दोस्तों मेरा नाम सरदार मल है और मैं पंजाब के एक छोटे से गांव कोठी का रहने वाला हूं। आज जो डरावनी कहानी मैं आप लोगों के साथ शेयर करने जा रहा हूं वह मेरे जीवन में हुई एक बहुत ही भयंकर और डरावनी घटना के बारे में है। दोस्तों ट्रक ड्राइविंग के दौरान मेरे साथ अक्सर बहुत सी अजीब और भयानक घटनाएं घटती रहती हैं। उन्हीं भयानक घटनाओं में से मैं आज एक घटना के बारे में आप सबको बताने वाला हूं। मुझे यकीन है कि मेरी यह डरावनी कहानी सुनने के बाद आपकी धड़कनें बढ़ जाएंगी और आपका शरीर डर से कांप उठेगा। यकीन मानिए जब यह डरावनी घटना मेरे साथ घटी थी तो मैं कई रातों तक ठीक से सो नहीं पाया था और लगभग तीन महीनों तक मैं काम पर भी वापस नहीं गया था। मेरे हाथ ट्रक की स्टीयरिंग पकड़ते ही कांपने लगते थे। तो चलिए दोस्तों, मैं आपका ज्यादा समय ना लेते हुए सीधे कहानी पर आता हूं। मैं अक्सर माल से लदा ट्रक लेकर शाम के समय ही निकलता था। क्योंकि जब मैं शाम के समय ट्रक लेकर निकलता था तो कुछ ही घंटों बाद रात हो जाती थी और रात के समय सड़क पर ट्रैफिक काफी कम हो जाता था और ऐसे में मैं ट्रक तेजी से चलाकर अपने माल की डिलीवरी थोड़ा जल्दी पहुंचा देता था। ज्यादातर ट्रक ड्राइवर इसी तरह से माल की डिलीवरी पहुंचाते हैं जिससे उनका काफी समय बच जाता है। उस शाम एक ऐसी ही डिलीवरी लेकर मैं पंजाब से राजस्थान के लिए रवाना हुआ था। दिसंबर का महीना था। जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, वैसे-वैसे ठंड भी अपने पूरे सबाब पर चढ़ने लगी थी और सड़क पर धीरे-धीरे कोहरा भी छाने लगा था। गर्म कपड़ों के नाम पर मैंने अपने शरीर पर एक पतला सा ऊनी स्वेटर ही डाल रखा था। जब ठंड से मेरा पूरा शरीर कांपने लगा तो मैंने ट्रक में रखा जैकेट उठाकर पहन लिया। मैं शाम को माल की डिलीवरी लेकर लगभग 6:00 बजे निकला था और अब लगभग 10:00 बजने वाले थे। मतलब मैं 4 घंटों से लगातार ट्रक चला रहा था। मेरे पेट में भूख से चूहे कूदने लगे थे। क्योंकि जब मैं ट्रक लेकर वहां से निकला था तभी से मुझे थोड़ी बहुत भूख लगने लगी थी। पहले मैंने सोचा कि कुछ खा पीकर निकलूं। पर बाद में मैंने सोचा कि कहीं रास्ते में ही किसी ढाबे पर कुछ खा पी लूंगा। इसलिए वहां से बिना कुछ खाए पिए ही निकल पड़ा। मेरे लिए आज यह सड़क बिल्कुल अनजान थी क्योंकि इस सड़क पर मैं पहली बार ट्रक लेकर निकला था। मुझे तो ठीक से यह रास्ता भी नहीं पता था। मैं तो बस अपने अनुमान से ही आगे बढ़ता जा रहा था। वो सड़क दिखने में काफी सुनसान दिखाई दे रही थी और मैं उसी सड़क पर लगभग 1 घंटे से चल रहा था। पर मुझे अपने ट्रक के अलावा और कोई दूसरा वाहन उस सड़क से गुजरता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था। मैं काफी देर से सड़क के अगल-बगल में देखता हुआ चल रहा था ताकि शायद कोई छोटा-मोटा ढाबा या फिर चाय की कोई टपरी ही दिख जाए और मैं वहां पर रुककर कुछ खा पी सकूं और आगे के रास्ते के बारे में भी जानकारी ले सकूं। पर मुझे काफी देर से उस सड़क के आसपास कुछ भी ऐसा नजर नहीं आ रहा था। इसी वजह से मैं काफी परेशान होने लगा था क्योंकि मेरी भूख लगातार बढ़ती ही जा रही थी। रात के साथ-साथ ठंड का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा था। घने कोहरे ने सड़क को जकड़ना शुरू कर दिया था। इसलिए सामने देखने में काफी समस्या हो रही थी। मैंने अब ट्रक की स्पीड को थोड़ा कम कर दिया था क्योंकि ऐसा ना करने पर सामने से आते हुए किसी दूसरे वाहन से मेरा ट्रक टकराकर किसी बड़ी दुर्घटना का शिकार भी हो सकता था। हर साल ऐसी ही भयानक