लेखक – विजय शर्मा एरी
गाँव बेलपुर में हर कोई रघु को जानता था। कभी वही रघु सबका चहेता, हँसमुख और मददगार लड़का था। लेकिन अब उसका नाम सुनते ही लोग सहम जाते। गाँव में लोग फुसफुसाते—
“रघु बदल गया है… उसका मन ज़हर से भर चुका है।”पहला अध्याय – टूटा भरोसा
रघु अपने घर की टूटी खाट पर बैठा गुस्से में सोच रहा था।माँ ने आवाज़ दी—“बेटा, खाना तैयार है। चल थाली में बैठ जा।”
रघु झल्लाकर बोला—“माँ, मेरा मन नहीं है। छोड़ो ये सब।”
माँ ने समझाया—“बेटा, भूखा रहकर गुस्से को बढ़ा मत। गुस्सा आग की तरह है। तू जल जाएगा।”
रघु ने कटु स्वर में कहा—“माँ, अब मेरे अंदर सिर्फ़ आग है। जिसने भी भरोसा किया, सबने मुझे धोखा दिया। ये दुनिया बस छलावा है।”
माँ चुप हो गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए।दूसरा अध्याय – दोस्ती की दरार
रघु का बचपन का दोस्त अरुण उससे मिलने आया।
“रघु, तू सबको दुश्मन क्यों मानता है? क्या मैं भी तुझे झूठा लगता हूँ?”
रघु हँस पड़ा—लेकिन उसकी हँसी में कड़वाहट थी।“हाँ अरुण, तू भी वैसा ही है। जब तेरी ज़रूरत होगी, तू भी मुझे छोड़ देगा।”
अरुण ने दुखी होकर कहा—“कभी सोचा है कि तू ही खुद को सबसे दूर कर रहा है? तू भरोसा करेगा तो रिश्ते भी निभेंगे।”
रघु गरजा—“नहीं! रिश्ते झूठे होते हैं। मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं।”तीसरा अध्याय – रानी का धोखा
रघु का दिल दरअसल रानी के धोखे से टूटा था।रानी, गाँव की सुंदर लड़की, जिसने उससे वादे किए थे—“हमेशा साथ रहेंगे।”लेकिन एक दिन खबर मिली—रानी ने किसी अमीर आदमी से शादी कर ली।
उस दिन से रघु का दिल पत्थर हो गया।
कई साल बाद रानी गाँव आई। उसकी नज़रें रघु से मिलीं।रानी ने धीमे स्वर में कहा—“रघु, तू इतना कड़वा क्यों हो गया है?”
रघु ने आँखें तरेरते हुए कहा—“क्योंकि तूने मेरे मन में ज़हर घोल दिया। तेरे धोखे ने मुझे जिंदा लाश बना दिया।”
रानी ने आँसू पोंछते हुए कहा—“मैंने मजबूरी में शादी की थी… मेरे पिता ने दबाव डाला था। मेरा इरादा तुझे तोड़ने का नहीं था।”
रघु चीख पड़ा—“झूठ! सब झूठ! अब मुझे किसी पर यक़ीन नहीं।”चौथा अध्याय – पंचायत का फैसला
गाँव वाले परेशान हो गए। पंचायत बुलाई गई।
मुखिया ने कहा—“रघु का गुस्सा अब खतरनाक हो गया है। वह खुद को भी नुकसान पहुँचाएगा और हमें भी।”
एक बुज़ुर्ग ने कहा—“गुस्से का इलाज प्यार है। हमें इसे नफ़रत से नहीं, बल्कि धैर्य से जीतना होगा।”
उसी समय रघु आ धमका।उसने सबके सामने कहा—“तुम सब मुझे पागल समझते हो? मैं असलियत जानता हूँ। तुम सब नकली हो, स्वार्थी हो।”
गाँव में खामोशी छा गई।पाँचवा अध्याय – बच्चे की मासूमियत
गाँव का सात साल का बच्चा चंदन रघु के पास आया।
“भैया, तुम क्यों हमेशा गुस्सा करते हो?”
रघु बोला—“क्योंकि दुनिया गंदी है।”
चंदन मासूमियत से बोला—“लेकिन भैया, अगर मिट्टी गंदी हो तो किसान पानी डालकर उसे हरा-भरा बना देता है। तुम भी अपने दिल पर प्यार डालो।”
रघु हक्का-बक्का रह गया। उस मासूम के शब्द तीर की तरह उसके दिल में चुभे।छठा अध्याय – नई परीक्षा
कुछ दिनों बाद गाँव में आग लग गई। लोग घबराए हुए थे। एक झोपड़ी में एक बच्चा फँसा हुआ था।गाँव वाले चिल्ला रहे थे—“कोई है जो बच्चे को बचाए?”
सब पीछे हट रहे थे। लेकिन अचानक रघु आग में कूद पड़ा।उसने बच्चे को गोद में उठाया और बाहर भागा।
लोग दंग रह गए।माँ ने रोते हुए कहा—“बेटा, तूने आज अपने दिल का ज़हर बहा दिया है।”
रघु का दिल कांप उठा।“क्या मैं अब भी बदल सकता हूँ? क्या मैं फिर से इंसान बन सकता हूँ?”सातवाँ अध्याय – सच्चाई का आईना
अरुण ने रघु से कहा—“देखा, तेरा मन बुरा नहीं है। तू बस दर्द से अंधा हो गया था।”
रघु ने भारी आवाज़ में कहा—“हाँ अरुण, शायद सच यही है। मैंने अपने ही दर्द को इतना बड़ा बना लिया कि ज़िंदगी की रोशनी देखना भूल गया।”
रानी भी सामने आई।“रघु, मैं तेरा गुनाहगार हूँ। मुझे माफ़ कर दे। लेकिन तू अपनी ज़िंदगी को मत जला।”
रघु ने पहली बार आँखें नम होकर कहा—“रानी, मैंने तुझे माफ़ किया। क्योंकि अब मैं समझ गया हूँ—नफ़रत का बोझ बहुत भारी होता है।”आठवाँ अध्याय – नया सवेरा
सुबह जब सूरज निकला, रघु गाँव के चौपाल पर गया।उसने सबके सामने कहा—“मेरा मन ज़हरीला था, लेकिन मैंने उसे साफ़ करने का फैसला किया है। अब मैं दूसरों को नहीं, खुद को बदलूँगा।”
गाँव वाले तालियाँ बजाने लगे।अरुण ने गले लगाकर कहा—“यही मेरा दोस्त रघु है।”माँ ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा—“आज तू फिर से मेरा बेटा बन गया है।”
रघु मुस्कुराया।वो मुस्कान सच्ची थी, मीठी थी। जैसे सालों बाद उसका चेहरा खिल उठा हो।अंतिम सीख
ज़हरीला मन इंसान को खोखला कर देता है। नफ़रत का ज़हर हमें धीरे-धीरे अंदर से मार देता है। लेकिन अगर हम माफ़ करना सीख जाएँ, प्यार को अपनाएँ और भरोसे को फिर से जगाएँ, तो सबसे ज़हरीला मन भी फूल की तरह महक सकता है।
लेखक – विजय शर्मा एरी