"महक!!!!!!!"
"बेटा महक!!!!!!"
"त्रिशा को बाहर ले आओ!!!!!" मामी जी की आवाज बाहर से आई।
"जी लाई!!!!!!!" उसने जवाब में कहा।
"चलो चले!!!!!" वह मुझसे मुस्कुराते हुए बोली।
मैं घबराई सी खड़ी हुई और बाहर की ओर चल दी।
"डरना मत त्रिशा!!!!! याद रखना कि तुम्हें क्या कहना है और क्या पूछना है राजन से!!!!!! " वह चलते चलते मेरे कान में फुसफुसाई।
"हम्ममममम। " मैनें उत्तर दिया क्योंकि और कोई शब्द तो मेरे मुंह से निकल ही नहीं रहे थे।
हम चलते चलते नीचे उतरे तो हमें मामी और मम्मी दोनों वहीं खड़े दिखे। महक समझ गई कि अब यहां से अकेले उसे ही जाना है तो वह मुझसे बोली,
" ऑल दा बेस्ट!!!! जाओ और हां डरना नहीं।।।"
मैं उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दी। हम जैसे ही उनके पास पहुंचे मां ने नाश्ते की ट्रे हाथ में पकड़ा दी और कहने लगी,
" इसे लेकर आराम से चलना और वहां जाकर पहले इसे टेबल पर रखना और फिर सबको नमस्ते करते हुए उन लोगों के पैर छू लेना।"
"हम्ममम ठीक!!!!!" मैनें जवाब दिया और फिर मैं दोनों के पीछे पीछे चल दी।
थोड़े ही समय में उस जगह पर पहुंचे जहां सभी पहले से ही बैठे थे। मैं जैसे जैसे उनकी ओर अपने कदम बढ़ा रही थी, मेरी घबराहट और मेरा डर बढ़ता ही जा रहा था। अब तो डर के मारे हाथ पांव भी कांप रहे थे। वो ट्रे पकड़ना भी दूभर हो रहा था।" अच्छा है ट्रे में चाय नहीं है। नहीं पक्का कप से बाहर निकल कर बिखर जाती। " डर भगाने के लिए मैं खुद ही मन ही मन बड़बड़ाई।
जैसे तैसे डरते- डरते, घबराते, लड़खड़ाते मैं वहां पहुंचीं और मां के बताए अनुसार मैनें नाश्ते की ट्रे पहले टेबल पर रखी और फिर झुक कर एक एक उन लोगों के पैर छुएं।
शुरुआती औपचारिकताओं के बाद मुझे वहीं राजन की मां के साथ वाली जगह पर बैठने को कहा गया और मैं बहुत ही शालीनता से वहां बैठ गई और। फिर शुरु हुआ सवाल जवाब का दौर।
"अरे वाह भाईसाहब!!!!!
मानना पड़ेगा!!!!!! आपकी बेटी है तो बहुत सुंदर!!!!!" राजन की मां ने खुशी से कहा।
उनकी इस बात ने जैसे सबकी जान में जान डाल दी। हालांकि मुझसे किसी ने कहा तो नहीं पर उन सभी के चेहरे पर तनाव और चिंता को महसूस किया था मैनें।
पापा बस जवाब में उनकी ओर देखकर मुस्कुराए।
"अच्छा बेटा यह बताओं कि घर के काम तो कर लेती हो ना सारे????" वहां बैठी एक वृद्ध महिला ने मुझसे पूछा।
"जी मैं सबकुछ कर लेती हूं।" मैनें धीमे और मीठे स्वर में उत्तर दिया।
" हम्ममममम!!!! लड़की सुंदर है और काम भी सारा जानती है तो और क्या चाहिए????? मैं तो कहती हूं कि पक्का कर दो यह रिश्ता।।।" उस वृद्ध महिला ने राजन की मां और बुआ जी की ओर देखते हुए कहा।
उनकी यह बात सुनकर मेरे परिवार जनों का तनाव थोड़ा और कम हो गया और उन्होनें कुछ राहत भी महसूस की।
"मैनें तो पहले ही बोला था मां जी, मेरी भतीजी आपको एक बार में ही भा जाएगी।।।।।।।" बुआ जी उत्साहित होकर बोली।
बुआ जी की बात से मैनें अनुमान लगाया कि यह वृद्ध महिला और कोई नहीं बल्कि लड़के यानी राजन की नानी है। मैं मन ही मन विचार कर ही रही थी कि तभी राजन की मां ने कहा, " देखो बेटा तुम्हारा तो भरा पूरा परिवार है। इतने सारे लोगो के साथ रहती हो तुम पर हमारे यहां तो घर में मां बेटे बस हम दो ही जन है और उसमें भी राजन तो चला जाता है नौकरी करने दफ्तर घर पर रह जाती हूं अकेली मैं। क्या वहां निभा पाओगी????
रह पाओगी इतनी शांती में???"
उनके इस एकाएक पूछे सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। क्योंकि इस समय मैं खुद भी नहीं समझ पा रही थी कि मैं क्या जवाब दूं??? और आखिर मुझे क्या जवाब देना चाहिए मैं यह भी नहीं समझ पा रही थी।
मैं चुपचाप बैठी रही और मैनें सहायता के लिए मां को निहारा और उन्होनें बुआ जी को इशारा किया।
इशारा पाते ही बुआ जी बोली, " अरे लगता है बच्ची डर गई है,ऐसे एकदम से सबको छोड़कर जाने के नाम से। इसलिए कह नहीं पा रही है कुछ।"
" कोई बात नहीं बेटा!!!
होता है ऐसा!!!!
तुम आराम से इस बारे में सोचकर बताना।।।। ठीक।।। " बुआ जी कि बात सुनकर उन्होनें मुझसे प्यार से कहा।
उनका यह व्यवहार मुझे बहुत ही अच्छा लगा । और अपने सिर से एक भारी भरकम सवाल के हट जाने पर मैनें एक राहत भरी सांस ली।
"अरे बेटा राजन!!!!!!! तुम्हें नहीं पूछना कुछ भी??????" उन्होनें अपने बेटे कि ओर देखते हुए कहा।
वह भी शायद मेरी तरह सबके आगे संकोच महसूस कर रहा था इसलिए कुछ कह ना सका।
हालात को संभालने के लिए बुआ जी बोली," जीजी!!!!! भईया!!!!!!
क्या आप भी???
"अब आप सबके सामने क्या बात करेगें यह दोनों????"