ट्रक दुर्घटनाओं में हजारों ट्रक ड्राइवर भाई अपनी जान गवा देते हैं और अपने पीछे रोता बिलखता अपना परिवार छोड़ जाते हैं। इसलिए ऐसे खराब मौसम में बड़ी ही सावधानी से ट्रक ड्राइविंग करनी चाहिए और शराब इत्यादि के नशे में तो ट्रक बिल्कुल भी नहीं चलाना चाहिए। खैर मैं अपनी कहानी पर आता हूं। लगभग आधा घंटा और आगे चलने पर मुझे सड़क के किनारे एक छोटी सी चाय की टपरी सी दिखी। तो मैंने जल्दी से ट्रक को वहीं पर रोक कर सड़क के किनारे एक तरफ लगा दिया और ट्रक से नीचे उतर कर उस चाय की टपरी की ओर चल दिया। घास-फूस से बनी उस चाय की टपरी की छत से लटका एक पुराना सा लाल अटेन जल रहा था। जिसकी धीमी रोशनी उस छोटी सी चाय की टपरी को प्रकाश देने की नाकाम कोशिश कर रही थी। मैंने उस चाय की टपरी के सामने पहुंचकर देखा तो उस टपरी के भीतर पड़ी एक छोटी सी बेंच पर अपने हाथ पैर समेटे हुए एक 60 से 65 साल का बुजुर्ग बड़ी ही गहरी नींद में सो रहा था। उसका मुंह बिल्कुल खुला हुआ था और उसके कर्कश और तेज खर्राटों से वो चाय की पूरी टपरी गूंज रही थी। मैं उसके पुराने और गंदे से दिखने वाले उस छोटे से काउंटर पर हाथ पटकते हुए उसे जगाने की कोशिश करते हुए बोला, हेलो दादा जी, क्या कुछ खाने के लिए मिल सकता है? किंतु वो बुजुर्ग बहुत ही गहरी नींद में सोया हुआ था। इसीलिए मेरी आवाज का उस पर कोई भी असर होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था। वो तो बस पूरी मस्ती में खर्राटे भरते हुए सो रहा था। मैंने एक बार फिर से उस काउंटर पर थोड़ा तेजी से हाथ पटकते हुए वही शब्द दोहराते हुए कहा, हेलो दादा जी, क्या कुछ खाने के लिए मिल सकता है? अबकी बार उस बुजुर्ग के शरीर में थोड़ी सी हलचल होती हुई दिखाई दी। उसने अपना खुला हुआ मुंह बंद करते हुए आंखें खोलकर मेरी तरफ देखा और धीरे से उठकर बेंच पर बैठ गया। वो कुछ देर तक यूं ही बेंच पर बैठा रहा। वो अभी-अभी गहरी नींद से उठा था। इसलिए शायद वह अपनी नींद की खुमारी को उतार रहा था। कुछ देर बाद उसने मेरी तरफ देखते हुए मुझसे पूछा कि आपको क्या चाहिए बाबूजी? इतनी रात में मेरे पास कुछ बचा भी नहीं है। आप कहेंगे तो बना दूंगा लेकिन थोड़ा समय जरूर लगेगा। भूख से मेरा बहुत बुरा हाल था और आगे सड़क पर कोई होटल या ढाबा मिलने की बहुत ही कम उम्मीद थी। इसलिए मैंने उस बुजुर्ग से हां में सिर हिलाते हुए कहा कि ठीक है। दादाजी बना दीजिए। मैं इंतजार कर लूंगा। वैसे आपके पास इस वक्त क्या-क्या बन सकता है? इस पर उस बुजुर्ग ने मुझे बताया कि इस वक्त वह चाय और समोसे के अलावा और कोई भी दूसरी चीज नहीं बना सकता है क्योंकि दूसरी और कोई चीज बनाने के लिए उसके पास सामान खत्म हो गया है। मैंने उससे फिर से हां में सिर हिलाते हुए दोबारा कहा कि ठीक है बना दीजिए। पेट में बहुत देर से चूहे कूद रहे हैं। जो भी मिलेगा उससे पेट भर लूंगा। यह सुनकर उस बुजुर्ग ने मुझसे कहा कि कुर्सी ले लीजिए बाबू जी मैं जल्दी से बना देता हूं। मैं चाय की उस टपरी के बाहर पड़ी एक प्लास्टिक की टूटी फूटी सी कुर्सी पर जाकर बैठ गया और वो बुजुर्ग अपने काम में लग गया। मैं जिस कुर्सी पर बैठा हुआ था उसके पास ही सूखी लकड़ियों का एक बड़ा सा ढेर लगा हुआ था। शायद इनका इस्तेमाल वो बुजुर्ग इस कड़ाके की ठंड में अपने और अपने ग्राहकों के हाथ सेकने में करता था। मैंने सोचा क्यों ना इन लकड़ियों के ढेर से कुछ लकड़ियां निकालकर उन्हें जलाया जाए और ठंड से अकड़ चुके अपने शरीर को कुछ राहत पहुंचाई जाए। मैंने वैसा ही किया। कुछ ही देर में मैंने उन लकड़ियों के ढेर में से कुछ सूखी हुई लकड़ियां