Trisha - 8 in Hindi Women Focused by vrinda books and stories PDF | त्रिशा... - 8

The Author
Featured Books
Categories
Share

त्रिशा... - 8

"अच्छा????" मैनें उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा। 

"हां तो अब बताओ चलो मुझे। शुरु से शुरु करके बताओ कि क्या क्या हुआ और यह बात यहां तक कैसे आई। " उसने उत्सुकता से पूछा। 

"अरे कुछ नहीं हुआ। वो आज जन्मदिन था मेरा और हमारे घर में बहुत‌ दिनों से कुछ हुआ नहीं था तो मम्मी ने बोला कि चलो इसके जन्मदिन पर हम कथा करा देते है। दिन में कथा हो जाएगी और रात में यह  लोग अपनी तरह से जन्मदिन मना लेगे। "  मैनें उसे सब बताना शुरु किया। 


"तो इसलिए मम्मी ने मेरी चचेरी बुआ जी को कथा पर आने का निमंत्रण दिया और जिस समय मम्मी ने उन्हें फोन किया तब राजन के माता पिता वहां पहले से ही मौजूद थे। वे लोग उनसे अपने लड़के की शादी के लिए किसी लड़की के बारे में पूछ रहे थे और यहां से मेरी मम्मी का फोन पहुंच गया और वहां मेरी बुआ ने मेरी बात चला दी। बस फिर क्या था कल‌‌ रात में ही फोन करके बताया बुआ ने कि वे सब हमारे घर आ रहे है मुझे देखने।" 

"और बस फिर क्या था सजा दिया है मुझे ऊपर से नीचे तक। और अभी कथा पूरी होने के बाद जाना है मुझे अपनी परिक्षा देने। "  मैनें उसे संक्षेप में सारी‌ बात बताई। 

"ओह!!!! तुम्हारी बुआ‌ जी ने तो सही फंसाया तुम्हें।" वह हंसते हुए बोली। 

"तो करते क्या है यह तुम्हारे राजन जी??" उसे मुझे छेड़ते हुए उत्सुकता से पूछा। 


"साॅफ्टवेयर इंजीनियर है और पूना में किसी कंपनी में  काम करते है। महीने का अस्सी हजार कमा रहे है। तुम्हें पता है मेरे पापा ने तो अस्सी हजार सुनते ही हां कर दी। "   मैनें कुछ दबी सी आवाज में कहा। 


"सही है। अंकल को लगा होगा लड़का  वैल सैटल्ड है तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी।" मेरी उसी दबी हुई आवाज को शायद वह सुन गई तो मेरे हाथों पर अपना हाथ रखते हुए बोली।  

"वैसे कोई तस्वीर वगैराह भी है उनकी??" उसने बात बदलते हुए उत्सुकता से पूछा। 

"नहीं तस्वीर तो नहीं है। बुआ ने बोला कि कल तो आ ही रहे हम लोग तो तभी देख लेना आंखों से लड़के को तस्वीर देखकर क्या करोगे।"  मैनें अपने हाथों में सुनहरी रंग की चूड़ियों को डालते हुए जवाब दिया।  

"ओह!!! चलो कोई नहीं आने दो हम भी आंखों से ही देख लेंगे इन्हें।"  उसने मुझे चूड़ियां पकड़ाते हुए कहा। 


"वैसे कैसा लग रहा है तुम्हें???" उसने मुझे देखते हुए पूछा। 


"शब्दों में बता पाना मुश्किल है कि कैसा लग रहा है। अंदर ही अंदर ना जाने कैसी घबराहट सी हो रही है और पेट में रह रह कर गुड़गुड़ सी हो‌ रही है। भूख प्यास कुछ नहीं लग रही है टेंशन में‌। कल तो फिर‌ भी मैनें कुछ खा लिया था पर आज तो सुबह से पानी भी गले से नीचे नहीं उतरा है टेंशन में।"  मैनें उसे अपनी व्यथा बताते हुए कहा। 

" अरे तुम इतनी टेंशन क्यों ले रही हो? तुम मैं कोई कमी है ही नहीं जो तुम इतनी टेंशन ले रही हो। और वो लोग बस तुमसे मिलने ही तो आ रहे है। तुम उन्हें पसंद आओगी तो ठीक है और नहीं तो फिर भी ठीक है। वो नहीं तो और कोई सही। इससे ज्यादा क्या होगा?? और थोड़ा तो  विश्वास रखो खुदपर। ऐसी क्या कमी है तुम में जो बात नहीं बनेगी। सुंदर हो, पढ़ी लिखी हो, रसोई में माहिर हो और क्या ही चाहिए  उन्हें। तो खुद पर इतना दवाब ना बनाओ। जो होगा अच्छा ही होगा। "  वह मुझे दिलासा देते हुए बोली। 

"हम्मम!!! शुक्रिया। " मैनें हल्की मुस्कान के साथ कहा। हांलांकि मेरी हालात में कोई बदलाव हुआ ना था हां पर उसकी बातों को सुनकर मुझे अच्छा सा लगा। थोड़ा हौसला सा आया मेरे मन‌ में उसकी बातों से।  

"अरे वाह!!!!!!! तुम तो बहुत ही सुंदर लग रही हो त्रिशा!!!!" भाभी ने अंदर आकर मुझे देखते हुए कहा। 

"खड़ी हो जरा।  मुझे  ठीक से देखने तो दो। "  वह प्रसाद की थाली एक तरफ रखते हुए बोली। 

उनके कहने पर मैं खड़ी हुई और फिर उन्होनें ऊपर से नीचे तक मुझे निहारा और फिर वह मुझे सही से तैयार देखकर संतुष्ट होकर बोली,
" वाकई में तुमने बहुत अच्छा काम किया महक!! बिल्कुल चांद का टुकड़ा लग रही है हमारी  नन्द रानी। "  वह महक को देखकर बोली। 

मैं उनकी बात सुनकर थोड़ा सा शरमा गई। पर महक अपनी तारीफ सुनकर चहक उठी और उत्साहित होकर बोली," तो क्या लगता है भाभी आपके वो मिस्टर राजन मेरी सहेली को देखकर एकदम लट्टू हो जाएगें या नहीं।" 

"अरे बिल्कुल। 
बिल्कुल । 
क्यों नहीं??? उन्हें तो‌ देखना देखते ही पसंद आ जाएगी हमारी त्रिशा।"  भाभी ने महक के सवाल के जवाब में हंसते हुए बोला। 

उन दोनों की बात सुनकर मेरे आंखें शर्म से और झुकी गई  और मेरे गालों पर लाली आ गई। और होठों पर एक हल्की मुस्कान छा गई। मैनें बहुत कोशिश की मेरी यह हरकत किसी की नजर में ना आए पर कहते है ना पक्के दोस्त आपकी रग रग से वाकिफ होते है।