The Risky Love - 19 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 19

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The Risky Love - 19

मयन देव से विवेक की मुलाक़ात....

अब आगे.............

उबांक की बात सुनकर गामाक्ष कहता है....." बिल्कुल उबांक तुम्हारा बदला अकेले नहीं हैं , हम दोनों का है...."
उबांक गामाक्ष की बात से सहमत होकर सिर हिला देता है....
दूसरी तरफ , चेताक्क्षी ने यज्ञ कुंड के आसपास अभिमंत्रित भभूत से घेरा बनाकर , खुद उसके सामने बैठ जाती है और उसके सामने दो कुश के आसन सामने बिछाए थे , जिसपर एक पर अमोघनाथ जी और दूसरे पर आदित्य बैठा था , ....
देविका जी और इशान माता काली के सामने बैठकर उनके सुरक्षा कवच यज्ञ को देख रहे थे , , चेताक्क्षी एक मिट्टी की छोटी सी मूर्ति बनाकर उसे अदिति के नाम से उस यज्ञ वेदी के सामने रखकर आदित्य से कहती हैं...." आदित्य हम जैसे जैसे मंत्रो को बोलेंगे , तुम उसे दोहरा‌ के अपने हाथों से इस मूर्ति के चारों तरफ घुमा देना ..." 
"ठीक है.." आदित्य अपनी सहमति देता है जिससे चेताक्क्षी सुरक्षा कवच यज्ञ शुरू करती है......
दूसरी तरफ विवेक पैहरगढ़ की सीमा तक पहुंच चुका था , , चेताक्क्षी के बताए अनुसार गांव के बाहर निकलते ही दो रास्ते थे , विवेक सुंदरवटी वाले रास्ते पर आगे बढ़ता है , , 
सुरंदवटी जैसा की नाम से ही पता चल रहा , वो रास्ता बहुत खुबसूरत था , लेकिन विवेक उस सुंदर लेकिन सुनसान रास्ते पर आगे बढ़ता हुआ खुद से कहता है...." अजीब बात है , इतनी ब्यूटी होने के बाद भी कोई इंसान या कोई घर क्यूं नहीं दिखाई दे रहा है , ..." 
विवेक जल्दी जल्दी लेकिन संभलकर आगे बढ़ रहा था , काफी अंदर आने के बाद उसे नाग के आकार का फूल वाली जगह मिल जाती है , वो धीरे धीरे आगे बढ़कर उस फूल को ढूंढ रहा था , काफी कंटीली झाड़ियां होने की वजह से विवेक को काफी मुश्किल हो रही थी इसलिए वो बिना देर किए अपने साथ लाए खंजर से उस झाड़ियों को काट देता है लेकिन उसे क्या पता था उसका ऐसा करना उसके लिए भारी पड़ेगा , , 
विवेक उस झाड़ियों में से उस नीले रंग के नाग के आकार के फूल को तोड़ लेता है लेकिन तभी उसे महसूस होता है जैसे किसी ने उसके दोनों पैर बांध दिए हों , ...उसकी नज़र नीचे जाती है तो खुद को उन्हीं झाड़ियों में जकड़ा देखकर जल्दी से उससे बचने के लिए अपने पैरों को खींचने लगता है लेकिन उन झाड़ियों की पकड़ और मजबूत होने लगी , जिससे विवेक संभल नहीं पाया और नीचे गिर जाता है , ...
उसकी सारी कोशिशें लगातार बेकार हो रही थी , लेकिन वो हाथ मानने के लिए तैयार नहीं था , विवेक अपने खंजर से उन झाड़ियों की जड़ों को काटने लगता है , , लेकिन इस बार उन झाड़ियों की आक्रामकता और बढ़ने लगी थी , , 
विवेक धीरे धीरे अपनी सारी एनर्जी खोने लगा था तभी उसके हाथ से वो सात शिर्ष तारे वाला गोल पैंडेंट नीचे गिर जाता है जिसमें से एक रोशनी निकलती है जिसकी वजह से वो झाड़ियां तुरंत पीछे हटने लगती है , , विवेक इस बात से काफी हैरान लग रहा था लेकिन इस बात को इग्नोर करते हुए उस‌ नागफूल और पैंडेंट को उठाकर आगे बढ़ने लगता है...
