तब गुरू नानक देव जी ने अपनी पट्टी पाधे पंडित को सौंप दी पाधा पट्टी देखकर हैरान रह गया गुरु नानक देव जी की पट्टी पर बारीक कलम से छंदबद्ध में बहुत कुछ लिखा हुआ था।
पाधा पंडित पढ़ते पढ़ते मुग्ध हो गया।सारी पट्टी पर सिहरफी की तरह पंजाबी के पैंतीस अक्षरों के अनुसार पैंतीस अक्षरी लिखी हुई थी।
जब श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाबी , हिंदी, एवं संस्कृत की पढ़ाई खत्म कर ली तो मौलवी साहब के पास फारसी की पढ़ाई हेतु दाखिला करवाया गया।उस काल में इस्लामी हुकूमत होने के कारण दफ्तरी पत्र व्यवहार की भाषा फारसी थी। इसलिए फारसी पढ़ें ही वास्तविक अर्थों में पढ़ा लिखा समझा जाता था बाल श्री गुरु नानक देव जी की भी फारसी की पढ़ाई करने में बहुत दिलचस्पी थी।इसलिए उन्होंने ने फारसी भी बहुत शीघ्र ही सीख ली थी कुछ समय में बाल श्री गुरु नानक देव जी अपने साथियों से आगे निकल गए थे।
जब श्री गुरु नानक देव जी नौ वर्ष के हो गए तो उन्हें जनेऊ संस्कार के बारे में सलाह मशविरा किया गया नियत दिन घर के पुरोहित पंडित हरदयाल पहुंच गए घर में एक ऊंचे स्थान पर एक चटाई बिछाकर कुछ मंत्र पढ़कर पंडित जी ने उनके इर्द गिर्द एक रेखा खींची और आप चटाई पर विराजमान हो गए।
श्री गुरु नानक देव जी को पंडित के सम्मुख बिठा दिया गया। सब रस्में पूरी करके पंडित हरदयाल ने श्री गुरु नानक देव जी के गले में जनेऊ डालने के लिए अपनी हाथ ऊपर किये लेकिन हैरानी को कोई सीमा नहीं रही जब उन्होंने ने देखा कि श्री गुरु नानक देव जी ने अपने हाथ से पुरोहित की जनेऊ वाला हाथ पिछे धकेल दिया और जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया और श्री गुरु नानक देव जी कहने लगे पंडित जी ! पहले मुझे जे बताईए कि जनेऊ पहनने का क्या लाभ। पहले मुझे विस्तार पूर्वक समझाओं और फिर मेरे गले में जनेऊ डालो।मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो मेरी आत्मा के साथ परलोक में मेरा साथ दे यदि ऐसा कोई जनेऊ है तो अवश्य मेरे गले में डाल दो पंडित निरुत्तर हो गया और
एक दिन महिता कालू जी ने सोचा कि उनका पुत्र व्यर्थ ही होने के कारण उदास रहता है इसलिए क्यों न जंगलों उजाड़ो में घूमने का बहुत शौक है जिससे हम वर्जित करते रहते हैं।
इसलिए क्यों न कोई ऐसा प्रबंध किया जाए की हमारा पुत्र खुद को बेकार न समझे।
और कुछ काम भी करता रहे। इसलिए महिता कालू जी ने यह सलाह मशविरा किया की पुत्र नानक को भैंसें चराने का दायित्व सौंप दिया जाए।
इस बारे में जब उन्होंने ने अपने पुत्र से बात की तो वे तुरंत मान गए।
अब श्री गुरु नानक देव जी हर रोज भैंसों को जंगल में छोड़ देते और खुद समाधि लगाकर किसी पेड़ के नीचे बैठे रहते।
एक दिन जब प्रभु से सुरति लगाकर लेटे हुए थे।
तो काफी समय बीत जाने का के कारण पेड़ की छाया हट गई और उनके मुखमंडल पर धूप पडने लगी वहां रहते एक फनीयर सांप ने जब गुरू नानक देव जी के चेहरे पर धूप पडती देखी
तो ,,,,,।
क्रमशः ✍️