निकालकर अपनी कुर्सी के पास ही एक छोटा सा ढेर लगा दिया। फिर मैंने उस बुजुर्ग से माचिस मांगकर उन लकड़ियों में आग लगा दी। और थोड़ी ही देर में वे सूखी हुई लकड़ियां तेजी से जल उठी। अब ठंडक मुझसे कोसों दूर भाग खड़ी हुई और मुझे काफी राहत महसूस होने लगी थी। मैंने जब अपनी पेंट की जेब से अपना मोबाइल निकालकर उसमें समय देखा तो रात के करीब 11:30 बजने वाले थे। मैंने फोन को चुपचाप फिर से वापस अपनी पेंट की जेब में ही रख लिया और जलती हुई लकड़ियों में हाथ सेकने लगा। मैंने जब उस बुजुर्ग की ओर मुड़कर देखा तो वह भट्टी पर कढ़ाई चढ़ाकर उसमें तेल गर्म कर रहा था। कुछ देर बाद जब तेल खौलने लगा तो उसने उसमें एक-एक करके 10-12 समोसे तलने के लिए छोड़ दिए और एक बड़ी सी कलछी लेकर उन्हें इधर-उधर हिलाने डुलाने लगा। तभी मेरी नजर उस चाय की टपरी के सामने से गुजरने वाली उस सड़क पर गई तो मुझे कुछ अजीब सा दिखाई दिया। मैंने देखा कि एक लड़की उस घने कोहरे को चीरते हुए पैदल ही अपनी स्कूटी को खींचते हुए उसी चाय की टपरी की ओर चली आ रही थी। जिस पर मैं बैठा हुआ था। कुछ देर बाद वह उसी तरह से स्कूटी को खींचते हुए उस चाय की टपरी के पास आकर रुक गई। फिर उसने स्कूटी को एक तरफ स्टैंड लगाकर खड़ा कर दिया और वह मेरे सामने जल रही आग के पास आकर चुपचाप खड़ी हो गई। मुझे उसे देखकर बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था क्योंकि मैं यह मन ही मन सोच रहा था कि आखिर वह इतनी रात में इस सुनसान सड़क पर वह भी बिल्कुल अकेली निकली ही क्यों थी। आखिर उसकी ऐसी क्या मजबूरी रही होगी जो उसे आधी रात के समय इस सुनसान रास्ते पर निकलना पड़ा। मेरी जिज्ञासा इतनी अधिक बढ़ गई थी कि मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था। तो मैंने उससे पूछ ही लिया कि मैडम क्या आपकी स्कूटी खराब हो गई है और आप इतनी रात में इस सुनसान सड़क पर क्या कर रही हैं? मैं यह पूछकर काफी देर तक उसका मुंह ताकता रहा कि शायद वह मुझे कोई जवाब दे। पर उसने मेरे प्रश्न का कोई भी जवाब नहीं दिया और चुपचाप खड़ी-खड़ी मुझे घूरती रही। उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे ठंड और थकान ने उसे बहुत बुरी तरह से थका दिया है। इसलिए मैंने कुर्सी से उठकर कुर्सी उसकी तरफ बढ़ाते हुए उससे कहा कि मैडम आप इस कुर्सी पर आकर बैठ जाइए। मैं आपके लिए कुछ और आग जला देता हूं। यह कहते हुए मैं उस लकड़ियों के ढेर की तरफ लकड़ियां लेने के लिए चला गया। इस बीच वह चुपचाप कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने हाथों से ग्लव्स निकालकर आग सेकने लगी। मैं उसे लकड़ियों के ढेर से लकड़ियां निकालते वक्त बार-बार मुड़कर देखे जा रहा था क्योंकि मुझे उस पर थोड़ा-थोड़ा शक हो रहा था कि कहीं वह कोई चुड़ैल तो नहीं है। क्योंकि मेरे साथ ट्रक ड्राइविंग के दौरान ऐसी बहुत सी घटनाएं पहले भी घट चुकी थी। जैसा कि मैंने कहानी शुरू करने से पहले ही आप लोगों को बताया था। तभी मेरे दिमाग में एक खुरापाती विचार आया। मैंने सोचा कि चुड़ैल के पैर तो आगे की बजाय पीछे की तरफ मुड़े हुए होते हैं। इसीलिए मैंने उसके करीब जाकर उसके पैरों से उसके इंसान या फिर चुड़ैल होने का पक्का अनुमान लगाने की सोची। यह मुझे किसी इंसान और चुड़ैल के बीच में अंतर करने का सबसे आसान और विश्वसनीय तरीका लगा। क्योंकि इस तरीके में मुझे सामने वाले का कोई एक्सरे या फिर किसी प्रकार का ब्लड सैंपल नहीं लेना था। मैं कुछ सूखी हुई लकड़ियां अपनी बगल में दबाकर उसकी ओर चल पड़ा। अंधेरा होने के कारण यहां से उसके पैर ठीक तरह से