हिमालय की वादियों में बसा एक छोटा सा गाँव था, जिसका नाम 'मनोहारी' था। इस गाँव में सूरज की पहली किरणें पहाड़ों की चोटियों को छूती थीं और रात में चाँदनी पूरी वादी को अपनी गोद में ले लेती थी। इसी गाँव में किरण नाम की एक लड़की रहती थी। किरण जितनी सुंदर थी, उसका मन उतना ही पवित्र था। उसकी हँसी किसी चिड़िया के मधुर गीत जैसी थी और उसकी आँखें हिमालय की बर्फीली चोटियों जैसी शांत।
किरण का बचपन से ही एक दोस्त था, आदित्य। आदित्य बहुत ही मेहनती और सीधा-साधा लड़का था। उसके पिता एक छोटे किसान थे और आदित्य भी बचपन से ही अपने पिता के साथ खेतों में हाथ बंटाता था। बचपन से ही दोनों साथ-साथ खेलते, हँसते और बड़े हुए। कब उनकी दोस्ती गहरे प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला।
आदित्य का सपना था कि वह गाँव से बाहर जाकर पढ़-लिखकर एक बड़ा आदमी बने, ताकि वह किरण को हर खुशी दे सके। उसने अपने सपने के बारे में किरण को बताया। किरण भी बहुत खुश हुई। "आदित्य, तुम जाओ और अपना सपना पूरा करो। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी।"
एक दिन आदित्य ने किरण से वादा किया, "किरण, मैं शहर जा रहा हूँ, लेकिन एक दिन मैं ज़रूर वापस आऊँगा। जब मैं वापस आऊँगा, तो हम शादी करेंगे। यह अंगूठी हमेशा अपने पास रखना, यह हमारे प्यार की निशानी है।"
किरण ने खुशी-खुशी अंगूठी पहनी और आदित्य को विदा किया। गाँव के रास्ते से आदित्य की बस दूर जाते हुए देखकर किरण की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसके मन में एक उम्मीद की किरण थी। वह रोज शाम को उसी जगह पर बैठकर आदित्य का इंतज़ार करती थी।
शुरुआती दिनों में, आदित्य के खत नियमित रूप से आते थे। वह शहर की बातें लिखता था, अपनी पढ़ाई के बारे में बताता था, और हर खत में अपने प्यार का इज़हार करता था। किरण के लिए वो खत ही उसकी दुनिया थे। वह खतों को बार-बार पढ़ती और खुशी से मुस्कुराती।
धीरे-धीरे, खतों का आना कम हो गया। किरण बहुत बेचैन रहने लगी। वह रोज शाम को गाँव के डाकघर जाती, लेकिन कोई खत नहीं आता। उसके माता-पिता उसे समझाते थे, "शहर में काम और पढ़ाई बहुत होती है, शायद इसीलिए वह खत नहीं लिख पा रहा है।" लेकिन किरण का दिल यह मानने को तैयार नहीं था। वह हर दिन बेचैनी से उसका इंतज़ार करती रही।
इसी बीच, गाँव में एक बहुत ही संपन्न परिवार का लड़का, समीर, किरण को पसंद करने लगा। समीर ने किरण के माता-पिता से शादी का प्रस्ताव रखा। समीर बहुत अच्छा लड़का था और उसके पास ढेर सारी ज़मीन और पैसा था। किरण के माता-पिता को लगा कि समीर के साथ शादी करके किरण की ज़िंदगी अच्छी हो जाएगी।
किरण को जब यह बात पता चली तो वह रोने लगी। "मैं सिर्फ़ आदित्य से प्यार करती हूँ और उसी का इंतज़ार करूँगी।"
उसके पिता ने दुखी होकर कहा, "किरण, बेटा, अब बहुत साल बीत गए हैं। आदित्य का कोई खत नहीं है, कोई खबर नहीं है। हम कब तक उसका इंतज़ार करेंगे? उसकी याद में तुम अपनी ज़िंदगी क्यों बर्बाद कर रही हो?"