विवेक अपने कदमों को गिनते हुए जा रहा था और लगभग सौ कदम पूरे होने पर उसे वो‌ विशालकाय बरगद का पेड़ दिखता है जिसके बारे में चेताक्क्षी बता रही थी , , 
विवेक उत्साहित होकर जल्दी जल्दी उस बरगद के पास पहुंचकर हैरान रह जाता है क्योंकि उसके पत्ते उस कड़ी धूप में रंग बदल रहे थे , वो जैसे ही उसे छूता है तभी उसके साइडो से दो बड़े आकार वाले कछुए और एक नीले रंग का सांप उसके सामने आता है ...
" कौन हो तुम..?.." उस सांप ने बन उठाते हुए कहा....
विवेक बिना कुछ बोले उस सांप के सामने उस नागफूल को दिखा देता है , जिसे लेकर वो सांप उस पेड़ की जड़ में चला जाता है , , 
उधर चेताक्क्षी अपने मंत्रों को बोलते हुए आदित्य से घेरा बनावा रही थी , जिससे उस मूर्ति के पैरों में से हल्की सी रोशनी निकलने लगती है , जिससे चेताक्क्षी के चेहरे पर अपनी कामयाबी की खुशी दिखने लगी थी इसलिए और उत्साह के साथ वो अपनी क्रिया जारी रखती है......
दूसरी तरफ विवेक उस बरगद के पेड़ के सामने खड़ा इंतजार कर रहा था तभी थोड़ी देर बाद वो सांप वापस आकर साइड में चला जाता है जिसे देखकर विवेक उलझन में खुद से कहता है...." ये तो कुछ भी बोलकर नहीं गया , अब मैं किससे पूछूं कि मयन देव कहा मिलेंगे ..."
विवेक अभी खुद से बातें कर ही रहा था कि तभी उस पेड़ की जड़ में से एक रोशनी निकलती है जो धीरे धीरे एक बड़े इंसान का रूप लेकर विवेक के सामने होती है....
विवेक उसे हैरानी से देखता हुआ कहता है...." क्या आप ही मयन देव हैं..?..."
वो बड़ा सा इंसान हंसते हुए कहता है...." अब तुम मेरे गृह पर आकर मुझसे ही पुंछ रहे हो , मयन देव हो...?.. हां मैं ही मयन देव हूं , लेकिन तुम कौन हो , ..?.. कोई संत , दिव्य पुरुष , या तांत्रिक तो नहीं लगते फिर तुम हमारे पास कैसे पहुंचे..?.."
मयन देव की बात सुनकर विवेक कहता है...." आपके मिलने से मेरे अंदर उम्मीद जागी उठी है ..." विवेक अपनी मुट्ठी में बंद उस पैंडेंट को निकालकर मयन देव के सामने करता हुआ कहता है ...." ये चेताक्क्षी ने आपको देने के लिए कहा था..."
मयन देव उस पैंडेंट को उठाकर गौर से देखने लगते हैं , , काफी देर देखने के बाद कहते हैं...." तो आदिराज अब इस दुनिया में नहीं बचा , लेकिन जिस शक्ति को वो कमजोर करके गया है उसका एहसान कोई नहीं भूल सकता , ...तो तुम अपने प्रेम को बचाने के लिए आए हो ..."
विवेक हां मैं सिर हिलाते हुए कहता है...." बिल्कुल , मैं उस रक्त रंजत खंजर को पाने के लिए ही आया हूं , आप मुझे उसके बारे में बता दें ...तो मैं अपनी अदिति को बचा लूंगा..."
विवेक की बात सुनकर मयन देव कहते हैं...." जिस जगह वो खंजर है , वो जगह बहुत ही मायावी है , उसमें न जाने कितने युवा गए हैं ... लेकिन आजतक कोई लौटकर वापस नहीं आया है , .... क्या तुम वहां जाना चाहते हो...?..."
 
............to be continued.............