अक्टूबर की एक खुशनुमा शाम थी, जब देहरादून की सर्द हवाओं में, निशांत और रिया पहली बार मिले। निशांत एक उभरता हुआ फोटोग्राफर था, जिसकी नजरों में दुनिया सिर्फ एक तस्वीर थी। रिया, एक आर्किटेक्ट, जो जिंदगी को अपनी योजनाओं के खांचों में ढालना चाहती थी। उनकी मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड की पार्टी में हुई थी, जहाँ निशांत अपनी पुरानी फिल्म कैमरा के साथ कुछ ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें खींच रहा था, और रिया कोने में बैठकर अपनी डायरी में कुछ स्केच बना रही थी।
"अकेले में इतना क्या सोच रही हो?" निशांत ने उसके पास जाकर पूछा। उसकी आवाज में एक अजीब-सी सहजता थी, जिसने रिया को चौंका दिया।
रिया ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "मैं दुनिया को अपनी बनाई इमारतों से सजाना चाहती हूँ। पर तुम क्या कर रहे हो? ये डिजिटल के जमाने में पुरानी फिल्म से तस्वीरें?"
"मैं सिर्फ वही कैद करता हूँ, जो दिल को छू जाए। डिजिटल तो सब कुछ दिखा देता है, पर पुरानी फिल्म में वो एहसास कैद होता है, जो हर बार देखने पर नया लगता है।" निशांत की इस बात ने रिया के दिल में एक हल्की-सी दस्तक दी।
उनकी बातचीत घंटों तक चली। निशांत ने रिया को बताया कि वह कैसे हर सुबह मसूरी की पहाड़ियों पर उगते सूरज की पहली किरण को अपने कैमरे में कैद करने जाता है। रिया ने उसे अपने सपनों के बारे में बताया, कि कैसे वह एक ऐसी इमारत बनाना चाहती है, जिसमें हर कमरा एक कहानी कहे।
उस दिन के बाद, उनकी मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। निशांत अब अपनी हर सुबह की सैर पर रिया को साथ ले जाता। वो दोनों मिलकर चाय की टपरी पर बैठे घंटों बातें करते, कभी पुरानी फिल्मों पर, तो कभी जिंदगी के फलसफों पर। निशांत ने रिया को तस्वीरें खींचना सिखाया, और रिया ने उसे बताया कि कैसे एक खाली कैनवास पर सपनों के रंग भरे जाते हैं।
धीरे-धीरे, उनके बीच की दोस्ती प्यार में बदलने लगी। यह एक ऐसा प्यार था, जो तेज बारिश की तरह नहीं, बल्कि सुबह की ओस की तरह धीरे-धीरे फैल रहा था। एक दिन जब वो मसूरी की माल रोड पर घूम रहे थे, तब अचानक हल्की बारिश शुरू हो गई। निशांत ने रिया का हाथ थामा और उसे एक पुरानी छाता के नीचे ले गया।
"रिया, मैं तुम्हें अपनी जिंदगी में हमेशा के लिए रखना चाहता हूँ," निशांत ने धीरे से कहा। "तुम मेरी हर तस्वीर का सबसे खूबसूरत हिस्सा हो।"
रिया की आँखों में आँसू आ गए। "निशांत, मेरे सपने बहुत बड़े हैं। क्या तुम मेरा साथ दे पाओगे?"
"तुम्हारे सपने ही तो मेरे कैमरे का लेंस हैं, रिया। जब तक तुम सपने देखोगी, मैं उन्हें कैद करता रहूँगा।" निशांत ने प्यार से उसका माथा चूमा। उस पल, उन दोनों को यह एहसास हुआ कि उनका प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सपनों को पूरा करने का वादा है।
मगर जिंदगी हमेशा सीधी रेखा में नहीं चलती। निशांत को एक इंटरनेशनल फोटोग्राफी कॉन्टेस्ट के लिए पेरिस जाना था। यह उसके सपनों की मंजिल थी। रिया ने उसे जाने के लिए प्रेरित किया, पर उसके दिल में एक डर था। दूरी अक्सर रिश्तों को कमजोर कर देती है।
"मैं जल्दी लौट आऊँगा," निशांत ने एयरपोर्ट पर उसे गले लगाकर कहा।
"मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी," रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, पर उसकी आँखों में उदासी थी।
पेरिस में निशांत का काम बहुत अच्छा चल रहा था। उसकी तस्वीरें दुनिया भर में सराही जा रही थीं। पर उसका मन देहरादून में रिया के पास था। हर शाम वो उसे वीडियो कॉल करता, उसे अपनी नई तस्वीरें दिखाता और रिया उसे अपनी नई इमारत के बारे में बताती।
एक साल बाद, निशांत कॉन्टेस्ट जीत गया। उसे दुनिया भर में पहचान मिली। जब वह वापस लौटा, तो देहरादून का वही स्टेशन था। पर इस बार रिया उसे लेने आई थी। उसने एक लाल साड़ी पहनी थी, और उसके चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान थी।
"तुमने कर दिखाया, निशांत!" रिया ने उसे गले लगाकर कहा।
"हम दोनों ने, रिया। तुम्हारे प्यार ने मुझे हिम्मत दी।" निशांत ने कहा।
रिया ने उसे एक लिफाफा दिया। उसमें उसके बनाए एक घर का स्केच था। वह एक खूबसूरत घर था, जिसमें एक तरफ बड़ी सी खिड़की थी, जहाँ से पहाड़ दिखते थे, और दूसरी तरफ एक बड़ा सा स्टूडियो था। "ये हमारे सपनों का घर है," रिया ने कहा।
निशांत ने मुस्कुराकर उस स्केच को देखा। यह सिर्फ एक घर का नक्शा नहीं, बल्कि उनके प्यार का, उनके साथ बिताए हर पल का, और उनके आने वाले कल का सपना था। उसी शाम, उन दोनों ने मिलकर उस घर की नींव रखने का फैसला किया। उस घर की दीवारों पर निशांत की खींची हुई तस्वीरें थीं और हर कोने में रिया के सपने।
यह कहानी सिर्फ दो लोगों के प्यार की नहीं थी, बल्कि दो अलग-अलग सपनों के एक होकर एक खूबसूरत हकीकत में बदलने की थी। निशांत और रिया ने साबित कर दिया था कि प्यार दूरी और समय से परे होता है। यह सिर्फ एक-दूसरे का हाथ पकड़ना नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सपनों को जीना होता है।
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