Chandrvanshi - 8 - 8.1 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.1

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चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.1

धूमधाम से निकले राजकुमार की बारात में शामिल लोगों के साथ गाँव के दूसरे लोग भी जुड़ गए। यह देखकर सुर्यांश ने उन्हें रोका और बोला, “तुम कौन हो और हमारे साथ क्यों आना चाहते हो?”
उसकी बात सुनकर एक घोड़े पर सवार व्यक्ति आगे आया और बोला, “मैं भोलो महाराज।”
“कौन, वो जो युद्ध से भाग निकला था वही भोलो?” सुर्यांश बोला।
भोलो सिर झुकाकर खड़ा रहा। उसके साथ आए लोगों में बातें उड़ने लगीं, “वो तो कहता था घायल हुआ था। आज सच्चाई पता चली कि वो तो भाग निकला था।” लोग बातें करते और हँसते।
सुर्यांश फिर बोला, “अब तुझे क्या काम है यहाँ?”
“दरअसल मेरी माँ को पता चला कि आज राजकुमार के विवाह की बारात निकल रही है, तो उन्होंने सुबह ही मुहूर्त देखकर मेरे काका के बेटे को एक घोड़ा लेकर मांडव्य भेजा और मुझे तैयार कर कुछ लोगों के साथ आपकी बारात में शामिल होने भेजा।”
“तो तेरी भी शादी होगी क्या?”
सुर्यांश की बात सुनकर भोलो के साथ आए कुछ लोग हँस पड़े और बोले, “हम भी यही देखने आए हैं कि अपने राज्य में तो किसी ने नहीं माना, अब ये पड़ोसी राज्य वाली ने कैसे हाँ कर दी।”
उनकी बात सुनकर सुर्यांश भी हँसने लगा। यह सब देखकर वर्षों से अपमान सहते आए भोलो ने थोड़ा और अपमान गले उतारा। वो तो खुश था। आज कई वर्षों बाद उसे कहीं मेल मिला था। गाँव के लोग कुछ भी कहें, लेकिन अब जब बारात आँगन तक पहुँची हो तो उसे कौन वापस लौटाएगा। ऐसा सोचकर खुशी से भर गया भोलो, आज वो सबकी बातें सुनकर भी हर्षित था।
“राजकुमारीजी, मेरे भाई का विवाह भी उसी राज्य में हुआ है। आप कहें तो उन्हें भी हमारे साथ चलने दीजिए,” पा़रो बोली।
“यह तो ठीक है, लेकिन तेरे भाई को हमारे साथ आना है, यह बात पहले क्यों नहीं की?” संध्या बोली।
“इस बात की जानकारी तो मुझे भी नहीं थी। दरअसल मेरी माँ ने ही सब तय किया होगा, वरना मैं क्यों सुबह-सुबह आपके साथ होती?” पा़रो बोली।
फिर राजकुमारी ने एक सिपाही के साथ संदेश भिजवाया और सुर्यांश ने उन्हें साथ आने की अनुमति दे दी। सब खुश थे। भोलो के दोस्त उसकी मज़ाक उड़ाते चल रहे थे, “वाह भोलो! तेरी बारात भले देर से गई पर गई तो खूब ठाट-बाट से। हमारे नगर में ऐसी शाही बारात तो नगर के सेठों की भी नहीं गई होगी।”
उनके साथ रात रुकने का सामान भी था और उन्हें किसी भी गाँव में रोकने वाला भी कोई नहीं था। सुर्यांश ने अपने एक सिपाही को आगे गाँव में भेजकर वहाँ के मुखिया से बात कर उनकी ठहरने की व्यवस्था करवाई। इस तरह वे भोलो के ससुराल बाराती बनकर पहुँचे। विधिपूर्वक उनका आदर-सत्कार हुआ। राजकुमारी के उदार स्वभाव से लोग बहुत प्रभावित हुए।
अब समय आया भोलो के विवाह मंडप में बैठने का। वह आकर बैठा। उसके सिर पर साफा और मुँह को ढँकने के लिए फूलों की सजावट से चेहरा ढँक दिया गया। थोड़ी देर में वधू को बुलाया गया तो उसके भाई विधिपूर्वक उसे लेकर आए। विधि पूरी कर अब फेरे लेने का समय आया। धीरे-धीरे चल रहा भोलो आज व्याकुल हो उठा था। उसके मन में खुशी की सीमा नहीं थी। अब वधू के आगे आने का समय आया। आगे चल रही वधू का पैर एक फूल की पाँखड़ी पर पड़ा और उसकी चिकनाई से उसका पैर फिसल गया। जैसे ही वधू फिसली, उसका हाथ भोलो के साफे पर पड़ा और उसका चेहरा उघड़ गया। नीचे गिरी वधू अब ज़मीन से टकराई।
कुछ ही देर में कई लोग उनके चारों ओर इकट्ठा हो गए। कुरूप भोलो सबसे अपना चेहरा छुपाने लगा। उसने ज़मीन पर गिरी वधू की ओर देखा, वह वधू दूध जैसी गोरी और रूई जैसी कोमल लगी। एकदम फुर्ती से उठी वधू भोलो को देखकर डर गई और चीखती हुई वहाँ से भाग निकली। मंडप में मौजूद कई लोग यह तय नहीं कर पा रहे थे कि उस लड़की की इज़्ज़त के लिए उसे वापस लाया जाए या नहीं।
उसी समय भोलो का एक दोस्त बोला, “भोलो के भाग्य में जो थी वो भी गई। अब तो तू भलो और भैंह भली।” और हँसने लगा। उसके साथ बाकी सब भी हँसने लगे। राजकुमारी संध्या भी यह सब देखकर हँस पड़ी। भोलो की नज़र एकदम ऊँचे स्थान पर बैठी राजकुमारी पर पड़ी। वह चिढ़कर मंडप छोड़ वहाँ से भाग निकला। इस सबमें पा़रो सबसे ज़्यादा दुखी थी। लेकिन उसके भाई की सच्चाई बदलने वाली नहीं थी। उसके बाद सब वाणी के गाँव की ओर रवाना हुए। कुछ दोस्त भोलो की तलाश में निकले।

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