**"बारिश की बूँदें और एक ख़ामोश दर्द"**
वो गाँव की पगडंडियों पर चलते हुए हमेशा उसकी ओर देखता था। अर्जुन की आँखों में वो लड़की, नैना, एक सपना थी जिसे पाने के लिए उसकी साँसें तरसती थीं। पर नैना की आँखें हमेशा कहीं और टिकी रहतीं—शायद उस अतीत में जिससे वो भाग रही थी। उसके पिता की मौत ने उसे ज़िंदगी से बेज़ार कर दिया था, और प्यार? वो तो उसके लिए एक "झूठा सुकून" था।
एक दिन, अर्जुन ने नैना के दरवाज़े पर एक गमला रखा। उसमें एक गुलाब था, जिसकी पंखुड़ियों पर उसने लिखा था: *"तुम्हारी ख़ामोशी भी मेरे लिए एक गीत है।"* नैना ने गमला देखा, मुस्कुराई भी नहीं। उसने गुलाब को नहलाती बारिश में छोड़ दिया।
मगर अर्जुन रुका नहीं। वो हर सुबह उसके लिए खेतों से ताज़े फूल लाता, उसकी खिड़की के नीचे कविताएँ छोड़ जाता, और चुपचाप उसके दुख को समझने की कोशिश करता। एक शाम, जब नैना नदी किनारे बैठी थी, अर्जुन ने पूछ ही लिया:
"तुम्हें डर लगता है क्या? प्यार से?"
नैना ने पत्थर उठाकर पानी में फेंका, "डर नहीं... यकीन नहीं रहा। जिसने मुझे जन्म दिया, वो भी चला गया। तुम्हारा 'प्यार' कितने दिन टिकेगा?"
मानसून आया तो नैना बीमार पड़ गई। बुख़ार में तपती रातों में अर्जुन उसके घर के बाहर खड़ा रहा, दवा और सूप का थर्मस कोठी पर रखकर चला जाता। एक रात नैना ने दरवाज़ा खोला। उसकी आँखें नम थीं:
"तुम क्यों करते हो ये सब? मैं तुम्हें चाहती नहीं।"
अर्जुन ने झुककर ज़मीन पर गिरी एक पंखुड़ी उठाई:
"मेरा प्यार तुम्हारी मरज़ी का मोहताज नहीं। ये तो वो नदी है जो बहती है, चाहे पत्थर रोकें या न रोकें।"
समय बीता। नैना ने शहर जाने का फ़ैसला किया। जाते वक़्त उसने अर्जुन को एक चिट्ठी दी:
*"तुम्हारा प्यार वो पहली बारिश थी जिसने मेरे सूखे दिल की मिट्टी को नर्म किया। शायद इसे उगने में वक़्त लगे... पर तुम्हारी बूँदों ने मुझे ज़िंदा रखा। माफ़ करना, आज नहीं सह पा रही।"*
अर्जुन ने चिट्ठी को अपनी डायरी में रख लिया। उस दिन से वो नदी किनारे एक पेड़ लगाता है हर साल—एक उम्मीद कि शायद जड़ें कभी उसके इंतज़ार की ज़मीन तक पहुँचें।
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कहानी का मकसद ये दिखाना है कि प्यार कभी-कभी "पाने" में नहीं, बल्कि "देने" में होता है। और कभी-कभी, किसी के दिल को छूने के लिए "ख़ामोशी" भी काफ़ी होती है। ❤️ कैसी लगी?
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### **अध्याय 1: वो जो अधूरे सपनों में खो जाती थी**
नैना के पिता की मौत के बाद से, उसकी दुनिया सिर्फ़ दो रंगों की रह गई थी—काला और सफ़ेद। वो गाँव की पुस्तकालय में बैठकर पुरानी किताबों के पन्ने पलटती, मानो उनमें कोई जवाब छिपा हो। एक दिन, अर्जुन ने देखा कि वो *रवींद्रनाथ टैगोर* की "गीतांजलि" की एक पंक्ति पर उंगली रोके खड़ी है: *"जिसे तुम खोजते हो, वो तुम्हारे खोजने में ही छुपा है।"*
अर्जुन ने धीरे से कहा, "ये पंक्ति... मुझे लगता है, ये हमारे बारे में है।"
नैना ने किताब बंद कर दी, "तुम्हारी हर बात में 'हम' क्यों होता है? मैं तो अकेली हूँ।"
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### **अध्याय 2: वो पत्र जो कभी नहीं लिखा गया**
अर्जुन की दादी ने उसे एक बार कहा था—*"प्यार एक ऐसा बीज है जो धैर्य की मिट्टी में ही उगता है।"* शायद इसीलिए वो हर रात नैना के लिए एक पत्र लिखता, पर कभी देता नहीं। उन पत्रों में वो लिखता:
*"आज तुमने नदी में चाँदी की मछलियाँ देखीं? मैंने सोचा, तुम्हारी आँखें भी ऐसी ही चमकती होंगी जब तुम खुश हो... शायद कभी देख पाऊँ।"*
एक दिन हवा ने वो पत्र उड़ाकर नैना के आँगन में गिरा दिया। उसने पढ़ा, और पहली बार उसके होंठों पर एक सिकुड़ी हुई मुस्कान आई।
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### **अध्याय 3: वो रात जब अंधेरे ने सवाल किए**
गर्मियों की एक रात, गाँव में आग लगी। नैना का घर आग की लपटों के बीच था। अर्जुन ने उसे बाहर खींचा, पर उसकी बाँह पर जलने का निशान रह गया। अस्पताल में, नैना ने पूछा, "तुमने ऐसा क्यों किया? मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं हूँ।"
अर्जुन ने अपनी धोती फाड़कर उसकी बाँह पर बाँधी, "तुम मेरी नहीं हो सकतीं, पर मैं तुम्हारा हूँ। ये आग भी इस सच को नहीं बदल सकती।"
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### **अध्याय 4: शहर की चकाचौंध और एक खोया हुआ सिलसिला**
नैना के जाने के बाद, अर्जुन को उसका एक
कहानी का मकसद ये दिखाना है कि प्यार कभी-कभी "पाने" में नहीं, बल्कि "देने" में होता है। और कभी-कभी, किसी के दिल को छूने के लिए "ख़ामोशी" भी काफ़ी होती है। ❤️ कैसी लगी? आगर आप चाहते की इसके आगे की भी कहानी चाहिए तो Comment कर दीजिए 🌅🌸