The Risky Love - 18 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | The Risky Love - 18

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The Risky Love - 18

रक्त रंजत खंजर की खोज...

अब आगे.................

चेताक्क्षी गहरी सांस लेते हुए कहती हैं....." वो खंजर  रक्त रंजत खंजर ये वो खंजर है जिससे किसी भी दुरात्मा को खत्म किया जा सकता है , जिसका मिलना बहुत मुश्किल है , और इसके अलावा जो भी विधि हम करेंगे उसमें बहुत समय लगेगा , तब ही कोई उपाय मिल सकता है , लेकिन खंजर से उसे खत्म किया जा सकता है..."
विवेक पूरे जोश के साथ कहता है...." तुम बताओ ये खंजर कहां पर है , मैं पूरी कोशिश करूंगा उसे लाने की..."
चेताक्क्षी निराशा भरी आवाज में कहती हैं...." अफसोस हमें इस खंजर के बारे में नहीं पता , लेकिन कोई है जो इस खंजर का पता बता सकते है , लेकिन उसमें भी एक समस्या है...."
" अब कैसी समस्या है चेताक्क्षी...?...." अमोघनाथ जी उसके पास आकर पूछते हैं....
" बाबा , जिन्हें इस खंजर के बारे में पता है वो प्रेम के देवता मयन है और उनके अलावा हम किसी को नहीं जानते जो हमें इस खंजर तक पहुंचा दे , ..."
" तो इसमें क्या परेशानी है , तुम उसका पता बता दो , .."
" ठीक है बाबा , लेकिन हमें ये बताओ कि आदित्य के प्रेम से अदिति की सुरक्षा कवच बना था , तो फिर आदित्य जा सकता है...."
अमोघनाथ जी विवेक के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं..." नहीं चेताक्क्षी , सुरक्षा कवच इसके प्रेम से बना है , ये विवेक है जिसने उस गामाक्ष के हर कार्य में रूकावट डाली है...."
विवेक अपनी नजरों से एक बार आदित्य को देखकर फिर अमोघनाथ जी से कहता है...." ऐसा नहीं , हम दोनों बचपन से साथ रहे हैं बस आदित्य भाई ही अदिति को अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हैं तो भाई जा सकते हैं वहां , मेरा..."
आदित्य तुरंत विवेक की बात काटते हुए कहता है..." विवेक तुम्हें क्या लगा , तुम दोनों मुझे कुछ बताओगे नहीं तो मुझे कुछ पता नहीं चलेगा , तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो , ये बात मैं और इशान अच्छे से जानते हैं , तुम उसका कितना ध्यान रखते हो ये भी मैं बखूबी जानता हूं , , तुमने तो मुझे कितनी बार बताया था तक्ष के बारे में , लेकिन मैं तुम्हारी मदद करने की बजाय तुम्हें ही ग़लत समझने लगा , उसके लिए मुझे माफ़ करना..."
विवेक तुरंत आदित्य के गले लगते हुए कहता है..." भाई आप परेशान मत हो , और इसमें आपकी कोई ग़लती नही है , अब बस हम जल्दी ही उस पिशाच से अदिति को बचा लेंगे..."
आदित्य विवेक को खुद से अलग करके उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहता है...." तो तुम ये काम कर लोगे , मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम उस खंजर को ले आओगे , बोलो विवेक..."
" अब आपको मुझपर भरोसा है तो ये काम तो मैं कर लूंगा , बताइए फिर मुझे कहां जाना होगा...?.."
