नीचे प्रस्तुत है आपकी मनपसंद कहानी "तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं" का विस्तारित संस्करण — लगभग 2000 शब्दों में, जिसमें प्यार, नाराज़गी, दूरी, फिर मिलन, और बीच-बीच में बॉलीवुड के गीतों की दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ शामिल हैं।"तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं"
लेखक: विजय शर्मा एरी पहली मुलाक़ात
शहर की भीड़ से दूर, पहाड़ियों की गोद में बसा शांत और सुकून भरा कस्बा — नैनीताल। यहाँ की झीलें, पेड़, और चिड़ियों की चहचहाहट हर सुबह को नया सुकून देती थी। यहीं रहता था आरव, जिसकी दुनिया उसकी बुकशॉप "कलम की खुशबू" और उसके लिखे अधूरे पन्ने थे।
बारिश की एक शाम, जब बादलों की गड़गड़ाहट किताबों के पन्नों को छू रही थी, तब वह आई — सिया, सफेद दुपट्टे में लिपटी, आँखों में सवालों की झील और होंठों पर हल्की मुस्कान।
"एक किताब चाहिए," उसने धीमे से कहा।
"कैसी किताब?" आरव ने पूछा।
"जो दिल को छू जाए, कुछ अधूरी सी..." उसने उत्तर दिया।
"पहली बार मोहब्बत की है, आख़िरी बार मोहब्बत की है..."(Kaminey)
उस दिन सिया के हाथ में ग़ालिब का दीवान था और दिल में कोई जज़्बात।भाग 2: किताबों से रिश्तों तक
सिया अब हर शाम आने लगी। कभी कविता पढ़ती, कभी लंबी बहस करती और कभी-कभी चुपचाप बैठी रहती। धीरे-धीरे आरव को समझ आने लगा कि यह रिश्ता सिर्फ़ किताबों तक सीमित नहीं रहा।
"तुम्हें किस तरह की किताबें पसंद हैं?" सिया ने एक दिन पूछा।
"जिनमें अधूरी मोहब्बत हो, और जो पूरी हो पाए..." आरव ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
सिया हँस पड़ी, "फिर तो हम एक ही किताब के दो पन्ने हैं।"
"तुम मिले, तो जैसे खो गया हूँ मैं..."(Kabhi Alvida Naa Kehna)
वो पहली बार आरव के दिल में उतर गई थी।भाग 3: जुदाई की हवा
सर्दियों की एक सुबह सिया के चेहरे पर कुछ अलग था। वो चुप थी, और आँखों में एक झिझक।
"बोलो सिया, क्या बात है?"
"मुझे... दिल्ली जाना है। MBA का एडमिशन मिल गया है। पापा बहुत खुश हैं।" उसकी आवाज़ धीमी थी।
आरव कुछ पल खामोश रहा।
"और तुम?" उसने पूछा।
"मैं... उलझ गई हूँ आरव। यहाँ दिल है, वहाँ ज़िम्मेदारी।"
"जाने क्या चाहती हो, तुमसे दिल की हर बात कह दी..."(Rockstar)
आरव ने कुछ नहीं कहा। बस, एक किताब सिया की ओर बढ़ा दी — “The Unfinished Love”।
"तुम्हारे जाने के बाद क्या ये दुकान अधूरी नहीं हो जाएगी?" उसने धीरे से पूछा।
सिया की आँखों में नमी थी। पर बिना कुछ कहे, वो चली गई।भाग 4: अकेलापन और इंतज़ार
सिया के जाने के बाद बुकशॉप जैसे सूनी हो गई। किताबें अब कहानियाँ नहीं सुनाती थीं, बस धूल जमती रहती थी।
हर शाम आरव उसी मेज़ पर बैठता जहाँ सिया बैठा करती थी। वहाँ एक किताब खुली रखी रहती — ग़ालिब की।
"तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं..."(Aandhi)
लोग पूछते, "कब आएगी वो?"
आरव मुस्कुरा कर कहता, "जिसका पन्ना अधूरा हो, वो लौट कर ज़रूर आता है।"भाग 5: नई शुरुआत
दो साल बाद — वही नैनीताल, वही बुकशॉप। पर अब आरव थोड़े गहरे, थोड़े चुप थे। तब एक दिन... दरवाज़े पर घंटी बजी।
सामने वही चेहरा, वही मुस्कान... सिया।
"क्या अब भी किताबें अधूरी हैं?" उसने पूछा।
आरव ठहर गया, फिर बोला, "अब तो किताबें भी तुम्हें मिस करती हैं।"
"तुम आ गए हो, नूर आ गया है..."(Veer-Zaara)
सिया की आँखों में आंसू थे, "मैं तुम्हें भूली नहीं थी, बस खो गई थी। पापा की ज़िम्मेदारियाँ, दुनिया की सोच..."
आरव ने धीरे से कहा, "मगर इश्क़ तो वही है जो दुनिया की सोच से आगे निकल जाए।"भाग 6: कुछ सवाल, कुछ जवाब
"क्या तुम नाराज़ थे मुझसे?" सिया ने झिझकते हुए पूछा।
"थोड़ा... पर ज़्यादा ख़ुद से। काश, तुम्हें रोक लिया होता।"
"काश मैं रुक जाती।"
"तू जो मिला, तो ये हुआ... अब मेरे पास कोई कमी नहीं..."(Bajrangi Bhaijaan)
वो दोनों देर तक बात करते रहे। ज़िंदगी ने फिर से एक नया अध्याय खोला।भाग 7: किताब पूरी हुई
सिया ने अब नैनीताल में ही एक लाइब्रेरी खोल ली — "कागज़ की उड़ान"। आरव और सिया मिलकर कहानियाँ लिखते, बच्चों को पढ़ाते, कवि-सम्मेलन करवाते।
लोग कहते, "इन्हें देखकर लगता है जैसे प्रेम कोई कल्पना नहीं, हकीकत है।"
"रातें लंबी सी लगती हैं, दिन भी सुस्त से बीतते हैंपर तेरे साथ अब हर मौसम मुस्कुराता है..."(Tum Mile)भाग 8: अंतिम पंक्तियाँ
सिया एक किताब का पहला पन्ना आरव को देती है —"हमारी अधूरी कहानी", अब पूरी हो चुकी है।
और उसके नीचे लिखा था:
"तेरे लिए ही जिया मैं, खुद को जो यूँ दे दिया है..."(Tere Liye – Prince)सीख
"सच्चा प्यार अगर दिल से हो, तो वक़्त, दूरी, और दुनिया कुछ भी आड़े नहीं आती।प्यार अधूरी कहानियों से शुरू हो सकता है, पर अगर दोनों साथ हों, तो उसे मुकम्मल बनने से कोई नहीं रोक सकता।"