जब श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कि आपके घी से बने पदार्थो में रक्त है और कोदरे की रोटी में दूध जैसा अमृत है।उसी वक्त भाई लालो के घर से कोदरे कि रोटी मंगवाई गई और मलिक भागो के उत्तम पकवान एक चांदी के थाल में डालकर आ गये।श्री गुरु नानक देव जी ने एक हाथ में कोदरे की सुखी रोटी और दूसरे हाथ में मलिक भागो का मालपूडा़ पकड़ लिया। फिर सबके सामने उन्होंने अपने दोनों हाथों को दबाया।भाई लालो की रोटी में से दूध निकला और मालपूडे़ में से रक्त की धारा धरती पर गिरीं
अब तक वहां हजारों लोग इकट्ठे हो चुके थे। सबने ने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा।
जब श्री गुरु नानक देव जी कुरूक्षेत्र पहुंचे तो एक सरोवर पर असंख्य साधू स्नान कर रहे थे। श्री गुरु नानक देव जी ने अपने सिक्खों से कहा कि वह कोई देग लेकर आएं और उसे में पानी डालकर एक चूल्हा बनाकर ऊपर रख दे।
साधूओं ने देखा कि सूर्य ग्रहण के वक्त कोई भोजन पका रहा है तो वह भागते हुए आ गए ।
वे बड़े आक्रोश से कहने लगे, यह क्या रखा है ?
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा, मांस पका रहे हैं। मांस का नाम सुनकर तो साधू लोग और भी आगबबूला हो गए। और कहने लगे , आप ने इस स्थान को भ्रष्ट कर दिया है अब दुनिया में प्रलय कहर आ जाएगा और सबकुछ तबाह हो जाएगा। श्री गुरु नानक देव जी शांत बैठे रहे और फिर कहने लगे, कुछ नहीं होगा। आप झूठे अंधविश्वासी हो आग जलाना कोई पाप नहीं मानव आहर हेतु आग जलानी पड़ती है।
श्री गुरु नानक देव जी नाम दान के खुले भंडार बांटते और प्रेम की जीत प्राप्त करते हुए हरिद्वार पहुंच गए।उस वक्त दिन निकल था।
सूर्य पूर्व दिशा की ओर से उदय हो रहा था। सूर्य चढ़ता देखकर वह सभी यात्री और साधू संत की तरफ मुंह करके पानी फैंकने लग गए । श्री गुरु नानक देव जी उनके इसी भ्रम को दूर करना चाहते थे । इसलिए श्री गुरु नानक देव जी ने सोचा कि इन लोगों को सन्मार्ग लगाने हेतु कोई नाटकीय कार्य करना पड़ेगा। इसलिए
श्री गुरु नानक देव जी भी अपने वस्त्र उतार कर हरिद्वार पानी में जा घुसे और पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके शीघ्र शीघ्र पानी फैंकने लगे।
सभी देखने वाले उनके इस कार्य पर बहुत चकित हुए। लेकिन आप पानी पश्चिम की ओर फैक रहे हैं। श्री गुरु नानक देव जी ने मुस्कुराकर कहने लगे सज्जनों। मै तो किसी विशेष मनोरथ से और किसी खास लाभ हेतु इधर पानी फैक रहा हूं। परंतु मेहरबानी करके मुझे यह बताओं कि आप पूर्व दिशा की ओर पानी क्यों ब
फैक रहे हो।
वह श्री गुरु नानक देव जी को अनजान समझते थे। इसलिए सभी कहने लगे,हम अपने पितरों को को पानी पहुंचा रहे हैं।
श्री गुरु नानक देव जी ने कहा मै अपने खेतों को पानी दे रहा हूं।
उधर मेरे खेत सूख रहे हैं और इधर आप मुझे रोक रहे हो।यह बात सुनकर लोगों मे उत्सुकता बढ़ी और वे हैरान होकर पूछने लगे कि आपके खेत यहां से कितनी दूर है ?
तब श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कोई अधिक दूर नहीं है यही कोई दो अढ़ाई सौ कोस पर ही है।
क्रमशः ✍️