Mother India in Hindi Short Stories by Kanchan Singla books and stories PDF | भारत मां

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भारत मां

आज फिर कुछ लिखना चाहती हूं। दिल चाहता है कि लिख दूँ। जाने क्या सोते सोते एक ख्याल आया, हमारी भारत मां का ख्याल। जाने कितने वीर समा गए इसकी गोद में। हमेशा के लिए सो गए। किसके लिए हुआ ये सब अपनी इस मां के लिए, जननी के लिए, उसके आत्म- सम्मान की रक्षा के लिए। आज आजादी को इतने बरस बीत गए, पर हम कहा है और क्या कर रहे है, जहां से देखती हूं भारत मां छलनी दिखाई देती हैं। तिरंगा लिपटा हुआ उसके बदन पर तार तार होने लगा है। पर ये हुआ कैसे सोचा किसी ने, नहीं सोचा ना.......

चलो एक किस्सा सुनाती हूं आज एक औरत से मिली बहुत दुखी थी शायद। जाने क्यों मुझे ही दिखी वो। एक पुतला था उसके पास थोड़ी थोड़ी देर में एक कील उठाती और उस पुतले में ठोक देती। पुतला कुछ कुछ हमारी भारत मां से मिलता था, वही तिरंगा लिपटाए हुए। मुझसे नहीं रहा गया , मैंने पूछा क्या कर रही है ये आप। वो औरत बिना कुछ बोले कील ठीक देती और हर बार रोती। मैंने फिर पूछा ये क्या कर रही है आप। कई बार पूछने पर बोली ये कील देख रही हो, जो वक्षस्थल पर लगाई है मैंने, आज फिर किसी का बलात्कार हुआ बड़ी निर्ममता से उसे मार दिया गया। जो भी ये कीले लगी हैं ना इसके कोमल अंगों पर ऊपर से लेकर नीचे तक ये सब उन बलात्कारों की कहानी है। और जो ये हाथों पर कीले लगी है ना दहेज के लिए जलायी गई मेरी उस बेटी की कहानी है, जिसे उसके पति और ससुराल वालों ने निर्ममता से मार दिया।

ये हर कील उस औरत की कहानी है जिसके ऊपर मेरे बेटों ने अत्याचार लिए है। मैं कहा से लाऊँ वो बेटे जो मेरी इज्जत बचा सके, मुझे तार तार होने से बचा सके। और जो ये कीले सीने में लगी हुई है, वो मेरे उन रक्षक बेटों की कहानी है जो सीमा पर लड़ते लड़ते शहीद हो जाते है मेरी रक्षा में। शायद मेरे अच्छे बेटे मेरी सीमा की रक्षा कर रहे है, बाकी मुझे छलनी कर रहे है, तोड़ रहे है मुझे, काट रहे है छोटे छोटे टुकड़ों में। और जो ये कील पैरो पर लगी है, वो घुटते हुए लोकतंत्र, देशद्रोह, और हर उस अपराध को बयां करती है जिसने मुझे लंगड़ा कर दिया है। मैं अब चल भी नहीं पाती।

वो औरत फिर से एक कील उठाती है और बोलती है देखो अब तो जगह भी नहीं बची कहा लगाऊं इसे , आज फिर एक छोटी मासूम बच्ची का बलात्कार करके मार दिया उसे। मेरे बेटे तो ऐसे नहीं थे, पूजते थे इन्हें। क्या हो गया है मेरे बेटों को, मेरा खून सफेद कब हो गया, मुझे समझ नहीं आ रहा। इतना बोलकर वो औरत फिर रोने लगती है और कील ठोकने लगती है।

मेरा कलेजा कांप उठा है, दिल रोने और चिल्लाने का करता है, पर आवाज़ बाहर नहीं आती। मेरी आत्मा रोने लगती है, उसकी ये दुर्दशा देखकर। इतनी ग्लानि होती है कि मैं अब आगे लिख ही नहीं पाती।

हम अपनी मां को ऐसे चोटिल कर रहे है, भूल गए है सारी मर्यादाएं। सब भूल गए है। जिन्हें याद था, वो शहीद हो गए उसको बचाने में। बस अब और नहीं लिख पाऊंगी मैं उसकी ये दुर्दशा, मुझसे नहीं होगा। लिखते लिखते अब मेरे हाथ भी कांप रहे है, मेरा दिल भी रोने लगा है और आखिर में अब कलम भी छूट गई हाथों से।

समाप्त!!!

जय भारत मां।।