किरण ने हार नहीं मानी। उसने अपने माता-पिता से कुछ और समय माँगा। समीर ने भी किरण की हालत देखकर उसके माता-पिता से कहा, "मैं किरण पर कोई दबाव नहीं डालना चाहता। मैं उसका इंतज़ार करूँगा।" समीर की यह बात सुनकर किरण के माता-पिता और भी प्रभावित हुए।
कुछ और साल बीत गए। गाँव के लोग भी कहने लगे, "आदित्य शहर चला गया और तुम्हें भूल गया।" किरण का दिल दुख से भर गया, लेकिन उसने आदित्य की दी हुई अंगूठी कभी नहीं उतारी।
एक दिन, गाँव में एक बीमार और बूढ़ा आदमी आया। उसके कपड़े फटे हुए थे और वह बहुत कमजोर था। उसने गाँव के एक बुज़ुर्ग से पूछा, "क्या आप किरण को जानते हैं?"
बुज़ुर्ग ने कहा, "हाँ, जानता हूँ। तुम कौन हो?"
उस आदमी ने रोते हुए कहा, "मैं... मैं आदित्य हूँ।"
बुज़ुर्ग ने उसे तुरंत पहचान लिया। वह दौड़ा-दौड़ा किरण के घर गया और कहा, "किरण, आदित्य आ गया है।"
किरण अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। वह दौड़ी-दौड़ी गाँव के चौराहे पर गई, जहाँ वह रोज़ आदित्य का इंतज़ार करती थी। वहाँ उसने एक बूढ़े, बीमार आदमी को देखा। यह वही था जिसने उसे अपनी ज़िंदगी की हर खुशी देने का वादा किया था। आदित्य ने किरण की ओर देखा, उसकी आँखों में आँसू थे। उसने अपने हाथ में एक पुरानी डायरी और एक फटा हुआ लिफ़ाफ़ा पकड़ा हुआ था।
"किरण, मुझे माफ़ कर दो," आदित्य ने मुश्किल से कहा। "शहर में मैं एक बहुत बड़ी दुर्घटना का शिकार हो गया था। मेरा एक हाथ चला गया था और मैं कई साल तक अस्पताल में रहा। मेरे पास खत लिखने के लिए पैसे नहीं थे और मैं तुम्हें अपनी इस हालत में नहीं बताना चाहता था।"
किरण ने रोते हुए उसे गले लगा लिया। "मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है, आदित्य। मुझे सिर्फ़ तुम्हारे वापस आने की खुशी है।"
आदित्य ने अपनी डायरी दिखाई। उसमें उन सभी खतों के जवाब थे, जो वह किरण को लिखना चाहता था, लेकिन लिख नहीं पाया था। उस डायरी के आखिरी पन्ने पर उसने लिखा था, "मैं तुम्हें इस हालत में नहीं मिल सकता, किरण। मैं नहीं चाहता कि मेरी बीमारी और लाचारी तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा बने।"
यह पढ़कर किरण का दिल भर आया। उसने आदित्य को समीर के बारे में बताया और कहा, "मैं तुमसे ही शादी करूँगी, चाहे तुम जैसे भी हो।"
उस रात, गाँव के सभी लोग इकट्ठा हुए। समीर भी वहाँ था। समीर ने आदित्य से कहा, "तुम और किरण एक दूसरे के लिए बने हो। मैं तुम दोनों की शादी करवाऊँगा।"
अगले ही दिन, गाँव के लोगों ने मिलकर आदित्य और किरण की शादी की तैयारी शुरू कर दी। समीर ने अपनी सारी दौलत खर्च करके दोनों की शादी करवाई। आदित्य का इलाज भी समीर ने करवाया।
किरण ने आदित्य को शादी के बाद बताया, "मैंने तुमसे प्यार किया था और समीर ने हमारे प्यार का सम्मान किया। हमारे प्यार की निशानी सिर्फ़ अंगूठी नहीं, बल्कि समीर का त्याग भी है।"
आदित्य की आँखों में आँसू थे। वह जानता था कि किरण का प्यार कितना गहरा था और समीर का दिल कितना बड़ा। दोनों ने मिलकर अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत की।
सीख: सच्चा प्यार सिर्फ़ पाने का नाम नहीं, बल्कि त्याग और इंतज़ार का भी है। और कभी-कभी, दूसरों का प्यार ही हमें हमारे सच्चे प्यार से मिलाता है।
Instagram 🆔 : writer_samir_