"अगर आप सबको कोई आपत्ति ना हो तो मैं तो कहती हूं कि त्रिशा और राजन को कुछ समय एकांत में बात करने देते है।" बुआ जी ने हंसते हुए कहा और समर्थन के लिए हम दोनों के माता पिता की ओर देखने लगी।
कुछ सोच विचार के बाद हम दोनों के परिवारजनों ने हामी भर दी और फिर हम दोनों को जल्दी ही ऊपर छत के पास वाले कमरे में भेज दिया गया।
इस समय महक और भाभी हमारे साथ थी और फिर हम जैसे ही कमरे के बाहर पहुंचें भाभी और महक हमें अकेला छोड़कर चले गए। हम दोनों इस समय वहां अकेले थे और मेरा दिल इस समय बहुत ही जोर जोर से घबराहट के कारण धड़क रहा था। किसी सभ्य जन की तरह राजन ने मुझे अंदर चलने का इशारा किया और फिर हम दोनों एक के बाद एक उस कमरें में दाखिल हो गए।
अंदर आने के बाद वह कमरें के बाहर लगी खिड़की सी बाहर गली में खेलने वाले बच्चों को देखने लगा और मैं वहीं खड़ी उसे देखने लगी। बाहर सभी लोगों की उपस्थिती के कारण मैं राजन को ठीक तरह से देख ही नहीं पाई थी इसलिए इस समय मैनें उसे अब पहली बार तसल्ली से देखा।
अच्छी खासी लंबाई है, शरीर भी हष्ट पुष्ट है, रंग भी गोरा है और साथ ही आंखें भी कंजीं है। बाल काले और छोटे है और चेहरे की बात करे तो चेहरा भी साफ चिकना है एकदम।" देखने में और कपड़े पहनने के तरीके से तो बड़ा ही सभ्य जान पड़ता है यह।" मैं बुदबुदाई।
"कुछ कहा क्या तुमने???" राजन ने पलट कर मुझे देखकर पूछा।
उसके एकदम से यूं अचानक पलट कर मुझे देखने के कारण में थोड़ी सी चौक गई। ऐसा लगा जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो। घबराहट के कारण मेरे अक्षर मेरे ही मुंह में दब गए।
"ज.........
जी............
न....... ही......" मैं लड़खड़ाते हुए बोली लेकिन मेरे यह शब्द को मेरी खुद की ही समझ में ना आए थे तो उस बेचारे को क्या आते????
वह मुझे यूं घबराया देखकर हल्के से मुस्काता हुआ मेरी ओर बड़ने लगा। उसे यूं अपनी ओर आते देख मैं और भी घबरा गई। वह मेरे आगे आकर खड़ा हो गया और मुझसे पूछने लगा ," क्या तुम्हें पानी चाहिए??? मैं बोलूं किसी से???"
उसकी सरल आवाज सुनकर मेरे अस्थिर मन को थोड़ी शांती मिली और मैं इस बार हिम्मत करके बोली," जी नहीं!!!! शुक्रिया!!!"
"तुम्हारी आवाज तो तुम्हारी तरह ही सुंदर है।" वह धीरे से बोला और मुझे ना जाने क्यों शर्म आ गई।
मेरे चेहरे पर आई मुस्काने के साथ लाली को शायद उसने भी देख लिया। और वह भी मुस्काया।
"तुमने एम० एस० सी तक पढ़ाई की है???" उसने मुझसे पूछा।
"हां।" मैनें जवाब में कहा।
"तो इतना पढ़ने के बाद तुम्हारा बाहर कहीं नौकरी वगैरह का मन है क्या??" उसने कुछ रुची दिखाते हुए पूछा।
"जी मुझे पढ़ने का शौक है इसलिए मैनें पढ़ाई जारी रखी है लेकिन मेरा नौकरी करने का ऐसा कोई विशेष मन नहीं है।" मैनें ईमानदारी से जवाब दिया।
"ओह!!! चलो अच्छा है।।।
वो क्या है ना कि मेरा मानना है कि पति पत्नी में से बाहर की जिम्मेदारी को संभालना पति का फर्ज है और घर को देखना पत्नी का। और ऐसे में अगर पत्नी ही घर पर नहीं होगी तो पति और घर का ख्याल कौन रखेगा???" उसने अपने विचार रखें।
उसके विचार भी मुझे बाकी अन्य लोगों जैसे ही लगे। बचपन से यहीं देखते और सुनते आई हूं तो एक बार फिर यह सब सुनना मुझे कुछ अलग ना लगा। "यह दुनिया ऐसी ही है शायद और यह भी मेरे पिता, मामा और बड़े भाईयों की तरह ही होगा यदि इसकी सोच एसी है तो।" मेरे मन ने कहा।
"आपको कैसी पत्नी की आशा है??? मेरा मतलब है कि आप किन किन गुणों को अपनी पत्नी में देखना चाहते है???" महक की बात याद आते ही मैनें उससे पूछा।
उसने मेरी ओर देखकर मुस्कान के साथ कहा," मेरी पत्नी सुंदर हो, सुशील हो, संस्कारी हो, पढ़ी लिखी हों , मेरी और मेरी मां कि इज्जत करें, हमारा ध्यान रखे, घर में शांती बनाकर रखें , जो मुझे खुश रख सके और मेरी मां को भी खुश रख सके!!!!!!"
"और उसकी खुशी का क्या???? " मेरे मन में उठ रहे सवाल को पूछते हुए मैनें कहा।
"त्रिशा देखो!!!!! मै पढ़ा लिखा हूं, अच्छा खासा कमाता हूं, कम्पनी की तरफ से मुझे रहने के लिए फ्लैट भी मिला हुआ है। मैं इतना तो कमाता हि हूं अपनी पत्नी की हर इच्छा पूरी कर सकूं। साड़ी, कपड़े, गहने, कार, घर सब दे सकता हूं मैं उसे। " उसने आत्मविश्वास से कहा।
" क्या आपमें कोई ऐब भी है??" मैनें डरते हुए पूछा क्योंकि मां ने कहा था कि कोई भी ऐसी बात ना पूछना जिससे वह रुठ जाए।
" और रही बात मेरी आदतों की हां मैं कभी कभार एक आधी आॅफिस या दोस्तों के चक्कर में ड्रिंक कर लेता हूं लेकिन इसके अलावा और कोई ऐब नहीं है मुझमें।"