light of equality in Hindi Motivational Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | समानता की रोशनी

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समानता की रोशनी

बिलकुल। नीचे पूरी कहानी दुबारा और संशोधित रूप में दी गई है — लगभग 2100 शब्दों में — जिसमें एक विधवा महिला और उसकी दो बेटियों की संघर्ष, साहस और सफलता की प्रेरक गाथा है।कहानी का शीर्षक: "समानता की रौशनी"✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी

🏠 पता: गली कुतिया वाली, वार्ड नं. 3, अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102प्रमाणपत्र

यह प्रमाणित किया जाता है कि यह कहानी पूर्णतः मौलिक है और लेखक विजय शर्मा एरी द्वारा रचित है। इसमें प्रस्तुत पात्र और घटनाएँ सामाजिक प्रेरणा हेतु कल्पनात्मक रूप से वर्णित की गई हैं। यह कहानी किसी भी वास्तविक व्यक्ति से संबंधित नहीं है।कहानी

प्रारंभ:छोटे-से गाँव छिंदवाड़ा में, जहाँ बिजली कभी-कभी आती थी और पानी रोज़ कम ही आता था, वहाँ एक टूटी सी झोंपड़ी में तीन जीवन धड़कते थे — सीमा, और उसकी दो बेटियाँ — प्रियंका (16) और रजनी (13)।

सीमा, अब 36 साल की, एक विधवा थी। उसके पति राजीव, जो कि एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे, एक बॉयलर फटने की दुर्घटना में मारे गए। उस दिन के बाद जैसे सारी दुनिया स्याह हो गई।

गाँववालों ने कहा — “अब तो भगवान ने बहुत बड़ा इम्तिहान दिया है, इन लड़कियों का क्या करोगी?”

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने चुपचाप अपने आँसुओं को पी लिया और एक गहरी साँस ली। उसी दिन एक वादा किया —"मैं इन दोनों को पढ़ाकर इस दुनिया को जवाब दूँगी, मैं दिखा दूँगी कि एक औरत अकेले क्या कर सकती है।"संघर्ष के दिन

राजीव के गुजरते ही परिवार की आमदनी शून्य हो गई। सीमित पैसे, कर्ज़ का बोझ, और समाज की टेढ़ी निगाहें — सब कुछ उनके खिलाफ था।

सीमा ने गाँव में घर-घर जाकर झाड़ू-पोंछा, बर्तन धोने और सिलाई का काम शुरू कर दिया। सुबह 5 बजे उठकर रोटियाँ सेंकती, बेटियों का टिफिन बनाती, फिर काम पर निकल जाती।

दिन भर मेहनत के बाद जब रात को थकी हुई लौटती, तब भी प्रियंका और रजनी को पढ़ाना नहीं भूलती। उनकी किताबों पर लगी मोमबत्ती की रौशनी में सीमा की आँखों का विश्वास झलकता था।सपनों पर तंज

गाँव के कुछ लोगों ने कहा —"बेटियाँ हैं, पढ़ा भी दोगी तो क्या होगा? शादी कर दो।"

सीमा का जवाब सीधा और ठोस था —"मेरी बेटियाँ समाज को बदलने के लिए जन्मी हैं, बोझ बनकर बैठने के लिए नहीं।"

प्रियंका विज्ञान में तेज़ थी। पानी की समस्या को लेकर उसे नए-नए विचार आते थे। वहीं रजनी को गणित से प्यार था। वह अंकों से खेलती थी और हर सवाल का हल ढूंढ लेती।

पर गरीबी हर रोज़ इम्तिहान लेती थी। किताबें नहीं थीं, स्कूल की फीस वक्त पर नहीं जाती थी। कभी-कभी तो पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता।

लेकिन सीमा ने हार नहीं मानी। वो अपने आँचल में आँसू छिपाकर बेटियों को मुस्कुराहट देना जानती थी।पहली जीत

एक दिन स्कूल में विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। प्रियंका ने वर्षा जल संचयन पर एक मॉडल बनाया — जिसमें प्लास्टिक की बोतलों और पुराने पाइपों से एक जल संचयन यंत्र बनाया गया। वह मॉडल इतना प्रभावी था कि जिला स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।

इसी प्रदर्शनी में रजनी ने एक गणितीय कैलकुलेटर प्रोजेक्ट बनाया, जो दुकानदारों को त्वरित गणना में मदद करता था।

