Shri Guru Nanak Dev Ji - 3 in Hindi Motivational Stories by Singh Pams books and stories PDF | श्री गुरु नानक देव जी - 3

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श्री गुरु नानक देव जी - 3

जब सांप ने श्री गुरु नानक देव जी के चेहरे पर धूप पडती देखी तो तो उस सांप ने श्री गुरु नानक देव जी के चेहरे पर अपना फन फैला कर छाया कर दी, ।

उस समय राय बुलार अपने अहलकारों सहित अपने बाहरी खेतों को देख कर अपने गांव आ रहे थे। जब उन्होंने ने एक सांप को फन फैलाए देखा तो वह स्तब्ध रह गए राय बुलार ने अपना घोड़ा रोका और कहने लगे इस फनीयर सांप ने अगर श्री गुरु नानक देव जी को काट लिया लगता है। इसलिए तो सांप उसके सिर पर बैठा है। और श्री गुरु नानक देव जी भी हिलते जिलूते नही है। राय बुलार ने अपने नौकर से एक छडी ले कर उधर जाने के लिए कहा ,

जब सांप ने देखा कि उसके पास कोई आ रहा है तो वो सांप तुरंत वहां से चला गया।

इतनी देर में राय बुलार भी गुरू नानक देव जी के पास पहुंच गया, उसने जब श्री गुरु नानक देव जी को हिलाया तो वे धन निरंकार कहते हुए उठ कर बैठ गए।

राय बुलार ये देख कर आश्चर्य चकित हुआ।

वे राय बुलार कहने लगा, लेखों! श्री गुरु नानक देव जी को जंगल के जहरिले और भयानक जानवर भी प्रेम करते है।

श्री गुरु नानक देव जी के मुखमंडल पर पड़ रही सूर्य की भी इस नाग से सहन नहीं हुई और उसने सूर्य की किरनों मे अपना फन फैला कर इनके चेहरे को छाया की है।

एक दिन महिता कालू जी ने श्री गुरु नानक देव जी को बीस रूपए दिए और कहा, पुत्र ! कोई 

अच्छा और खरा सौदा करो, जिससे हमें लाभ हो मैं तेरे साथ भाई बाले को भेजता हूं।

आप कुछ ऐसा माल खरीद कर लाओ यहां बेचकर हमे उत्तम लाभ प्राप्त है सके।

और श्री गुरु नानक देव जी ने अपने पिता की बात स्वीकार कर ली और बीस रूपए लेकर निकटवर्ती शहर चूहड़काणे की ओर चल दिए।

चूहड़काणे के मार्ग पर एक घना कुंज आता था।

जब श्री गुरु नानक देव जी ने उधर से गुजरने लगे तो उन्होंने वहां एक साधू संतों का डेरा देखा। साधू संतो की बातों से उन्हें पता चला कि वे साधू संत काफी दिनों से भूखे थे। श्री गुरु नानक देव जी को उन साधू संतों पर बहुत दया आई और उन्होंने तुरंत दृढ़ इरादा बना लिया 

की इन साधू संतो की सहायता की जाए।

और श्री गुरु नानक देव जी ने सोचा कि इससे अच्छा और सच्चा सौदा और क्या हो सकता है ‌

श्री गुरु नानक देव जी भाई बाले को लेकर चहूडकाणे चल गये।

वहां पर भोजन पदार्थ एवं वस्त्र खरीदें वहा पर आटा देकर एक झीवरी से रोटीयां पकवा ली, 

और दाल तैयार करवा ली।

एक छकडा श्री गुरु नानक देव जी ने किराये पर लिया। और उस छकडे और भोजन पदार्थ, वस्त्र और दाल रोटी लाद कर साधू संतों की कुंज पर पहुंच गए।श्री गुरु नानक देव जी ने साधू संतो को दाल रोटी अपने हाथों से खिलाई और पहनने हेतु उन्हें वस्त्र दिए।

श्री गुरु नानक देव जी कुछ गंभीर रहने लगे।

वह हर वक्त प्रभु से सुरति लगाए कुछ गहरे विचारों में लीन रहते।

एक दिन उनके पिता श्री मेहता कालू ने गांव के वैध ,,,,,



क्रमशः ✍️