक मोटरसाइकिल को गुजरते हुए देखा था। बाकी कोई गाड़ी नहीं। कोई आदमी नहीं और चारों तरफ बस एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था जैसे वहां की हवा तक रुक गई हो। मैं एंबुलेंस चला ही रहा था कि अचानक मेरी नजर आगे की सड़क पर जम सी गई। हेडलाइट की रोशनी में मैंने जो देखा उससे मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया। मैंने तुरंत ब्रेक मारा। सड़क के बिल्कुल बीच में मेरी एंबुलेंस से करीब 50-60 गज दूर सफेद कफ़न में लिपटा एक शव खड़ा था। हां, वो एक लाश थी। सिर से पैर तक सफेद कपड़े में ढकी हुई। बिल्कुल बीचों-बीच इस तरह खड़ी थी जैसे किसी ने जानबूझकर मेरा रास्ता रोका हो। आसपास कोई इंसान नहीं, कोई गाड़ी नहीं। सुनसान अंधेरी सड़क के बीचोंबीच एक लाश। वो नजारा इतना डरावना था कि मेरी शराब का नशा एक पल में उतर गया। दिमाग एकदम से ठंडा पड़ गया। मैं स्टीयरिंग पर झुक गया और भारी सांसे लेने लगा। अब मेरी आंखों के सामने दो लाशें थी। एक एंबुलेंस के अंदर और एक बाहर। और वो जो बाहर वाली थी वो मेरे रास्ते के बीचोंबीच खड़ी थी। मुझे समझ आ गया था कि मैं किसी खतरनाक जाल में फंस चुका हूं। निकलने का कोई रास्ता नहीं था। उस सफेद कपड़े में लिपटे शरीर को देखकर मैं बिल्कुल सुन्न हो गया। आधी रात वीरान सड़क और सड़क के बीच में एक लाश। यह बात मैं सह नहीं पा रहा था। इस पेशे में आने के बाद मैंने पुराने ड्राइवर से कई कहानियां सुनी थी। कई खौफ से भरे किस्से और रात को सड़क पर होने वाली अजीब और डरावनी घटनाओं की बातें सुनी थी। तब मैं हंसकर उन्हें टाल देता था। किस्सा सुनाने वाले को मैं पागल समझता था। लेकिन आज आज मेरी आंखों के सामने जो कुछ हो रहा था उसने मेरी सारी धारणाएं तोड़ दी थी। मैंने सिर झटक कर होश में आने की कोशिश की। दोनों हाथों से आंखें रगड़ी। मेरा मन सच और वहम के बीच फंसा हुआ था। पर नहीं मैंने जितनी बार भी देखा वो लाश वही थी। और हेडलाइट की रोशनी में वो साफ दिखाई दे रही थी। सफेद कफन के कपड़े में लिपटी सड़क के बीचोंबीच बिल्कुल शांत और स्थिर। अब डर ने पूरे शरीर पर कब्जा कर लिया था। मैं साफ महसूस कर रहा था कि वहां कुछ बहुत बुरा होने वाला है। यह कोई सिर्फ लाश नहीं है। कोई जाल है, कोई छलावा है या फिर शायद कोई डाकू गिरोह जो लाश का नाटक कर रहा हो ताकि मैं रुक जाऊं और वो मुझ पर हमला कर दे। फिर दिमाग में वही ख्याल लौट आया। नहीं यह इंसानों का काम नहीं है। इसके पीछे कुछ और है। कोई अंधेरा या कोई बुरी चीज किसी भी पल कुछ भी भयानक हो सकता है। और उस पल मेरे अंदर की आवाज चीखने लगी। दीपक भाग जा यहां से। अभी भाग जा नहीं तो मर जाएगा। मैं डर से जड़ हो चुका था। लेकिन मैं यह भी जानता था कि मुझे अपना सिर ठंडा और शांत रखना पड़ेगा। अगर मैं यहीं रुका तो मैं मर जाऊंगा। मैंने गाड़ी फिर से गियर में डाली और एक्सलरेटर पूरा दबा दिया। एंबुलेंस एक जोर का आवाज करते हुए आगे बढ़ी। अब दिमाग में एक ही बात चल रही थी। कुछ भी हो मैं रुकूंगा नहीं। सामने जो भी है उस चीज के ऊपर से गाड़ी निकाल दूंगा। अगर वो कोई इंसान है या कोई डाकू होगा तो डर के मारे अपने आप हट जाएगा और अगर नहीं हटा तो जो होना है होगा। मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो सड़क बहुत चौड़ी नहीं थी और वो लाश जैसी दिखने वाली चीज सड़क के बीचोंबीच थी। उसे बचाकर निकलना नामुमकिन था। एंबुलेंस की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी। मेरी नजरें उसी सफेद कपड़े पर जमी थी। दिल की धड़कनें इतनी तेज थी कि लगता था कि पसलियां फट जाएगी। जैसे-जैसे गाड़ी करीब पहुंची वो शरीर जरा भी हिला नहीं। मेरी रीड में ठंडी लहर दौड़ गई। मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अगले ही पल टायरों के नीचे किसी चीज के दबने की भारी ढप जैसी आवाज आई। मेरा पूरा शरीर कांप गया और तभी मेरे कानों में एक दिल दहला देने वाली चीख गूंज उठी। वो चीख इतनी तेज और डरावनी थी कि लगा मेरे कान के पर्दे फट जाएंगे। पर सबसे डरावनी बात यह थी कि वो चीख एंबुलेंस के बाहर से नहीं बल्कि अंदर से आई थी। मेरे पीछे की ओर से जहां वो अधेड़ उम्र के आदमी की लाश पड़ी थी। मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने किसी जिंदा इंसान के ऊपर गाड़ी चला दी हो और उसकी दर्द भरी चीख मेरे एंबुलेंस के अंदर गूंज रही हो। मेरे दिमाग ने काम करना जैसे बंद कर दिया था। मेरे हाथपांव अब जोर-जोर से कांप रहे थे। लेकिन फिर भी मैंने एक्सलरेटर से अपना पैर नहीं हटाया। मुझे पता था कि अगर मैं रुका तो शायद मैं बच नहीं पाऊंगा। मैं आसपास देखे बिना सिर्फ सामने देखते हुए गाड़ी चलाने लगा। मैंने एंबुलेंस को एक पल के लिए भी नहीं रोका। अब मुझे लगने लगा था कि जैसे मैं नर्क के रास्ते पर गाड़ी चला रहा हूं। थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने साइड मिरर की तरफ देखा और मैंने पीछे का नजारा देखने की कोशिश की। लेकिन हेडलाइट की रोशनी पीछे तक पहुंच नहीं रही थी। जहां तक नजर जा सकती थी, सिर्फ गहरा काला अंधेरा था। उस सफेद कपड़े में लिपटा शरीर जैसा वहां कुछ भी नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे पीछे की सड़क को अंधेरे ने निगल लिया हो। मेरा पूरा शरीर पसीने में भीग गया। मैं बड़ी सांसे ले रहा था और मेरे कानों में अब भी वो भयानक चीख गूंज रही थी। मेरे दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि कुछ भी हो। मुझे यह सड़क पार करनी है। मुझे लोकल एरिया तक पहुंचना है। मैंने गाड़ी की रफ्तार और बढ़ा दी और उस टूटी फूटी सड़क पर एंबुलेंस उछलती हुई चली जा रही थी। लेकिन मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं थी। मेरी आंखें सिर्फ सामने की अंधेरी सड़क पर थी और मेरा ध्यान-बार पीछे उस ठंडी शांत जगह पर जा रहा था। जहां मेरे साथ वो भयानक लाश थी। पता नहीं क्यों। पर मेरा मन यह कह रहा था कि यह रात अभी भी खत्म नहीं हुई है। मेरी हर सांस में डर और आतंक था और उस वक्त मैं बस एक ही काम कर रहा था कि पूरी ताकत से एक्सलरेटर दबाकर एंबुलेंस को आगे ले जा रहा था। अब शायद मैं अपनी मंजिल से सिर्फ 30-35 मिनट दूर था। यह शॉर्टकट का रास्ता लगभग खत्म होने वाला था। और कुछ दूर आगे जाने पर शायद मैं मेन सड़क पर निकल जाऊंगा और यह श्रापित रास्ता खत्म हो जाएगा। और यही सोचकर मुझे थोड़ी हिम्मत मिली। लेकिन मेरी यह सोच गलत थी। रात की सबसे डरावनी और सिहरन पैदा करने वाली घटना अब भी बाकी थी। मैं अपने आप को एक झूठी तसल्ली देते हुए गाड़ी चला रहा था कि अचानक एंबुलेंस की छत पर जोर से आवाज आने लगी। वो आवाज ऐसी थी जैसे कुछ लोग छपट कूद रहे हो। धमधम की आवाज थी और उस भारी आवाज से पूरी एंबुलेंस कांप रही थी। मुझे लगा शायद वो छट टूट कर मेरे सिर पर गिर जाएगी। और जैसे ही मुझे यह आवाज सुनाई दी मेरे अंदर के डर ने हद पार कर दी। मेरे उस डर को शब्दों में बयान करना नामुमकिन है। मेरी सारी हिम्मत अब एक पल में टूट चुकी थी। सारा शरीर पसीने से तरब-बतर हो गया था और तेजी से कांप रहा था। मैंने स्टीयरिंग पकड़ कर सीधे बैठने की कोशिश की। मुझ में अब हिम्मत नहीं थी कि मैं गाड़ी रोक कर देखूं कि छत पर कौन है। मैं डर के मारे उस आवाज से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करने लगा। लेकिन अब माहौल इतना डरावना हो गया था कि मेरा ध्यान दूसरी तरफ ले जाना नामुमकिन था। छत पर हो रही वह हरकत मेरे दिमाग पर चोट कर रही थी। तभी मुझे लगा कि जैसे मुझे अपने बाई साइड की खिड़की के पास अंधेरे में एक धुंधली सी शक्ल दिखाई दी हो। एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे दो बड़ी-बड़ी आंखें और एक अजीब सी शक्ल उस आईने के पास उभर आई हो। अब उस तरफ देखने की हिम्मत ही नहीं थी। पर फिर भी मैं अपने मन को रोक नहीं पाया। कांपते शरीर और नम आंखों से मैंने खिड़की की तरफ देखा। वहां कुछ नहीं था। सिर्फ गहरा काला अंधेरा था। लेकिन मैं महसूस कर सकता था कि वहां कोई था जो बाहर से मुझे देख रहा था। उसकी मौजूदगी को मैं अपनी त्वचा पर महसूस कर रहा था। मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। मेरी जान हलक में आ गई थी। और तब मैंने चुपचाप भगवान का नाम लेना शुरू कर दिया। मैंने हनुमान चालीसा बड़बड़ाने की कोशिश की। लेकिन लेकिन मेरे होठ हिल नहीं रहे थे। छत से आती वह डरावनी आवाज अभी तक रुकी नहीं थी। फिर मैंने अपने आप मन ही मन में कहा, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं घर आने तक गाड़ी नहीं रोकूंगा। मुझे अच्छे से पता था कि रुकने से मेरी जान को खतरा होगा। यह बुरी चीज मुझे रोकने के लिए सब कुछ कर रही है। और तभी अचानक जैसे यह सब शुरू हुआ था, वैसे ही अचानक छत पर हो रही कूदफान की आवाज पूरी तरह बंद हो गई। चारों ओर डरावना सन्नाटा छा गया। लेकिन इस सन्नाटे से मुझे कोई आराम नहीं मिला। बल्कि डर और भी ज्यादा बढ़ गया। मेरा मन यही कह रहा था कि यह सन्नाटा शायद किसी और भयानक घटना की शुरुआत है। और जैसे मैंने सोचा था वही हुआ। एंबुलेंस के अंदर जहां वो लाश रखे थे। वहां से मुझे गहरी भारी रोने की आवाज आने लगी। यह रोना किसी आम आदमी का नहीं था। आवाज इतनी दर्दनाक और भयानक थी कि मेरे शरीर के रोम रोम खड़े हो गए। मेरे हाथपांव ठंडे पड़ गए और खून जम सा गया। जब इंसान बहुत ऊंचाई से नीचे देखता है तो जैसे डर से हाथ-पांव शून हो जाते हैं। मेरी हालत भी बिल्कुल वैसे ही हो चुकी थी और अब मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा था। मेरे हाथ पसीने से इतने तर हो चुके थे कि स्टीयरिंग पकड़ना भी मुश्किल हो गया था। पीछे से किसी के रोने की आवाज धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही थी। पहले तो लगा कि जैसे कोई हल्की सिसकियां ले रहा है। लेकिन थोड़ी देर में ही वो सिसकियां एकदम दर्द भरी चीख में बदल गई। वो आवाज इतनी तेज और चुभने वाली थी कि मुझे लगा मेरे कान के पर्दे फट जाएंगे। घबराहट में मैंने दोनों हाथों से अपने कान बंद करने की कोशिश की। और फिर गाड़ी हिलते ही स्टीयरिंग को फिर से संभाला और तब मुझे उस चीख के बीच एक भारी गहरी आवाज सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे कोई सीधा मेरे कान के पास आकर बोल रहा हो। तूने मेरे ऊपर से गाड़ी चलाई। क्या तुझे यह लगता है कि तू आज जिंदा घर पहुंच पाएगा? [हंसी] और यह सुनते ही मेरा दिमाग सुनना पड़ गया। सांस रुक सी गई। मैं अपने कानों पर भरोसा नहीं कर पा रहा था। और तब मैं सोचने लगा क्या वो जो सड़क में बीच में खड़ा था वो सच में लाश थी? और यह सोचते ही मेरे शरीर का हर हिस्सा ठंडा पड़ गया। डर से मैं जड़ हो गया। और मुझे लगने लगा कि शायद आज मेरा आखिरी दिन है। वो भूतिया चीज मुझे मारने वाली है। और यह सोचते-सचते मेरी सांस घुटने लगी। तभी मुझे सामने मेन रोड की रोशनी नजर आने लगी। मतलब बस कुछ ही दूरी बाकी थी। लेकिन मेरे अंदर के डर ने मुझे ऐसे जकड़ रखा था कि मुझे लगा जैसे वो थोड़ी सी दूरी मैं कभी पार ही नहीं कर पाऊंगा। ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी एंबुलेंस पर किसी ने बहुत भारी बोझ डाल दिया हो। पूरा एक्सलरेटर दबाने के बाद भी मेरी गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी। बल्कि धीरे-धीरे उसकी रफ्तार और कम होती जा रही थी। मैं समझ गया कि कोई बुरी ताकत मुझे रोकने की कोशिश कर रही है। उस आवाज के बाद मैं लगभग बेजान सा हो गया था। मेरे दिमाग ने काम करना तक बंद कर दिया था। मैं बस किसी मशीन की तरह स्टीयरिंग पकड़े बैठा था। और पैर से मैंने एक्सलरेटर दबा रखा था। मेरी एंबुलेंस किसी अदृश्य ताकत से लड़ते हुए आगे बढ़ रही थी और शायद और शायद मैं अब मरने वाला था लेकिन जब मैं लाश के घर से करीब 10-15 मिनट की दूरी पर आ गया तभी अचानक सब कुछ शांत हो गया। ना वहां रोने की आवाज थी ना कोई हलचल थी। पूरा माहौल एकदम से सन्नाटे में बदल गया। वहां इतनी खामोशी थी कि मुझे अपने दिल के धड़कन तक साफ सुनाई दे रहे थे। यह अचानक आई चुप्पी मुझे और भी डरावने लगने लगी। मैं जानता था कुछ तो होने वाला है। तभी अचानक धड़म की आवाज आई। जैसे कुछ भारी चीज गिर गई हो। वो आवाज एंबुलेंस के अंदर से आई थी। मेरा दिल एकदम से उछल पड़ा। क्या वो लाश स्ट्रेचर से गिर गई थी? मैंने डरते हुए गाड़ी की रफ्तार धीमी की और सीट के पास लगे छोटे कांच से पीछे झांका और मैंने जो देखा उसे देख मेरे रोंगटे खड़े हो गए। वो स्ट्रेचर खाली था और वो सफेद कपड़े में लिपटी लाश। अब एंबुलेंस की लंबी साइड पर बैठी थी। ऐसे जैसे वो कोई जिंदा इंसान बैठा हो। उसका चेहरा ढका हुआ था। लेकिन उससे भी डरावनी चीज वो स्ट्रेचर की हालत थी। वो पूरी तरह मुड़ा हुआ था। जैसे किसी ने गुस्से में पकड़ कर उसे तोड़ दिया हो। और उस पल मेरे शरीर की ओर सोचने की ताकत खत्म हो चुकी थी। स्टीयरिंग बार-बार हाथ से छूट रहे थे। अब मैं बस भगवान का नाम लिए जा रहा था। डर इतना ज्यादा था कि आंखों से आंसू बह रहे थे। मैं बस भगवान से प्रार्थना किए जा रहा था कि किसी भी तरह उस लाश को मैं घर पहुंचा दूं और मैं बच जाऊं। मैंने अपना ध्यान हटाया और आखिरकार कांपते हुए आधी बेहोशी की हालत में मैं उस पते पर पहुंच गया और मेरे सामने एक पुराना मिट्टी का घर था। चारों तरफ अंधेरा और सन्नाटा। घर के बाहर तब कोई नहीं था। मैंने गाड़ी रोकी और मोबाइल निकाला और अस्पताल से मिले उस नंबर पर कॉल किया। पहली ही रिंग पर एक लड़के ने फोन उठाया। आप पड़ रहे है matrubharti पर हेलो हेलो उसकी आवाज सुनकर ही मुझे लगा कि वो दुख में है। और तब मैंने कहा मैं मैं एंबुलेंस से बोल रहा हूं। मैं आपके घर के सामने पहुंच गया हूं। और तब वो बोला हां क्या आप आ गए हैं? हम भी बाहर आ रहे हैं। मैंने फिर कहा जल्दी आइए, जल्दी बाहर आ जाइए। और इतना कहकर मैंने कॉल काट दी। अब मैं एक पल भी उस एंबुलेंस के साथ नहीं रुक सकता था। मैंने दरवाजा खोला और तुरंत बाहर निकल आया। थोड़ा दूर करीब 10-12 कदम जाकर मैं खड़ा हो गया। उस गाड़ी के पास रहना भी मुझे मुश्किल लग रहा था। मैं घर की तरफ देख रहा था। इस उम्मीद में कि कोई बाहर आ जाएगा। तभी पता नहीं क्यों। इस बार फिर से मेरा ध्यान उस एंबुलेंस की तरफ चला गया और वहां देखते ही मेरा दिल जैसे रुक सा गया जहां पर कुछ देर पहले मैं बैठा था वहां अब कोई और बैठा था जैसे पूरी तरह काले रंग की परछाई जैसा वो कोई इंसान हो उसका कोई चेहरा नहीं था बस एक काला आकार था एक काली परछाई थी और वो सीधा सामने देख रहा था बिना किसी हरकत के मैं लगभग 10 कदम दूर दूर था। लेकिन डर से अब मेरा दम घुटने लगा था। मैंने चीखना चाहा पर मेरी आवाज गले में ही अटक गई। और तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। उस स्पर्श के साथ ही मेरा पूरा डर एक चीख के साथ बाहर निकला। मैंने जोर से कहा हे भगवान और ये कहते हुए मैंने पलट कर देखा। देखा कि मेरे पीछे एक जवान लड़का खड़ा है। शायद यह वही लड़का था जिसे मैंने थोड़ी देर पहले कॉल किया था। मेरे डर से भरी चीख सुनकर वो काफी हैरान होकर मुझे देखने लगा। उसके चेहरे पर हैरानी और सवाल दोनों साफ नजर आ रहे थे। और इसी बीच उस घर से एक और उम्रदराज आदमी बाहर आ गया। और तब मुझे लड़के ने पूछा आपको क्या हुआ? आप अचानक ऐसे क्यों चिल्लाए? मैंने हड़बड़ाते हुए कांपती आवाज में जवाब दिया। अरे आपने तो मुझे डरा ही दिया था। मैं मैं सोच नहीं पा रहा था। बात पूरी करने से पहले ही मेरी नजर एंबुलेंस की तरफ चली गई। लेकिन अब ड्राइविंग सीट बिल्कुल खाली थी। वो काली परछाई। वो आकृति वहां से गायब थी। और फिर मैंने उससे कोई बात नहीं की। समझ गया कि अगर मैं उन्हें कुछ बताऊंगा तो वह मुझे पागल समझेंगे। मैंने जल्दी से उस आदमी और उस लड़की की मदद से उस लाश को नीचे उतारा। लेकिन जब मैंने एंबुलेंस का पिछला दरवाजा खोला तो मैं एक बार फिर से दंग रह गया। लाश उस मुड़ी स्टेचर पर नहीं बल्कि बिल्कुल नए और साफ सुथरे स्टेचर पर थी। ठीक वैसे जैसे अस्पताल से उठाई थी। और तब मुझे लगा कि अच्छा हुआ कि मैंने इन्हें कुछ कहा नहीं। नहीं तो यह सच में मुझे पागल समझ लेते। फिर मैंने किराए के पैसे लिए और बिना एक पल रुके वहां से आगे निकल गया। फर्क बस इतना था कि इस बार मैंने उस शॉर्टकट वाले श्रापित रास्ते की जगह लंबा लेकिन जाना पहचाना रास्ता चुना। पर फिर भी पूरे रास्ते भर मेरा शरीर कांपता रहा। मेरी आंखों के सामने बार-बार वही मरा हुआ चेहरा उभर रहा था। वो सफेद कफन में लिपटी हुई आकृति जो सड़क के बीच में खड़ी थी और ड्राइविंग सीट पर बैठी वो काली परछाई उस रात के बाद कई महीनों तक मैं एंबुलेंस नहीं चला पाया लेकिन पेट पालने के लिए आखिरकार मुझे फिर से उसी पेशे में लौटना पड़ा लेकिन उसके बाद फिर मैंने रात में कभी अकेले एंबुलेंस नहीं चलाई खास करके दूरदराज के रास्तों पर तो दोस्तों यह थी आज की कहानी आपको यह कहानी कैसी लगी मुझे कमेंट कर जरूर बताएं और हां अगर आपको कहानी पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करें और सबसे जरूरी बात कि वीडियो को हाइप भी करें और हो सके तो अपने दोस्तों के साथ या फिर जो भी डरावनी कहानियां सुनना पसंद करता हो ऐसे किसी के साथ यह कहानी शेयर करें। तो आज के लिए बस इतना ही। मिलते हैं अगले एपिसोड में ऐसे ही किसी डरावनी कहानी के साथ। तब तक के लिए शुभ रात्रि और धन्यवाद।