दिखाई नहीं दे रहे थे। फिर भी मैं उसके पैरों की ही तरफ अपनी आंखें गड़ाए आगे बढ़ता जा रहा था। जब मैं उसके काफी करीब पहुंच गया तो मुझे उसके दोनों पैर बिल्कुल साफ नजर आने लगे। मैंने देखा कि उसके पैर सचमुच के पीछे की ओर ही मुड़े हुए थे। इसका मतलब यह था कि वह एक चुड़ैल ही थी। यह देखकर मेरा गला सूखने लगा और मैं डर के मारे थरथर कांपने लगा। मैं अपने शरीर की पूरी ताकत लगाकर चिल्लाना चाहता था। पर मेरे गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी जैसे उसने मेरे गले से आवाज को निकलने से रोक दिया हो। मैं इतना ज्यादा डर गया था कि मेरी आंखें उसके पीछे की तरफ मुड़े हुए पैरों से हट ही नहीं रही थी। मेरे अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि मैं अपना सिर उठाकर उसके चेहरे की तरफ देख सकूं। फिर मैंने अपनी पूरी हिम्मत बटोर कर उसके चेहरे की तरफ देखा तो मेरी हंसी ही छूट गई। मैं अपने आप पर ही जोर-जोर से हंसना चाहता था क्योंकि उस लड़की के पैर पीछे की ओर मुड़े हुए नहीं थे। बल्कि वो पीछे की तरफ मुड़कर खड़ी हुई थी और उसकी पीठ मेरी तरफ थी। खैर, मैंने किसी तरह अपनी हंसी को रोका और अपने बगल में दबी हुई उन सूखी लकड़ियों को उस जलती हुई लकड़ियों के ढेर पर रख दिया। कुछ ही देर में वो सूखी हुई लकड़ियां भी जल उठी, और उनकी लपटें ऊपर की ओर बढ़कर आसपास रोशनी और गर्माहट फैलाने लगी। अब वो लड़की चुपचाप खड़ी घने कोहरे को देख रही थी। बाद में मुझे लगा कि वह उस घने कोहरे को नहीं देख रही थी बल्कि अपने पीछे के शरीर को आग में सेक रही थी। कुछ देर बाद वो मेरी तरफ मुड़कर उस कुर्सी पर बैठ गई जो मैंने ही उसे कुछ देर पहले बैठने के लिए दी थी। उसने बड़ी-बड़ी नीली आंखों से मेरी तरफ देखते हुए मुझे बताया कि वह यहां से करीब 10-12 कि.मी. दूर स्थित अपने घर की तरफ जा रही थी। पर बदकिस्मती से उसकी स्कूटी खराब हो गई और उसने जब रास्ते में इस चाय की टपरी को देखा तो यहीं पर रुक गई। मैं चुपचाप बैठा उसकी तरफ देखते हुए उसकी बातें सुन रहा था। आग की लालाल लपटों में उसका सुंदर चेहरा भी लाल रंग का दिखने लगा था। उसने काले रंग की जींस और एक खूबसूरत सा दिखने वाला गुलाबी रंग का लेडीज जैकेट पहन रखा था। देखने में उसकी उम्र यही कोई 20 से 21 साल रही होगी। उसने मुझे आगे बताते हुए कहा कि वह पास के ही शहर में एक शॉपिंग मॉल में सेल्स गर्ल का काम करती है और इन दिनों उस शॉपिंग मॉल में एक बहुत ही बढ़िया स्कीम चल रही है जिससे वहां पर बहुत सारे कस्टमर्स की भीड़ लगी रहती है जिस कारण शाम होते-होते बहुत सारा सामान और कपड़े इधर-उधर बिखर जाते हैं। जब रात में करीब 9:00 बजे शॉपिंग मॉल कस्टमर्स के लिए बंद हो जाता है तो मॉल का पूरा स्टाफ मिलकर उन बिखरी हुई चीजों को ठीक करके उनकी जगह पर रखता है। उसके बाद ही हमें वहां से घर जाने की इजाजत मिलती है। आज मॉल में काफी ज्यादा कस्टमर्स आ गए थे। इसलिए हमारा काम भी बहुत बढ़ गया था और मुझे वहां से निकलते-निकलते इतनी देर हो गई। फिर बीच रास्ते में ही मेरी स्कूटी ने भी धोखा दे दिया। उसने मुझे एक ही सांस में सब कुछ बता दिया और चुप हो गई। तभी वह चाय की टपरी वाला बुजुर्ग आकर मेरे सामने खड़ा हो गया। उसने अपने एक हाथ में चाय के साथ समोसे की ट्रे और दूसरे हाथ में एक प्लास्टिक का स्टूल पकड़ रखा था। तभी उसने वो स्टूल मेरे बिल्कुल पास रख दिया और दूसरे हाथ में पकड़ी हुई चाय और समोसे की ट्रे उस स्टूल पर रखते हुए मुझसे बोला कि लीजिए। बाबूजी अपने गरमा गरम चाय और समोसे। यह कहने के बाद वह फिर से अपनी चाय की टपरी में घुस