Imperfectly Fits You - 6 in Hindi Love Stories by rakhi jain books and stories PDF | Imperfectly Fits You - 6

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Imperfectly Fits You - 6

//😳🤯6th class ##**

😳🤯6th class...!!🤔 ये मेरे साथ पढ़े है? मेरी क्लास में थे ?  इतना बड़ा दिखने वाला इंसान जिसे में अपने से बड़ा समझ रही थी वो मेरा क्लासमेट है !! कैसे?? और ये अब क्यों बताया ! इसमें छुपाने वाली क्या बात थी ! और मुझे याद क्यों नहीं है ।  🤔🤔

सब सवाल मेरे दिमाग में एक साथ मंडरा गए । मैने तो इमैजिन ही कुछ और किया था और कुछ अलग ही हो गया। मैने सबसे पहले उनसे यही पूछा के आप मेरे स्कूल में कब थे मुझे याद नहीं आ रहा ।

( सत्या ) - बचपन से वही पढ़ा हु। हा पर पूरा नहीं पड़ पाया था । 

(सखी) - तो कहा तक पढ़े हो वहां

(सत्या ) - 8th tak 

(सखी) - 8th तक के तो सब मुझे याद है ऊपर क्लास लगती थी 4सेक्शन थे और सब लोग को अच्छे से जानती थी मैं। 

(सत्या) - तुम पढ़ाकू लोगो के साथ रहती थी मैं दूसरे ग्रुप में था उनलोग से तुम उतना बात नहीं करती थी । समीर , रवि, विकास याद है । तब लता mam  थी हिंदी पड़ती थी । 

(सखी) - हा सब याद है।  बस तुम याद नहीं आ रहे हो तुम्हारे जैसा एक था पर वो तुम नहीं हो

(सत्या)- तुम???

(सखी) - स्कूल फ्रेंड हो अब टीम मैनेजर नहीं रहे ।

(सत्या)- कंपनी में भी ऐसे बिहेव करोगी..

(सखी) - 🤐 आप ही ठीक है

(सत्या)- good 👍🏻 😊 

( सखी) - सच में उसी स्कूल से हो ।

(सत्या)- बैंडे mam प्रिंसिपल थी फिर 7th हरदास mam आ गई थी । तुम तनु , भक्ति ,रजत,विशाल  इन लोग के साथ रहती थी । और क्या बताऊं ? 

तुम्हे मैं याद ही नहीं?

(सखी ) - मुझे पता नहीं .... ऐसे क्लियर याद नहीं आ रहा है मतलब याद आ रहा है पर clear नहीं है।


/*दिल में कुछ दिखाना कुछ...../

अब के हालात तब से बहुत अलग है.......2025 और 2016 में बहुत अंतर है । तब किसी की उम्मीद थी कि कोई आ जाए और मुझे संभाल ले... मुझे संवार दे जो हिस्सा अपनी क्रिएटिविटी के मैं देख नहीं पाई .... जो ऊंचाई में अभी तक छू नहीं पाई वो उसके आने से निखर जाए । तब कोई ऐसा था जो शायद मन ही मन में मुझे चाहने लगा था मेरी लिए शायद बहुत कुछ करना चाहता था । अब मुझे कोई उम्मीद नहीं.....2025 एक ऐसा साल रहा जिसने मेरी जिंदगी में सारे एहसास की सुनामी लेकर आया और वापस जाते हुए मुझे ही मुझसे ही खींच ले गया । अब जिदंगी में जो जैसा मिला उसका comparision ख्वाबों से नहीं होता ।... वो हकीकत ही रह जाता है.... अब सपने जैसा कुछ नहीं ।  शायद अब वो इंसान भी नहीं जो मुझे चाहता था और मैं चाहती भी नहीं कि कोई मुझे चाहे । सब सुना सा है और शायद ऐसा ही ठीक है। कुछ दिनों की बहार से बेहतर सालों का सूखा ही अच्छा है । बारिश की दो बूंद भी वो धरती पूरे दिल से सोख लेती है । ऐसे नाउम्मीदी भरे दिल हर छोटी खुशी को अपना लेते है क्योंकि उनमें वह तड़प है प्यास है उस प्यार की ....लेकिन फिर कभी वैसे निखर नहीं पाते । सब कुछ खो कर हम वो बन जाते है जो अधूरे हो कर भी पूरे दिखाई देने लगते है। सामने से दिखने वाला इंसान इतना खुश मालूम होने लगता है कि अंदर की वेदना भी खामोशी से तबाही मचा कर शांत हो जाती है। मैं जैसा सोचती थी सत्या का सोचना उससे बहुत अलग था ।......

