Chandrvanshi - 7 in Hindi Detective stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 7

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चंद्रवंशी - अध्याय 7

माही अपने कमरे में बैठी है। उसके पास सायना आई है। माही के घर में अलग सन्नाटा है। सायना जीद के साथ कंप्यूटर पर काम करती थी। यह बात माही को पता थी। जीद ने माही को सायना और नयन की बात भी बताई थी। सायना के हाथ में एक चिट्ठी थी। माही अब बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, “तो सायना, तुम्हारा कहने का मतलब है कि तुम्हारे प्रेमी नयन को स्नेहा केस की जानकारी थी। जिससे, उसे तुम्हें छोड़कर गुजरात जाना पड़ा?”  
सायना ने सिर हाँ में हिलाया।  
“मतलब कि जीद को हमारी कंपनी में लाना ये एक सोची-समझी चाल थी?”  
सायना ने फिर से सिर हिलाया, “हाँ।”  
“और आज हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, उसकी जिम्मेदार मैं हूँ?” माही की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी।  
सायना एकदम से झिझकते हुए बोली, “नहीं माही, इसके लिए खुद को दोषी मत मानो। तुम्हें इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी।”  
“लेकिन जो हुआ, वो तो मेरी वजह से ही हुआ न...!”  
तभी विनय और रोम भी वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने ये सारी बात सुन ली। इसलिए विनय बोला, “जो हुआ उसे सुधारने का मौका अब भी है।”  
अचानक आए विनय और रोम को देखकर माही चौंक गई। फिर एक लंबी साँस छोड़कर बोली, “मौका?”  
“अभी जीद ज़िंदा है और उसे कुछ नहीं होगा।” रोम बोला।  
विनय ने सायना की तरफ देखा और उसके हाथ में चिट्ठी देख कर बोला, “तुम्हारे हाथ में क्या है?”  
“इसमें स्नेहा केस का सबूत है।” माही बोली।  
सायना ने वह चिट्ठी विनय के हाथ में रख दी।  
“प्रिय सायना, मैं नयन। शायद तुम्हें ठेस पहुँचाने में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, ये सब अचानक हुआ। जब मैं गुजरात जाने निकला, तब रात के समय दो-तीन आदमी एक कार लेकर एकदम से एक छोटी गली में मुड़ गए। उस कार में एक पुरुष, स्त्री और बच्चा था। जिनके मुँह बाँध दिए गए थे। मैं ये सब गली के कोने से देख रहा था। जिसमें सबसे पहले मुँह बाँधे एक केसरी टीशर्ट वाला युवक उस पुरुष को गाड़ी से बाहर निकाल कर गले में चाकू मार कर वहीं एक बोरे में भर कर एम्बुलेंस में डाल देता है। फिर दो अन्य आदमी उस स्त्री को गाड़ी से बाहर निकालते हैं और उसके मुँह से पट्टी हटाते हैं।”  
विनय ने चिट्ठी का पन्ना पलटा।  
“उस स्त्री ने दोनों हाथ जोड़कर रोते हुए कहा, मेरी बेटी को छोड़ दो। उसका कोई कसूर नहीं है।  
इस पर केसरी टीशर्ट वाला बोला, कसूर तुम्हारे पति का भी नहीं था। कसूर सिर्फ तुम्हारा ही है। भुगतेगा हर कोई।  
उसे ऐसा लगा कि तुम पुलिस से मिलकर इस बात का खुलासा करोगी। अब तुम्हारे परिवार को कौन बचाएगा ये मैं भी देखूंगा।  
पीछे से एक आदमी आया। उसके हाथ में छोटी बच्ची थी। उसने उस छोटी बच्ची की गर्दन पर हाथ फेरा और वह रोती बच्ची एकदम से शांत हो गई। मुझे अंधेरे में सब कुछ साफ नहीं दिखा लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी गर्दन से खून की धार बहने लगी और यह देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं, मेरी चीख कब निकल गई मुझे खुद ही पता नहीं चला। उन लोगों ने मुझे देख लिया इसलिए मैं वहां से भाग निकला।  
मैं समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच सका और यहीं कोलकाता में फंस गया।  
विनय ने चिट्ठी का एक पन्ना नीचे रखा और दूसरा पढ़ने लगा।  
“कुछ दिनों बाद मैंने उस स्त्री की फोटो अखबार में देखी। जिसमें उसका नाम स्नेहा लिखा था। इतना समय छुपे रहने के बावजूद उन्होंने मुझे खोज निकाला और सिर पर बंदूक रखकर मुझे मारने ही वाले थे कि, दो अधिकारी वहाँ पहुँच गए जिनके डर से उन्होंने मुझे गोली नहीं मारी। जाते-जाते मुझे कहते गए, यहाँ से निकल जा और फिर कभी वापस मत आना। अगर फिर यहाँ किसी के साथ देखा तो उसे भी मार दिया जाएगा। इसलिए मुझे मजबूरी में तुमसे झूठ बोलना पड़ा। ताकि, वे लोग तुम्हें नुकसान न पहुँचा सकें। अगर मुझे माफ कर सको तो मुझे फिर चिट्ठी भेजना। तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा ही नयन।”  
गर्दन खुजलाते हुए रोम चिट्ठी की आखिरी लाइन पढ़ता है, “तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा ही नयन। ओह... प्रेमी पंछी।”  
विनय ने पहले रोम की तरफ देखा फिर माही से कहा, “माही, तुम और सायना रोम के साथ अपनी ऑफिस जाकर स्नेहा के कंप्यूटर को चेक करो।”  
“विनय, तू कहाँ जा रहा है?” रोम बोला।  
“मैं वहाँ जा रहा हूँ जहाँ से इस आदम की कहानी शुरू हुई।”  
माही बोली, “मतलब!”  
“चंद्रमंदिर।” विनय बोला।  
विनय की बात सुनकर रोम ने उसे याद दिलाया कि जीद की किताब गाड़ी में रखी है।  

***