चेताक्क्षी कहती हैं...…" तो फिर ठीक है तुम सुनो , तुम्हें कहां जाना है , पैहरगढ़ से बाहर जाते ही तुम्हें दो रास्ते मिलेंगे एक तो वो‌ जो शहर जाता है और दूसरा यहां से सुंदरवटी जाता है , तो तुम्हें उसी सुंदरवटी जगह पर जाना है , जिसकी सीमा में कुछ ही दूर जाकर नागफूल मिलेगा , उस नागफूल को ले जाकर तुम वही से करीब सौ कदम दूर एक वटवृक्ष दिखेगा , जिसके आसपास तुम्हें दो कछुए दिखेंगे.... उसके बाद चेताक्क्षी उसे पूरा तरिका बताकर कहती हैं..... ध्यान रखना तुम्हें ये काम कल सुर्यास्त से पहले तक ही पूरा करना होगा , क्योंकि कल की रात अदिति के लिए आखिरी रात होगी , इसलिए उस खंजर से तुम उस गामाक्ष को खत्म कर सकते हो , अब तुम बिना देर किए यहां से सीधा अपने लक्ष्य की ओर जाओ ....और बाबा आप जल्दी से सुरक्षा मंत्र कवच की तैयारी कीजिए , ..."
" क्या मैं भी विवेक के साथ जा सकता हूं..?.." इशान चेताक्क्षी से पूछता है....
चेताक्क्षी न में सिर हिलाते हुए कहती हैं..." वहां पर केवल यही जा सकता है , और कोई नहीं...और‌ हां विवेक रूको..." चेताक्क्षी विवेक को रोकते हुए अमोघनाथ जी से कहती हैं..." बाबा , आदिराज काका की कोई निशानी है..." 
अमोघनाथ जी कुछ याद करते हुए कहते हैं..." हां है , मैं अभी देता हूं..." अमोघनाथ जी बक्से को खोलकर उसमें से एक गोल सा पेंडेंट के आकार में सात शिर्ष वाला तारे जैसी आकृति बनी हुई  चीज  उसे देते हुए कहते हैं...." ये आदिराज जी का विशेष कवच था , लो..."
चेताक्क्षी उस गोल पेंडेंट को लेकर विवेक को देते हुए कहती हैं...." तुम ये , मयन देव को दिखा देना वो समझ जाएंगे तुम यहां क्यूं आए हो..."
विवेक उस लाकेट को लेते हुए कहता है..." ठीक है , जैसा तुमने बोला है , मैं बिल्कुल वैसा ही करूंगा...अब मुझे जाना चाहिए नहीं तो देर हो जाएगी..." 
विवेक वहां से चला जाता है और चेताक्क्षी अमोघनाथ जी के साथ आगे की तैयारी करने लगती है...
आदित्य मेन डोर को देखते हुए कहता है...." बस विवेक अपने काम को टाइम से पूरा कर लें , मेरी अदि दो दिन से उसकी कैद में है  , पता नहीं किस हाल में होगी...?.."
देविका जी उसके चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ते हुए कहती हैं..." आदित्य , अदि बिल्कुल ठीक होगी , और बहुत जल्द तुम उसे बचा लोगे...."
आदित्य की आंखों में नमी थी इसलिए तुरंत देविका जी के गले लग जाता है , देविका जी खुद को संभालते हुए आदित्य की कमर पर हाथ फेरते हुए उसे शांत रहने के लिए कहती हैं.....
उधर  दूसरी तरफ गामाक्ष की कैद में अदिति को होश आने लगता है , , उसके हाथों में मूवमेंट होने लगती है  , वो जैसे जैसे धीरे धीरे आंखें खोलने लगती है  तो खुद को बंधे हुए देख इधर उधर देखने की कोशिश करने के लिए अपने सिर को ऊपर उठाती है, लेकिन गले पर गढ़े दांतों के निशानों की वजह से वो अपना सिर ऊपर नहीं उठा पाई , जिसे देखकर गामाक्ष हंसते हुए कहता है...." देखो उबांक , ये वनदेवी है , कैसी वनदेवी है ये जो खुद की भी मदद नहीं कर सकती..." 
अदिति को उसकी अभी बात समझ नहीं आ रही थी , वो‌ बेचारी बेबस सी उसकी बातों को सुन रही थी......
उबांक अदिति के पास जाकर कहता है....." दानव राज , इससे तो मुझे भी बदला लेना है ...."
 
..............to be continued.........