गया। मैंने चाय की उस टपरी के भीतर से एक दूसरी कुर्सी निकाल ली और उस स्टूल के पास बैठ गया जिस पर चाय और समोसे की ट्रे रखी हुई थी। मुझे पहले से ही बहुत जोर की भूख लगी हुई थी और जब मैंने अपने सामने गरमागरम चाय और समोसे रखे हुए देखे तो मेरे सब्र का बांध टूट गया। मैं उस ट्रे से झट से एक समोसा उठाकर खाने लगा। समोसा बड़ा ही स्वादिष्ट था। वैसे जब भूख जोर की लगी हो और पास कुछ खाने को ना हो तो सूखी रोटियां भी मालपुए को मात देने लगती हैं। मैं उन समोसों पर ऐसे टूट पड़ा था कि जैसे मैंने अपने जीवन में कभी समोसे देखे ही ना हो। तभी मेरी नजर उस लड़की पर गई तो मुझे होश आया कि मैंने तो उससे खाने के लिए पूछा ही नहीं। मैंने उसकी तरफ देखा तो वह चुपचाप बैठी अपना सिर नीचे झुकाए जमीन की ओर देख रही थी। मैंने उसकी ओर समोसों की प्लेट बढ़ाते हुए उससे पूछा कि क्या आप समोसे खाएंगी? तो उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह समोसे नहीं खाती हैं। तभी मुझे याद आया कि उसकी स्कूटी तो खराब हो चुकी है। यह ख्याल आते ही मुझे उसकी चिंता होने लगी। आखिर वह रात में इतनी दूर अकेले इस खटारा स्कूटी को खींचते हुए कैसे जाएगी? मैंने उससे यही सवाल पूछा तो उसने कहा कि वह किसी से लिफ्ट मांगकर चली जाएगी। जब मैं खा पीकर अच्छी तरह से टाइट हो गया तो मैं कुर्सी से उठकर चाय की टपरी के भीतर बैठे उस बुजुर्ग को पैसे देने के लिए उसके पास चला गया। तभी मुझे याद आया कि मुझे आगे के रास्ते के बारे में बुजुर्ग से कुछ जानकारी लेनी चाहिए। क्योंकि मैं उस रास्ते पर पहली बार माल की डिलीवरी लेकर निकला था। इसीलिए वो रास्ता मेरे लिए बिल्कुल अनजान था। मैंने अपनी पेंट की जेब से कुछ रुपए निकालकर उस बुजुर्ग के हाथ में थमाते हुए उससे पूछा कि क्या यह रास्ता मुझे किसी हाईवे पर पहुंचा देगा? तो उसने मुझसे कहा कि वह यहां का नहीं है। वह तो बिहार का रहने वाला है और वह पिछले हफ्ते ही यहां पर रहने के लिए आया है। इसीलिए उसे यहां के बारे में अभी कुछ पता नहीं है। मैंने उससे कहा कि ठीक है दादा जी। मैं आगे किसी से पूछ लूंगा। यह कहते हुए मैं वहां से निकलने को हुआ। तभी पीछे से उस लड़की ने मुझे आवाज लगाते हुए कहा कि उसका घर हाईवे के पास ही है। अगर आप मुझे लिफ्ट दे दें तो मैं आपको रास्ता भी दिखा दूंगी। मैंने उससे हां में सिर हिलाते हुए कहा कि ठीक है चलिए। तो मेरे ऐसा कहने पर वह अपनी स्कूटी को लॉक करके मेरे पीछे चल पड़ी। जब हम दोनों ट्रक में बैठ गए तो मैं ट्रक स्टार्ट करके चल दिया। मैंने ट्रक में लगी घड़ी की तरफ देखा तो रात का लगभग 1:00 बजने वाला था। चारों तरफ घने कोहरे के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बार-बार ट्रक के शीशे वायपर चलाकर साफ कर रहा था क्योंकि कोहरा ट्रक के शीशों पर आकर जम रहा था। जिससे मुझे सड़क पर देखने में काफी कठिनाई हो रही थी। इसी कारण मैं ट्रक को भी बहुत ही धीमी गति से चला रहा था। मैं बार-बार अपने बगल में बैठी उस लड़की को सामने लगे शीशे में देख रहा था। क्योंकि मेरे मन में उसके चुड़ैल होने की आशंका अभी भी बनी हुई थी। क्योंकि मैंने कहीं से सुन रखा था कि भूत और प्रेत शीशे में अक्सर दिखाई नहीं देते। इसी वजह से मैं कुछ दूर चलने के दौरान ही उसे लगभग 8 से 10 बार शीशे में देख चुका था। लेकिन हर बार उसका खूबसूरत चेहरा शीशे में मुस्कुराता हुआ दिख जाता था। धीरे-धीरे मेरे मन से उसके चुड़ैल होने का वहम दूर होता जा रहा था। और अब मैं चिंता मुक्त होकर ट्रक चलाने लगा था। धीरे-धीरे कोहरा इतना अधिक बढ़ गया था कि मुझे आगे ठीक से