क्या वह संजना को भी उसी नफरत की आग में झोंक सकता है?
वह पलटा और फिर से खिड़की की ओर देखने लगा। अंदर, संजना अब भी वैसे ही सो रही थी, जैसे किसी दुनिया से बेखबर हो। वह सच में इस लड़ाई की दोषी नहीं थी। लेकिन वह मिस्टर कूपर की बेटी थी, और यही बात हर्षवर्धन के लिए सबसे बड़ी दीवार थी।
उसने गहरी सांस ली और खुद को फिर से याद दिलाया—उसे अपना मकसद नहीं भूलना चाहिए।
"मुझे जो करना है, वो करना ही होगा।"
लेकिन उसके दिल के किसी कोने में अब भी एक सवाल सिर उठाए खड़ा था—अगर वह इस बदले की आग में संजना को भी जलाने चला, तो क्या वह खुद को कभी माफ कर पाएगा?
उस रात, ठंडी हवा चलती रही, लेकिन हर्षवर्धन के भीतर उठता तूफान शांत नहीं हुआ।
अधूरी नफरत और अनकहा प्यार
हर्षवर्धन की निगाहें अब भी खिड़की के उस पार संजना पर टिकी थीं। चांदनी उसके चेहरे पर एक नरम, सुनहरी परछाईं बना रही थी। हल्की ठंडी हवा चली, जिससे संजना के कुछ बाल उसकी आँखों पर आ गिरे। नींद में ही उसने अपनी उंगलियों से उन्हें हटाया, और हर्षवर्धन के भीतर कुछ पिघलने लगा।
वह जिस आग में जल रहा था, उसमें संजना को शामिल करने का विचार भी उसे बेचैन कर रहा था। उसे यह सोचकर सुकून मिलना चाहिए था कि मिस्टर कूपर की बेटी भी उसके दर्द का हिस्सा बनेगी, लेकिन संजना को देखते ही वह सुकून कहीं खो जाता।
संजना के चेहरे की मासूमियत, उसकी निश्चिंतता... यह सब उसे कचोट रहा था। वह इस साज़िश का हिस्सा नहीं थी, लेकिन फिर भी उसकी नफरत की सीमा में आ रही थी। क्या वह इतना बेरहम बन सकता था? क्या वह अपने मकसद के लिए अपने दिल की हर भावना को कुचल सकता था?
हर्षवर्धन ने अपनी उंगलियों को मुट्ठी में भींच लिया। उसे अपनी कमजोरी पर गुस्सा आ रहा था।
"तुम मेरी राह की सबसे बड़ी दीवार क्यों बन रही हो, संजना?" उसने मन ही मन सोचा।
उसका मकसद साफ था—मिस्टर कूपर को उसी दर्द से गुजरते देखना, जिससे वह खुद गुजरा था। लेकिन इस बदले में संजना का क्या दोष?
संजना ने नींद में एक हल्की करवट बदली, और उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान खेल गई। शायद वह किसी मीठे सपने में थी। हर्षवर्धन के होंठ भी एक पल को मुस्कुराने को हुए, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। वह इतनी जल्दी कमजोर नहीं पड़ सकता था।
"नहीं... यह सिर्फ एक छलावा है। मुझे अपने मकसद से भटकना नहीं चाहिए।"
लेकिन जितना वह यह सोचता, उतना ही उसके भीतर कुछ डगमगाने लगता।
वह खिड़की से हटने के लिए मुड़ा ही था कि तभी संजना की हल्की-सी फुसफुसाहट ने उसे रोक दिया।
"माँ... पापा..."
संजना शायद सपने में अपने माता-पिता को पुकार रही थी। उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा दर्द था। हर्षवर्धन ठिठक गया। क्या वह अपने परिवार के लिए तड़पती है, जैसे वह अपने प्यार के लिए तड़पता है?
उसका दिल एक पल के लिए कांपा।
उसने खुद को सख्ती से याद दिलाया कि यह वही लड़की थी, जिसके पिता ने उसके परिवार को बर्बाद कर दिया था। लेकिन क्या यह लड़की भी वैसी ही थी?
उसके कदम अनायास ही संजना की ओर बढ़ गए। वह उसके और करीब आ गया। उसके चेहरे को ध्यान से देखा—इतना शांत, इतना निर्दोष। हर्षवर्धन की उंगलियां अनायास ही आगे बढ़ीं, लेकिन उसने खुद को रोक लिया।
"क्या कर रहा है तू?" उसने खुद को डांटा।
वह यहां बदला लेने आया था, प्यार में पड़ने नहीं। लेकिन फिर भी, संजना के करीब आते ही उसके भीतर की आग ठंडी पड़ने लगती थी।
उसने एक गहरी सांस ली और पीछे हटने लगा। लेकिन तभी संजना की आंखें धीरे-धीरे खुल गईं।
हर्षवर्धन का दिल एक पल के लिए तेज़ धड़कने लगा।