दोनों बहनों के नाम पहली बार अखबार में छपे।

गाँव के लोगों की आँखों में आश्चर्य था। उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि ये लड़कियाँ "अलग" हैं।छात्रवृत्ति और एक नई शुरुआत

उनकी सफलता को देखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें विशेष छात्रवृत्ति दी। अब उन्हें किताबें, ड्रेस और कोचिंग की सुविधा मिलने लगी।

सीमा ने भी हार नहीं मानी — वह अब गाँव के स्कूल में सफाई का काम करने लगी, ताकि बेटियाँ स्कूल में ही रहे और उनपर निगरानी भी बनी रहे।

वह बच्चों को भी सिलाई सिखाने लगी, और महीने में थोड़ा बहुत बचाने लगी। धीरे-धीरे सीमित साधनों में भी जीवन गति पकड़ने लगा।समाज की सोच में बदलाव

एक समय था जब गाँव की औरतें सीमा से दूर रहती थीं। आज वे अपनी बेटियों को पढ़ाई के लिए प्रियंका और रजनी के पास भेजती थीं।

गाँव की सरपंच ने एक दिन खुद आकर कहा —"सीमा, तुमने तो गाँव की सोच बदल दी।"

सीमा ने मुस्कुराकर कहा —"मैंने कुछ नहीं किया, मेरी बेटियों ने बस अपनी माँ पर भरोसा किया है।"उतार-चढ़ाव

रास्ता आसान नहीं था। प्रियंका को शहर जाकर पढ़ना था। शुरू में जब वह दिल्ली गई, तो वह बहुत डर गई — बड़े शहर, अलग भाषा, अलग माहौल। कई बार रोई, सीमा को फोन किया।

सीमा ने उसे समझाया —"हर पेड़ को तूफान सहना पड़ता है, तभी वह मजबूत बनता है। तुम भी सहो, लेकिन झुको मत।"

रजनी गाँव में रहकर पढ़ती रही, और एक कोचिंग सेंटर में गणित पढ़ाने लगी ताकि घर में कुछ आमदनी बनी रहे।वो दिन भी आया...

कुछ सालों बाद प्रियंका ने IIT से इंजीनियरिंग पूरी की और एक सरकारी योजना में सीनियर इंजीनियर बनी। उसका पहला प्रोजेक्ट था — गाँवों में जल संरक्षण योजना।

रजनी ने गणित में पीएच.डी. की और फिर एक सरकारी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनी।

अब वही गाँव, जो कभी तानों से भरा था, तालियों से गूंजने लगा।

ब्लॉक स्तरीय महिला सशक्तिकरण समारोह में सीमा को "मातृशक्ति सम्मान" से नवाज़ा गया।आज की तस्वीर

प्रियंका और रजनी ने मिलकर एक NGO शुरू किया — "उम्मीद की किरण", जो गाँव की लड़कियों को विज्ञान, गणित, कंप्यूटर और आत्मरक्षा की मुफ्त शिक्षा देता है।

गाँव की लड़कियाँ अब आत्मविश्वास से कहती हैं —"हमें भी प्रियंका दीदी जैसी बनना है।"

सीमा अब गाँव की महिलाओं को रोजगार सिखाने लगी है — सिलाई, बुनाई, अगरबत्ती बनाना, इत्यादि। वह कहती है —"किसी भी महिला को खुद को छोटा नहीं समझना चाहिए।"अंतिम दृश्य

एक शाम प्रियंका ने अपनी माँ से पूछा —"माँ, तुम्हें कभी डर नहीं लगा?"

सीमा ने कहा —"हर रोज़ डरती थी, लेकिन बेटियों की आँखों में जो सपना देखा था, उसने हर डर को पीछे छोड़ दिया।"

प्रियंका ने माँ के पैरों को छुआ और कहा:"आज मैं जो भी हूँ, आपकी वजह से हूँ।"निष्कर्ष

यह सिर्फ एक विधवा की कहानी नहीं है।यह साहस, संघर्ष, और सपनों को सच करने की कहानी है।यह एक माँ की ममता, एक बेटी की लगन और समाज की सोच को बदलने की प्रेरणा है।

अगर एक विधवा महिला, दो बेटियों के साथ, समाज को आईना दिखा सकती है, तो कोई भी कुछ भी कर सकता है — बस विश्वास चाहिए, मेहनत चाहिए और समर्पण चाहिए।लेखक:

विजय शर्मा एरीगली कुतिया वाली, वार्ड नं. 3अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102