देखने में काफी कठिनाई होने लगी थी। कुछ देर बाद अचानक मेरी नजर ट्रक में लगे उस शीशे पर गई तो मैं डर से कांपने लगा। क्योंकि वह लड़की ट्रक की सीट से गायब थी। मैंने उसे पीछे मुड़कर देखा तो वह सचमुच वहां नहीं थी। फिर मैंने देखा कि वह लड़की ट्रक की खिड़की के बिल्कुल पास बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी। शायद इसी कारण वह शीशे में दिखाई नहीं दे रही थी क्योंकि वह शीशे से काफी दूर थी। मैंने उसकी तरफ तिरछी नजरों से देखते हुए उसका नाम पूछा तो उसने मुझे बताया कि उसका नाम रागिनी है। मैंने उसके नाम की तारीफ करते हुए उससे कहा कि उसका नाम उसी की ही तरह काफी सुंदर है। तो वह मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखने लगी। उसका मुस्कुराता हुआ खूबसूरत चेहरा और प्यार भरे लहजे में बात करना मुझे काफी पसंद आने लगा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं उसके वश में होने लगा था। अब मैं उसके बताए गए रास्ते पर ट्रक चला रहा था क्योंकि मुझे आगे का रास्ता बिल्कुल भी पता नहीं था। कुछ देर बाद जब उसने मुझे जंगल के बीच से गुजरने वाले एक रास्ते पर मुड़ने के लिए कहा तो मैंने ट्रक को उसी रास्ते पर मोड़ दिया। वह रास्ता काफी उबड़ खाबड़ और गड्ढों से भरा हुआ था। अभी मैं उस रास्ते पर कुछ ही दूर आगे चला था कि मेरे ट्रक के आगे से अचानक एक बड़ा सा जानवर निकलकर जंगल में कहीं खो गया और मेरा ट्रक अनियंत्रित होकर सड़क के किनारे लगे एक बड़े से पेड़ में जा टकराया और इसी के साथ मेरा सिर भी ट्रक में लगे शीशे से टकरा गया। शीशे में टकराने से मेरे सिर में भयानक दर्द होने लगा तो मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। फिर मुझे अपने हाथ की उंगलियों में कोई चिपचिपा सा तरल पदार्थ महसूस हुआ तो मैंने हथेली को आगे लाकर देखा तो उसमें मेरे सिर से निकलने वाला खून लगा हुआ था। इसका मतलब यह था कि मेरा सिर फट चुका था। मैंने उस लड़की की तरफ मुड़कर देखा तो वह सही सलामत बैठी थी। उसने मेरे सिर से खून निकलता हुआ देखा तो वह अपनी जींस से रुमाल निकालकर मेरे सर में बांधने लगी। चोट ज्यादा गहरी नहीं थी इसलिए जल्दी ही खून बहना बंद हो गया। जिसके बाद मैं ट्रक से नीचे उतर कर ट्रक में हुए नुकसान की जांच पड़ताल करने लगा। मैंने देखा कि ट्रक का अगला हिस्सा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था और वह ट्रक अब चलने की हालत में बिल्कुल नहीं था। यह देखकर मैं वहीं सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया। क्योंकि मुझे इस दुर्घटना से काफी तगड़ा नुकसान हुआ था। तभी मुझे अपने सिर पर किसी के मुलायम हाथ रखने का एहसास हुआ। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे पीछे वही लड़की खड़ी मुझसे कह रही थी कि परेशान मत होइए। सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसने मुझसे कहा कि उसका घर यहां से कुछ ही कदमों की दूरी पर है। यदि आप चाहे तो मेरे घर पर चलकर रात भर रुक सकते हैं। मेरा ट्रक माल से भरा हुआ उस सुनसान जगह पर दुर्घटनाग्रस्त होकर खड़ा था जिसे छोड़कर जाने का मतलब था कि और ज्यादा नुकसान उठाना। किंतु इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए मैं उसके पीछे-पीछे उसके घर की तरफ चल पड़ा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह मुझे अपनी तरफ खींच रही हो। कुछ देर तक हम दोनों उसी रास्ते पर आगे चलते रहे। फिर आगे हमें उस रास्ते से लगता हुआ एक सकरा और कच्चा रास्ता दिखाई दिया तो वह उस कच्चे रास्ते पर मुड़ गई। मैं भी चुपचाप उसी