/*वो तेरा मुझसे फिर से मिलना...../

(सत्या) तुमसे क्या ही कहुं। बस तुम्हे सुनना है... तुम्हे जानना है ..... इतने साल कैसी रही तुम ...कौन कौन तुम्हारे करीब था । क्या क्या बुरी आदत पड़ी है और क्या क्या छुपा के रखी हो। 

जब तुम्हारा रिज्यूमे देखा था सोचा था शायद बहुत चेंज हो गई होगी इतना पढ़ लिख ली हो । अलग फ्रेंडकर्कल होगा । अगर यहां आई और मुझे पहचान ली मेरी पढ़ाई का पूछी तो क्या कहूंगा मैं। कैसे रिएक्ट करेगी । लेकिन तुम अब भी वैसी ही हो । वैसी ही बच्चों सी मासूम हो । हा कॉलेज की थोड़ी हवा तो लगी है ज्यादा ओपन सोचती हो और तू तड़ाक़ में बात करना पसंद करती हो।और कुछ नए वल्गर शब्द भी बोल देती हो अपने फ्रेंड्स में ..,पर ये सब तुमपर सूट नहीं करता । जब तुम्हे पहली बार यहां देखा तो मेरा बचपन लौट आया जो कही छूट गया था । तुम्हे देख कर वो सारा माहौल दिमाग में जीवंत सा हो गया । व्हाइट शर्ट ब्ल्यू पेंट में लगी कतारें और प्राथना के वो बोल " हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए , शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए....." और 15 अगस्त, 26 जनवरी में तुम्हारे गीत । दोस्तो की भीड़ और वो मस्ती भरे दिन जहां दोस्तो के बीच टशन से घुमा करता था ।

तुम्हे जब फिर से जाना तो मन में यही आया के काश तुम मेरे करीब हो जाओ मुझे सबसे ज्यादा जानने वाली मुझे सबसे ज्यादा मानने वाली बन जाओ । मुझे पता नहीं क्यों पर ऐसा मन चाहता है कि जैसे लतिका पूनम मेरी फ्रेंड थी उससे भी करीबी तुम हो जाओ । तुम उस तरह कभी मुझसे फ्रीली बात करो अपने बारे में , मेरे लिए वक्त निकालो। 

मुझे तुम्हारी आवाज से लगाव है तुम्हारी बातों से लगाव  है लेकिन मैं किसी पूर्वाग्रह से डरता हूं  तुम उन लोगों को भी अपना समय दे देती हो जो तुम्हे डिजर्व नहीं करते , मुझे ताज्जुब होता है कि तुम खुद को ही जान नहीं पाई हो । पर लगता है शायद तुम ऐसी जगह ही रहना चाहती हो ऐसे लोगो के आस पास और मैं वहां भीड़ में शामिल नहीं होना चाहता इसलिए भाग जाता हु मैं चाहता तुम जैसी मेरे लिए हो वैसी किसी के साथ न रहो वैसे बात न करो।  लेकिन ये कहने का हक मेरा नहीं है हा खुद को वहां से अलग रखने का हक है काश कभी तुम खुद से मेरे लिए ऐसा करो । 

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/*कौन डूबा... कौन बचा*/

मैं यूं तो बहुत समझदार हूं इमोशनल इंटेलीजेंस तगड़ा है और मेरा इन्ट्यूशन पावर भी बहुत बढ़िया है पर ऊपर वाले ने मेरे दिमाग के तार हिला दिए कई बार चीज सामने रहते हुए भी समझ नहीं पाती । सत्या के लंबे चौड़े msg में मैने वही बात पकड़ी जो मुझे नहीं देखना था बाकी चीजे मैं समझ ही नहीं पाई  मुझे उस कविता में भी वो मतलबी इंसान लग रहे थे "  मैने हेल्प की इसलिए याद थी " " और ऐसा क्या है जो दोस्तो से कहा है मेरे बारे में....!?" आपलोग हंस सकते है मेरी स्टूपिडिटी पर ..! 

