Trisha - 3 in Hindi Women Focused by vrinda books and stories PDF | त्रिशा... - 3

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त्रिशा... - 3

अपने आपको मिली पुश्तैनी जमीन के कुछ हिस्से को बेच व बंटवारे में मिले गहनों को गिरवी रख कल्पेश सिंह ने कुछ पैसों का इंतजाम किया और फिर शहर की सबसे व्यस्त मार्केट में एक दुकान किराय पर लेकर उसके  साड़ियों का व्यापार शुरु किया।


लगभग छः साल तक उन्होनें अपनी दुकान में बहुत कड़ी मेहनत करी। इधर उधर से लोगों से मिलकर नए नए तरह की डिजाईन वाली साड़ियों को अपनी दुकान पर लाए। दुकान अच्छे से चले इसलिए वहां पर हर प्रकार की साड़ी रखने की जरूरत थी और इसी जरूरत को पूरी करने के लिए उन्हें इधर उधर से कुछ कर्ज भी लेना पड़ा। पर बस इतने में ही बात नहीं बनी। दुकान को और अच्छे से चलाने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई और फिर बहुत अच्छे से अपनी दुकान का प्रचार प्रसार भी किया। 

कल्पेश के इस पूरे संघर्ष के समय में उनकी मां और उसकी पत्नी ने भी उनका बहुत साथ दिया। उनकी मां उनके साथ दुकान पर जाया करती थी और दुकान संभाला करती तब तक कल्पेश बाहर जाकर फेरी लगा कर आते क्योंकि शुरुआत में लोग नई दुकान पर जाने से कतराते थे।तो उन्होनें खुद ही दिन में कुछ घंटे छोटी छोटी कालोनियों में फेरी लगा लगा कर अपनी साड़ी बेचनी, लोगों से जान पहचान बनानी और‌ अपने दुकान की जानकारी देनी शुरु कर दी।     

इन छः सालों में अपनी दुकान से हो रही कमाई को वह उस दुकान में ही नया माल लाने में लगाए जा रहे थे‌। कमाए गए सभी पैसों को बार बार व्यापार में ही लगा देने के कारण यह छः वर्ष उनके और उनके परिवार के लिए बड़े ही आभाव में बीते। 


रोजमर्रा की जरुरतों को भी शुरु में बहुत मुश्किल से पूरा करा जा रहा था।पर समय के साथ- साथ धीरे धीरे सब ठीक होने लगा। लोगों का धीरे धीरे दुकान पर आना बढ़ा और दुकान की कमाई भी बढ़ी।  कमाई के बढ़ने पर मुनाफा भी बढ़ने लगा और अब चार पैसे व्यापार से बचकर घर में भी आने लगे। 

जैसे ही उनकी दुकान से कमाई शुरु हुई तो सबसे पहले उन्होनें अपनी पत्नी के गहने छुड़वाए और फिर धीरे धीरे सारा कर्ज उतारा। एकबार इन सब चीजों से मुक्ति पाते ही, उन्होंने अपनी दुकान और व्यापार का विस्तार शुरु कर दिया। 

अब वह अपनी  दुकान को और प्रचलित करने के लिए  भारत में पाई जाने वाली  हर प्रकार की कारीगरी वाली साड़ियां रखने लगे और फिर धीरे धीरे उन्होंने साड़ी के साथ साथ सलवार सूट और फिर लंहगा भी अपनी दुकान पर रखना शुरू कर दिया। कल्पेश के लगातार करते प्रयासों के कारण बस फिर क्या था, देखते ही देखते उनकी छोटी सी दुकान  बड़े से शोरुम में बदल गई और कल्पेश सिंह की दुकान का नाम मार्केट में छा गया। 


एक बार व्यापार सही से सेट होने के बाद उन्होनें सबसे पहले कुछ पैसे जोड़ एक छोटा सा घर खरीदा और फिर अपना सारा ध्यान अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलवाने पर लगाया। 

नन्हीं सी त्रिशा इस समय सात वर्ष की हो चुकी थी। अभी तक वह वहीं पास के एक छोटे से स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ती थी। लेकिन इस साल ही उसके पिता ने उसका दाखिला एक बहुत ही बड़े स्कूल में दूसरी कक्षा में करवा दिया है।  


6 वर्ष लगातार संघर्ष करने के बाद अब इस समय उनके जीवन में सब कुछ सही हो चुका था। उनकी दुकान सेट हो चुकी थी, उनका सारा कर्जा निबट चुका था, अपने लिए घर भी ले लिया था उन्होनें और अपनी बेटी का एडमीशन भी करवा दिया था अच्छे स्कूल में। 

कुल मिलाकर अब वह चैन की बंसी बजा रहे है और  जिंदगी सुकुन से अपनी मां, पत्नी और बेटी के साथ बिता रहे थे। पर उनके जीवन में यह शांति ज्यादा दिन टिक ना सकी क्योंकि सब कुछ एक बार पटरी पर आते ही उनकी मां के मन में एक पुरानी इच्छा ने अपनी वापसी कर ली थी। और उन्होनें फिर एक बार पोते की जिद पकड़ ली थी।  

पहले वह अपनी इच्छा अपने बेटे को बोलती रही पर जब बात ना बनी और उन्होनें देखा की उनका बेटा उनकी बात टाल रहा है तो इस बार अपनी बात मनवाने के लिए उन्होनें भूख हड़ताल शुरु कर दी। पर तबियत और शरीर के कारण यह भी विफल हो गई।

किंतु फिर भी उन्होनें हार ना मानी और इस बार उन्होनें  दूसरा तरीका अपनाया।  उन्होनें अबकी बार कैकई रुप धरा और हठ पकड़ ली। कहते है कि तीन हठ बहुत ही प्रबल होती है- बालहठ, राजहठ और स्त्री हठ और यह भी कहते है कि बुढ़ापे में व्यक्ति बालक बुद्धि के हो जाते है। तो कुल मिलाकर इस समय उनकी मां बाल हठ और स्त्री हठ दोनो के प्रभाव से एकदम जिद्दी बनी बैठी थी। जब तक उनकी जिद मानी ना गई थी तब तक वह रोज किसी ना किसी बहाने से इस बात पर कलेश करती थी।कभी उन्हें ताने पड़ते तो कभी उनकी पत्नी को। 


पोते की चाहत उनके मन में इतनी प्रबल हो गई कि उसकी आंच में अब धीरे धीरे नन्हीं त्रिशा भी झुलसने लगीं थी। जो ताने और कटु वाक्य अभी तक कल्पेश और उनकी पत्नी के लिए थे अब उनका रुख त्रिशा की ओर भी होने लगा। उन्होनें पोते के ना आने तक पोती से भी दूरी बना लेने का निर्णय ले लिया। वह अब उसकी ओर देखती भी ना थी। छोटी त्रिशा को अपनी दादी के व्यवहार में आए इस परिवर्तन का करण समझ तो भले ही ना आ रहा था पर इस से उसे दुख जरुर हो रहा था।