Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 27 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 27

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 27


उसी पल पीछे से एक भारी आवाज़ आई –

“हाँ, रिद्धि तो स्टेबल है… लेकिन मेरा दोस्त नहीं।”


प्रकृति पलटी… सामने कबीर खड़ा था।

उसका चेहरा गंभीर था और आँखों में थकान साफ झलक रही थी।


प्रकृति का सारा गुस्सा एक झटके में फूट पड़ा –

“तुम पागल हो गए हो क्या?! ये कैसा घटिया मज़ाक है, किसी की जान को लेकर मज़ाक करते हो?!”


कबीर ने गहरी सांस ली और सिर झुका दिया –

“मुझे माफ़ कर दो… मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। तुम्हें समझाने का कोई और तरीका नहीं बचा था।”


प्रकृति चीख पड़ी –

“क्या बक रहे हो तुम, कबीर!”


कबीर ने उसकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा –

“जैसा एक नकली कॉल तुम्हें आया… वैसा ही कॉल मैंने रिद्धान को भी करवाया है। डॉक्टर मित्तल को बड़ी मुश्किल से मनाया था।”


प्रकृति स्तब्ध रह गई।

कबीर ने उसका हाथ पकड़ा और कहा –

“चलो, तुम्हें खुद दिखाता हूँ।”


दोनों जल्दी से रिद्धि के वार्ड में पहुँचे और परदे के पीछे छिप गए।

डॉक्टर मित्तल रिद्धि के पास खड़े थे, मशीनें धीरे-धीरे बीप कर रही थीं।


अचानक दरवाजा जोर से खुला…

रिद्धान भागते हुए अंदर आया।

उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था, बाल बिखरे हुए थे और पसीने से पूरा शरीर भीग गया था।


वो टूटती आवाज़ में चिल्लाया –

“रिद्धि… रिद्धि!! डॉ. मित्तल… मेरी बहन को क्या हुआ… कैसी है वो… बताइए!”


उसकी हालत देख कर प्रकृति का दिल काँप गया।

उसके गुस्से की जगह अब बेचैनी और दया आ चुकी थी।


डॉ. मित्तल ने गंभीर आवाज़ में कहा –

“रिद्धान, पहले शांत हो जाओ। गहरी सांस लो…”


लेकिन रिद्धान ने उनकी बात बीच में काट दी –

“पहले आप बताइए… रिद्धि को क्या हुआ?! सच बोलिए!”


डॉक्टर ने रिद्धि की रिपोर्ट बंद की और उसकी ओर मुड़ते हुए कहा –

“रिद्धि अभी स्टेबल है… लेकिन कुछ देर पहले अचानक अनस्टेबल हो गई थी। हमने तुरंत संभाल लिया।”


रिद्धान ने जैसे राहत की सांस ली, आँखों से आँसू छलक पड़े।

वो सीधे ICU की काँच की खिड़की से अपनी बहन को देखने लगा, जो मशीनों के सहारे बेसुध पड़ी थी।


डॉ. मित्तल ने धीमी आवाज़ में कहा –

“रिद्धान, मैंने तुमसे पहले भी कहा था… रिद्धि के अंदर जीने की इच्छा नहीं बची है। ये सब मशीनें हट जाएं तो… वो नहीं बचेगी।”


रिद्धान के कदम लड़खड़ा गए।

उसकी आँखें भर आईं, आवाज़ रुंध गई –

“आप… आप डॉक्टर हैं… आपको तो उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए… फिर आप ये कैसे कह सकते हैं?!”


डॉक्टर ने दुख से उसकी ओर देखा –

“मैं तुम्हारा दर्द समझता हूँ, लेकिन हकीकत यही है। अब वक्त आ गया है कि तुम उसे जाने दो… ये ज़बरदस्ती मत करो।”


इतना सुनते ही रिद्धान का दिल चीर गया।

उसने वहीं डॉक्टर के सामने हाथ जोड़ दिए और फूट-फूट कर रो पड़ा –

“नहीं… प्लीज़… मेरी बहन को मत छीनिए… मैं उसे नहीं खो सकता…”


उसकी चीख ने वार्ड के अंदर का सन्नाटा तोड़ दिया।

प्रकृति का दिल काँप उठा… और कबीर की आँखें भी भर आईं।



रिध्दान की ऐसी हालत देख कर प्राकृति का दिल तड़प उठा… वो तुरंत बाहर निकलकर उसे सँभालना चाहती थी। जैसे ही वह बढ़ी, कबीर ने उसका हाथ पकड़ लिया और अचानक अपनी ओर खींच लिया। पलभर में दोनों एक-दूसरे के बेहद क़रीब आ गए… इतना क़रीब कि उनकी साँसों की गर्माहट भी महसूस होने लगी।


वो दोनों कुछ सेकंड तक उसी अजीब सी ख़ामोशी में खड़े रहे… दिलों की धड़कनें तेज़ हो गईं। फिर जैसे होश आया तो दोनों ने जल्दी से नज़रें चुराई और थोड़ा पीछे हट गए।


इधर डॉक्टर मित्तल रिध्दान को समझा रहे थे—

“Technically मेरे पास रिद्धि के guardian का consent है… और hospital policy के हिसाब से हमें ventilator हटाना ही होगा। पर मैं तुम्हें दो हफ़्ते का समय और दे सकता हूँ। तुम सोच लो और फिर मुझे बता देना।”


रिध्दान ने कुछ नहीं कहा… बस टूटी हुई आँखों से देखा और भारी क़दमों से वहाँ से चला गया।


कबीर ने गहरी साँस लेते हुए कहा—

“गिल्ट का बोझ बहुत भारी होता है… उसे आज तक लगता है कि माँ के जाने के बाद रिद्धि की ज़िम्मेदारी उसने ठीक से नहीं निभाई। जबकि सच ये है कि वो खुद भी उसी दर्द से जूझ रहा था… और फिर… वो लड़की…”


प्राकृति ने तुरंत पूछा—

“क्या… कौन लड़की?”


कबीर ने अपने शब्द सँभालते हुए कहा—

“मतलब… अपनी बहन। रिद्धि… उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी थी।”


प्राकृति की आँखों में बेचैनी थी। वो बिना एक शब्द कहे वहाँ से निकल गई और रिध्दान को ढूँढने लगी।


कुछ दूरी पर, एक सुनसान रास्ते पर, बेंच पर बैठा हुआ वह मिल गया… झुका हुआ, गुमसुम, टूटा हुआ।


प्राकृति उसके सामने आकर खड़ी हो गई। उसे ऐसे रोते देख उसका दिल भी जैसे बिखर गया। 

प्रकृति उसके सामने खड़ी थी, बस उसे देख रही थी… उसके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ और भी गहरी हो रही थीं। उसने धीरे से हाथ बढ़ाया और उसके कंधे पर रखा तभी


अचानक रिध्दान ने आगे बढ़कर दोनों हाथ उसकी कमर के चारों ओर कसकर बाँध लिए।

वो अब भी बैठा था और प्रकृति उसके सामने खड़ी।

उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी जैसे डर हो कि अगर छोड़ा तो सब बिखर जाएगा।


उसका चेहरा प्रकृति के पेट से लग गया…

उसकी गरम साँसें और बहते आँसू कपड़ों को भिगोते हुए सीधी उसकी देह पर छप बनाते जा रहे थे।