इसके बाद... दोस्ती और बाते थोड़ी और बढ़ी... सत्या ने मुझे नए किरदार से नवाज दिया - " तुम मेरी बहुत क्लोज वाली  फ्रेंड हो.. स्पेशल वाली " ।

साथ में एक रास्ता शेयर करते हुए आना जाना , रोज msg मे बाते और ऑफिस में एम्पलाई - बॉसी नेचर । उनका काम को समय की सुई से गिनना , रिकॉर्ड्स की बारीकियों पर डांटना और ऑफिस से बाहर निकलते ही साथ में जाना , स्ट्रीट फूड के लिए जिद करना दिन ऐसे ही बीत रहे थे कभी लगता था क्या मुसीबत है इतना चिपकना मुझे पसंद नहीं 🤨 .... और कभी लगता कितना खडूस है थोड़ी भी दया नहीं आती मुझ पर मैं कितनी मेहनत करती हु खुद से दिखता नहीं क्या ! कमी ही निकलते रहते है ! 😓

लेकिन उनसे झगड़ा करके उन्हें परेशान करना अलग ही सुकून रहता था हालांकि ये मेरे पैंथरे होते थे उनकी एक्चुअल भावना उगलवाने के । क्योंकि झगड़े वही झेल सकता है जो दिखावा न कर रहा हो । और झगड़े से इरिटेट होने के बाद इंसान वही बोलता है जो वो नॉर्मली बोलना चाहता है पर बोल नहीं पाता । मेरे दिन बढ़िया कट रहे थे । हा सैलरी में कोई इंक्रीमेंट नहीं था पर जो भी था सब बहुत बढ़िया था खुद का खर्चा मैनेज हो जा रहा था और बाहर निकलना हो रहा था । पढ़ाई भी साथ में कर ही रही थी क्योंकि मेरे कई सब्जेक्ट क्लियर नहीं हुए थे । 

नॉर्मल सा दिन था सत्या कल से बहुत परेशान से थे आज भी खींचे खींचे से बैठे थे मैने पूछा तो कहा घर के कुछ issue है जो बता नहीं सकता । मैं जानना चाहता थी पर देखती रह गई । फिर उन्होंने कहा " काश कोई दोस्त होता तो उसे गले लगा लेता पर वो भी नहीं है । "

सखी -" हां, बहुत बड़ी प्रॉब्लम है क्या "

सत्या - " प्रॉब्लम नहीं है कुछ मिसअंडरस्टैंगिंग हो गई है सॉल्व कर लूंगा बस थोड़ी शांति की जरूरत है ।" 

सखी -" ठीक है। कुछ शेयर करने का मन हो तो बता देना ।"

सत्या - हां ( हामी में सर हिलते हुए लंबी खामोशी लेकर टेबल पर सर रख कर मुंह छिपा लिए )।

सखी - ( अभी इनका अकेला रहना ही सही है थोड़ी देर में ठीक नहीं लगेंगे तब कोच्कुंगी) 

बाकी सब अपने काम में ही लगे थे और सर आज थे नहीं । सत्या के ऊपर सब था तो वो तो खुद ठीक नहीं थे हां पर उनके गुस्से के डर से सब कंट्रोल में ही था । 

सत्या अब भी वैसे थे इसलिए मुझे लगा के अब पूछ के देखना चाहिए मैने उनको आवाज दी " सुनो...आप ठीक हो" सत्या शायद सो गए थे । मैने उनके हाथों को हिलाकर फिर से आवाज दी " सो गए क्या ..."

(सत्या झटके से जगते हुए ) कौन है ! ( अचंभे से ) तुम छुई थी।

सखी - हा आवाज दी सुने नहीं इसलिए ...sorry 

सत्या - नहीं...मुझे पता ही नहीं चला मैं कब सो गया । तुम्हे करेंट लग रहा है क्या ?

सखी - ( चौक कर ..) " नहीं ...क्यों! "

सत्या - " तुम छुई तो मुझे करेंट सा लगा "

सखी - " चौंक गए होगे करेंट कैसे लगेगा."

सत्या - " नहीं...करेंट जैसा ही लगा था "

सखी - " अच्छा होगा कुछ"

/* तब मुझे ये बात बिल्कुल बचकानी लगती थी रटे रटाए डायलॉग्स.... हीरोगिरी झाड़ने के लिए... मैं कौन सी अप्सरा हु जो करेंट लगने लगेगा । पर अब मानती हु ऐसा कोई आम इंसान हो सकता है जिसका touch आपके लिए एकदम अलग हो कोई अलग सेंसेशन पैदा होती हो उसके छूने भर से। */

सत्या इसके बाद कम बात करने लगे वो क्या परेशानी थी वो भी पता नहीं चली । बस एक बार ज्यादा टैंस होकर आए थे कहा - " तुम मेरी क्या हो?"

सखी - " फ्रेंड हु"

सत्या - "फ्रेंड नहीं हो..."

सखी -"तो..!!"

सत्या - " बहुत क्लोज फ्रेंड हो स्पेशल वाली "

साखी- " क्लोज फ्रेंड"

सत्या -" हां बहुत क्लोज"...." जब दोस्त बहुत दुखी हो तो उसे गले लगाना चाहिए तो उसका भार कम हो जाता है ।"

सखी -" अच्छा लड़का होती तो कर देती "

सत्या - " नही वैसा नहीं नॉर्मल वाला हग तो कर सकते है" 

सखी -" हा कर सकते है( हिचकिचाते हुए) "

सत्या - " मुझे एक बार हग कर दो please" 

साखी- " नहीं .!"

सत्या -" तुमने ही कहा ना ...कर सकते है फिर"

उन्होंने मुझे मेरी बातों में ही फसा दिया । और इस तरह insist किया की मैं कुछ सोच ही नहीं पाई और फिर ऐसा कुछ हुआ नहीं । हमारी हाइट डिफरेंस 1फुट की है इसलिए ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ते वक्त उन्होंने रोक के फिर से याद दिला कर कहा " तुमने कहा था न हग कर सकते है हग करो🤗" ( उन्होंने अपने हाथ फैला लिए ) और मैं शायद प्रोसेस कर पाती उससे पहले मेरे हाथ भी उठ गए । मैने उनको हग किया... मेरा सर उनके सीने पर आ कर रुक गया उनके हाथ मेरी पीठ पर थे हल्के से और मेरी दो उंगलियां बस उनकी पीठ पर । मैं ये मोमेंट प्रोसेस ही नहीं कर पाई इसके बाद उनके लिए ये रूटीन सा हो गया था कही कोई छोटी सी भी बात हो वो हग करने का रीजन बना लेते । 

2nd बार जब उन्होंने कहा तब मेरा दिमाग प्रोसेस कर पाया कि मैने कुछ गड़बड़ कर दिया है ये करने नहीं देना था लेकिन अब न बोलना से क्या मतलब । ये सिलसिला चलने लगा । यूं तो मैं भी उन्हें चुपके चुपके admire करती हु लेकिन उन्हें ये बिल्कुल पता नहीं कि मैं उन्हें कब कब और कैसे देखती हु ।

पहली बार जब उनकी गाड़ी में बैठी थी वो पल अब भी वैसा ही याद है मुझे ...पर्पल कलर की शर्ट ब्लैक टाइप का ब्लेज़र ग्रे पैंट । गांव की सुनी राहें , 8बजे शाम की ठंडक, खुला आसमान और पीछे बैठकर उनका कर्वी चौड़ा सीना और बड़ा सा सर .....ishh. क्या नज़ारा था। मुझे तब उनमें वैसा इंटरेस्ट नहीं था क्योंकि वो मुझे बहुत अलग और मतलबी लगते थे लेकिन उस पल मुझे लगा कि मैं उन्हें पकड़ कर..सर रख कर सो जाऊ। 

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