Trisha - 4 in Hindi Women Focused by vrinda books and stories PDF | त्रिशा... - 4

The Author
Featured Books
Categories
Share

त्रिशा... - 4

जब त्रिशा के माता- पिता ने अपनी बेटी के साथ ऐसा होता देखा तो उन्हें बहुत बुरा लगा।
त्रिशा के आने के बाद उसके माता- पिता की जिंदगी पूरी हो चुकी थी और अब उन्हें कुछ और ना चाहिए था। अब तो बस वह अपनी बेटी के भविष्य को संवारना चाहते थे। इसलिए उन्होनें कभी दूसरी संतान के बारे में कुछ सोचा ही ना था। 

पर अपनी मां की जिद के आगे वह इस पर सोचने को  मजबूर हो गए और उनके इस प्रकार के व्यवहार के आगे वे दूसरी संतान के लिए राजी हो गए। 


जब कल्पेश की मां को उनके दूसरे बच्चे के आने की खबर मिली तो वह तो खुशी के मारे पागल ही हो गई थी। खबर पाने के पहले दिन ही उन्होने पूजा, हवन, पाठ और ना जाने क्या क्या करना शुरु कर दिया अबकी बार पोता पाने के लिए क्योंकि एक और बार पोती वह नहीं चाहती थी। इसलिए उन्होनें पहले महीने से ही भगवान को मनाना शुरु कर दिया था ताकि इस बार भगवान उनकी इच्छा पूरी करें। 

हालांकि इस समय में त्रिशा की दादी ने उसकी मां का पूरा पूरा ध्यान रखा था उनकी हर छोटी सी छोटी जरुरत का। बहुत सेवा खुशामत की उन्होनें अपनी बहू की। खान पान में कोई कमी ना आने दी। घर के कामों से भी छुट्टी दे दी उन्हें  पर होनी को तो शायद कुछ और ही मंजूर था। 

एक दिन जब उनका आठवां महीना चल रहा था तब   ना जाने कैसे जब कल्पना नहाने गई तो उनका पांव फिसल किया और वह जमीन पर गिर पड़ी। उन्हें तुरंत ही अस्पताल भेजा गया लेकिन फिर भी बहुत कोशिशों के बाद भी उनकी संतान को बचाया ना जा सका। 


इतना ही नहीं  डाॅक्टर ने उन्हें यह भी बताया कि गिरने के वजह और गर्भपात  के कारण उनका गर्भाशय अब इस अवस्था में नहीं रहा है कि वे पुनः किसी संतान को जन्म दे सके।  


इस हादसे ने उन सभी को दुखी किया पर त्रिशा की दादी तो इसके बाद सदमे में ही चली गई। उनकी पोता पाने की आस को डाॅक्टर की बात ने पूरी तरह से तोड़ दिया था‌। इस  बात को वह सहन ना कर पाई और पूरी तरह से हताश हो गई। उन्होने सबसे बोलचाल भी लगभग बंद सी कर दी। सारा समय वह खुद को बस अपने कमरे में ही बंद रखती थी। इतना ही नहीं उनके खाने पीने की मात्रा भी बहुत कम हो गई थी। 

उन्हें इस दशा में देख कर घर के सभी लोग दुखी थे पर अब वह कुछ कर भी तो नहीं सकते थे। आखिर ईश्वर की मर्जी के आगे आज तक किसकी चली है। उन्होनें तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी उनकी इच्छा पूरी करने की पर उनके भाग्य में केवल एक ही संतान का सुख था। 

पर फिर लगभग एक साल बाद, कल्पना की भाभी ने दो जुडवां लड़को को जन्म दिया। उनके पास पहले ही दो बेटे थे और अब जुड़वां लड़कों के जन्म के बाद उनके घर चार बेटे हो गए।

अपनी मां‌ कि स्थिती याद आते ही कल्पेश को एक विचार आया और अपनी मां की  खातिर उन्होनें कल्पना के भाई  सुदेश  से अपने नवजात शिशु में से एक लड़के को गोद दे देने की विनती की। सुदेश कल्पेश की इस बात पर राजी हो गए और अपना एक बेटा उन्हें कानूनी तौर पर गोद दे दिया। 


सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही  कल्पेश वहां  से सीधे अपनी मां के पास गए और वह पोता उनकी गोदी में लाकर रख दिया और उनसे बोले," ले मां!!! आ गया तेरा पोता। अब हो जा खुश और अब इस कोप भवन से बाहर निकल आ मां।"

"और हां अब रख दे इस पोते का कुछ अच्छा सा नाम जिसके‌ लिए तूने इतने समय तक इंतजार किया। "

कल्पेश की मां ने उसे गोद में  लिया और फिर सीने से‌ लगा लिया। इतने समय बाद अपनी इच्छा को यूं पूरा होता देख उनकी आंखों से आसूं निकल पड़े। अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए, रुंधी हुई आवाज में वह बोली," हालांकि यह  तेरा खुद का बेटा तो नहीं है पर फिर भी यह इस मरती हुई इस बुढ़िया का और कुछ दिन जीने का सहारा बन कर आया है। मेरे भाग्य में शायद यहीं पोता लिखा था इसलिए यह  अब इस रुप में आया है।"


"मां इसका नाम तो रख", कल्पेश ने खुश होकर कहा। 

"इसके आने का इंतजार मैनें बड़ी ही तनमयता से किया है, इसलिए मैं इसका नाम तन्मय रखती हूं। " इतना कह उन्होनें अपने पोते को एक बार फिर‌ गले से लगा लिया। 


पोते के आने के बाद अब कल्पेश की मां बहुत ही खुश थी और सिर्फ वह ही नहीं कल्पना, कल्पेश और त्रिशा सभी ही बहुत खुश थे। एक बार फिर से उनके जीवन में से दुख के और निराशा के बादल छट गए  थे और सब कुछ ठीक हो गया था।


अब कल्पेश के जीवन का बस एकमात्र यही लक्ष्य था कि वह अपने बच्चों को अच्छी सी अच्छी शिक्षा दे। और उनकी सभी जरुरतों को सही से पूरा कर सके।