के पीछे चल पड़ा। कुछ दूर और आगे चलने पर हम दोनों एक छोटे से घर के सामने खड़े थे। वो घर देखने में काफी पुराना और जजर सा लग रहा था। मैंने घर के बाहर से ही यह अनुमान लगा लिया था कि उसमें महज दो या तीन कमरे होंगे। तभी उस लड़की ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए मुझे बताया कि यही मेरा घर है और उसने अपनी जींस से एक चाबी निकाल कर उसका गेट खोल दिया। फिर हम दोनों घर के भीतर चले गए। घर के भीतर पहुंचकर मैंने देखा कि घर की दीवारों और फर्श पर काफी सीलन थी और वहां पर एक अजीब सी बदबू फैली हुई थी। उसने मेरा बिस्तर अपने कमरे के बगल वाले कमरे में लगा दिया और वहां से जाने से पहले मुझसे कहती गई कि मेरा कमरा आपके बगल वाला है। अगर आपको किसी चीज की जरूरत पड़े तो मुझे आवाज लगा देना। मैंने उसे हां में सिर हिलाते हुए कहा कि ठीक है मैडम। तब वह मुझे गुड नाइट कहते हुए दरवाजा बाहर की ओर खींच कर उस कमरे से निकल गई। मैं दिन भर का थका हारा बेड पर जाकर गिर गया और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं नींद के आगोश में चला गया। मुझे अभी सोए हुए मुश्किल से एक आधा घंटा ही हुआ होगा कि तभी अचानक मेरी नींद खुल गई। मैंने अपने कमरे के बगल वाले कमरे से एक अजीब सी आवाज आती हुई सुनी। जैसे कोई कुछ नोचनोच कर खा रहा हो। मैं बिस्तर पर उठकर बैठ गया और उस कमरे की दीवार को ध्यान से देखने लगा। आवाज उसी कमरे से आ रही थी। मैं बिस्तर से उठा और उस दीवार के पास जाकर उसमें कान लगाकर वो आवाज सुनने की कोशिश करने लगा। तभी मैंने उस दीवार पर एक छोटा सा छेद बना हुआ देखा तो झट से उसमें आंखें लगाकर भीतर देखने लगा। उस दीवार पर बने उस छोटे से छेद से मैंने जैसे ही उस दूसरे कमरे के भीतर का नजारा देखा तो मेरे होश उड़ गए और मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। मैंने देखा कि वो खूबसूरत सी दिखने वाली लड़की एक मरे हुए आदमी की सड़ी हुई लाश को अपने दांतों से नोचनोच कर खा रही थी। उसका सुंदर सा दिखने वाला चेहरा अब बिल्कुल भयानक हो चुका था। सफेद आंखें, कंधों पर बिखरे हुए खुले बाल और उसके बड़े-बड़े नुकीले दांत, उस लाश के खून और मांस से सने हुए थे। वो बिल्कुल किसी जानवर की तरह उस लाश को खा रही थी और उस सड़ी हुई लाश की बदबू पूरे कमरे में फैली हुई थी। मैं बचपन से ही नरभक्षी चुड़ैलों के बारे में सुनता आया था। पर आज अपनी आंखों के सामने देख भी रहा था। वो दृश्य देखकर मेरे शरीर का रोम रोम डर से कांपने लगा था। मैं जितना जल्दी हो सके वहां से निकलना चाहता था। इसलिए मैं भागकर दरवाजे के पास गया तो देखा दरवाजा बाहर से बंद था। मैं दरवाजे को भीतर की तरफ खींच कर खोलने की कोशिश करने लगा। किंतु वह दरवाजा अपनी जगह से हिला तक नहीं। मैं थक हार कर अपना सिर पकड़े हुए बेड पर जाकर बैठ गया। मुझे पूरा यकीन था कि कमरे का दरवाजा बाहर से उस नरभक्षी चुड़ैल ने ही बंद किया होगा और वह उस लाश को खाने के बाद मुझे मार कर खाएगी। शायद वह इसी तरीके से अपने शिकार को इस घर तक लाती हैं और इस कमरे में बंद कर देती हैं और फिर उन्हें मार कर खा जाती हैं। पर उसके बाद कुछ देर सोचकर मैंने उस कमरे के दरवाजे की कुंडी भीतर से लगा दी ताकि वह नरभक्षी चुड़ैल बाहर से इस कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर ना आ सके। तभी मुझे याद आया कि मेरा मोबाइल तो मेरी पेंट की जेब में ही है। यह विचार आते ही मेरी आंखें चमक उठी। किंतु जब मैंने अपनी पट की जेब में हाथ डाला तो मेरी आंखों की चमक फिर से धुंधली हो गई। क्योंकि मोबाइल मेरी पेंट की जेब से गायब था। यह देखकर मुझे काफी हैरानी हुई क्योंकि मोबाइल तो मेरी पेंट की जेब में ही रखा हुआ था। पर अब ना जाने वो कहां गुम हो गया था। वो नरभक्षी चुड़ैल अब भी उस दूसरे कमरे में उस सड़ी हुई लाश को खा रही थी। और उस लाश को नोचने व फाड़ने की आवाज मेरे कानों के पर्दों से टकराकर मुझे पागल कर रही थी। आखिर मैं यहां आया ही क्यों था? यह सोचसच कर मुझे अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा था। कुछ देर बाद मुझे उस कमरे में देखने की जिज्ञासा हुई तो मैं उस छेद में आंखें लगाकर भीतर देखने लगा। मैंने देखा कि उसने लाश खाना बंद कर दिया था और उसके हाथों में एक बड़ा सा नुकीला लोहे का भाला जैसा कोई औजार था जिसे वह एक छोटे से पत्थर के टुकड़े से रगड़ कर तेज कर रही थी। तभी उसने अपनी जींस से एक मोबाइल बाहर निकाला। मैंने जब ध्यान से उस मोबाइल फोन को देखा तो मुझे पता चला कि वह तो मेरा ही फोन है जो मेरी पेंट की जेब से गायब था। फिर वो अपने एक हाथ में वो नुकीला भाला पकड़ और दूसरे हाथ में मेरा फोन पकड़ उस कमरे से बाहर निकल गई। मैं चुपचाप आकर अपने बिस्तर पर बैठ गया। तभी किसी ने बाहर से मेरे कमरे के दरवाजे पर धक्का दिया तो मैं डर से कांप उठा। बाहर से वह नरभक्षी चुड़ैल अब पहले की ही तरह मुझे उस लड़की की आवाज में बड़े प्यार से कह रही थी कि आपका मोबाइल मेरे पास छूट गया था। दरवाजा खोल कर ले लीजिए। लेकिन मुझे पता था कि वह मुझे मारने के लिए दरवाजे पर नुकीला औजार लिए खड़ी है। और जैसे ही मैं दरवाजा खोलूंगा, वो मुझे मार देगी। इसलिए मैं सतर्क होकर दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया। तभी मेरे दिमाग में एक तरकीब आई। मैंने झट से दरवाजे की कुंडी खोली और दरवाजे के साइड में हो गया। जैसे ही मैंने दरवाजा खोला उसने बिजली की तरह वो नुकीला औजार मुझ पर चला दिया। लेकिन तब तक मैं दरवाजे के साइड में हो चुका था। इसलिए उसका वार खाली चला गया। मैंने पूरी ताकत लगाकर उस नुकीले औजार को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और उस औजार समेत उस चुड़ैल को भी उस कमरे के भीतर खींच लिया। वह लड़खड़ाते हुए कमरे के भीतर खींचती हुई चली आई। तो मैंने फुर्ती से कमरे के बाहर निकलकर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। वह कमरे के भीतर गुस्से से चिल्लाते हुए कमरे का दरवाजा जोर-जोर से पीटने लगी। उसकी चीख इतनी तेज और भयानक थी कि वो आसपास गूंजने लगी। मैं अपने शरीर की पूरी ताकत लगाकर वहां से सड़क की ओर भागा। कुछ ही पलों में मैं उस नरभक्षी चुड़ैल के उस भूतिया घर से बाहर उसकी पकड़ से काफी दूर निकल आया था। लेकिन काफी दूर आने के बाद भी उस चुड़ैल के चिल्लाने की डरावनी आवाजें मुझे सुनाई दे रही थी। इसी वजह से उस रात मैं मेरी जिंदगी में पहली बार इतना दौड़ा था जितना कभी ना तो पहले दौड़ा था और ना कभी उसके बाद। लेकिन मैं दौड़ते हुए उसी रास्ते की तरफ वापस गया जिस तरफ से मैं आया था। और जिस तरफ उस बुड्ढे आदमी की वो चाय की टपरी थी। अब मैं दौड़ता हुआ जब दोबारा से उस चाय की टपरी पर पहुंचा तो इस बार भी मुझे वह बूढ़ा आदमी वैसे ही सोता हुआ मिला। लेकिन इस बार मुझे इतना हाफता हुआ देखकर वो भी काफी ज्यादा घबरा गया। लेकिन जब मैंने उसे सारी घटना के बारे में बताया तो उसका भी कलेजा बैठ गया। लेकिन उसने उस रात अपनी उस चाय की टपरी में मुझे पनाह दी जिसकी वजह से मैं उस रात अपनी जान बचा पाया। तो दोस्तों यह थी हमारी आज की कहानी। कहानी आपको कैसी लगी यह आप मुझे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताना।