📜 अब आगे क्या?
अगला भाग होगा:
Part 13 – “त्रैत्य की पहली चाल”
जहाँ त्रैत्य अब युद्ध की जगह एक नई योजना शुरू करता है —
एक ऐसा धोखा… जो अर्णव को तोड़ सकता है।
🌑 Super Hero Series – Part 13: त्रैत्य की पहली चाल
🕳️ प्रारंभ – अंधकार की योजना
त्रैत्य एक गहरे तांत्रिक कुण्ड के सामने बैठा था। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन मन भीतर ही भीतर एक भीषण चक्रव्यूह रच रहा था।
"शक्ति से कोई नायक नहीं बनता...
नायक को तोड़ो, और फिर देखो…
वो भी खलनायक बनेगा…"
उसने अपने दसों मुखों से एक-एक मंत्र पढ़े।
फिर तीन छायाएँ प्रकट हुईं — तीन ऐसे पात्र जो अर्णव के अतीत से जुड़े थे, लेकिन अब त्रैत्य की कठपुतलियाँ बन चुके थे।
🔮 तीन छायाएँ — त्रैत्य का पहला ‘धोखा’
भास्कर – अर्णव का बचपन का मित्र, जिसे सब मरा मानते थे।
अब त्रैत्य की माया से ज़िंदा किया गया… पर बिना आत्मा के।
नैना – अर्णव की पहली स्मृति… एक बालिका, जिसने उसे बचपन में सुरक्षा दी थी।
त्रैत्य ने उसकी छवि को मोड़ दिया है।
सुधा माई – वही वृद्ध स्त्री जिसने त्रिशक्ति-मंत्र दिया था, अब त्रैत्य की यंत्रणा में फँसी है।
इन तीनों को भेजा गया — अर्णव के विश्वास को हिलाने, उसे भ्रमित करने और अंततः अपनी आत्मा को ही संदिग्ध बनाने।
🧬 नायक की पहली परीक्षा
अर्णव अब हिमगुफा में एक पुरातन ‘ऋषि-मंत्र शिला’ तक पहुँचा है, जहाँ उसे शिव-मंत्र की अगली विद्या सीखनी है।
पर तभी वहाँ भास्कर आ जाता है।
“अर्णव… भाई! क्या तू मुझे भूल गया? मैं तेरा वही दोस्त हूँ… जिसे तूने अकेला छोड़ दिया था…”
अर्णव ठिठकता है।
“भास्कर? तू... तू तो मर गया था… मैंने तेरी चिता भी देखी थी!”
भास्कर मुस्कराता है — लेकिन उसकी आँखों में आत्मा नहीं… बस ठंडी राख है।
“तू अब अलग है, अर्णव… तू अब इंसान नहीं रहा… तू अब रक्त की संतान है।”
अर्णव उसे गले लगाना चाहता है… लेकिन तभी भास्कर की आँखों से त्रैत्य का चिन्ह उभर आता है — तीन उल्टी लपटें।
अर्णव समझ जाता है — ये कोई माया है।
💔 नैना की वापसी – एक भावनात्मक आघात
दूसरी ओर अर्णव को एक सपना आता है…
जिसमें नैना उसी स्वर में बोलती है:
“तू मेरा था… पर अब तू बदल गया है…”
“अब तेरी आँखों में मासूमियत नहीं, वो ही आग है जो तेरे पिता की है…”
अर्णव नींद से जागता है। पसीना-पसीना।
“क्या मैं सच में राक्षस बन रहा हूँ?”
उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है।
🕸️ त्रैत्य की योजना का दूसरा चरण – सुधा माई का अपहरण
अर्णव जब अगला प्रशिक्षण शुरू करने ही वाला होता है, उसे एक संदेश मिलता है।
“त्रैत्य ने सुधा माई को उठा लिया है।”
अब उसके सामने चुनाव है:
या तो वो शक्तियों की साधना पूरी करे…
या फिर सुधा माई को बचाने जाए — लेकिन बिना किसी सिद्धि के।
⚔️ युद्ध का असली चेहरा
अर्णव सोचता है:
"अगर मैं अपनी लोगों की रक्षा नहीं कर सका… तो क्या मैं कोई नायक कहला सकता हूँ?"
वो मंत्रशाला छोड़ता है और सुधा माई की खोज में निकल पड़ता है।
🌌 भाग्य का संदेश
जब अर्णव एक उजाड़ पर्वत पर पहुँचता है, वहाँ हवा रुक जाती है, समय थम जाता है।
और आकाश से एक तेज़ रोशनी गिरती है —
वो आग नहीं, न कोई देवता…
बल्कि एक चिट्ठी।
उसमें सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी:
“जब तुझमें अपने पिता को क्षमा करने की ताकत होगी, तब तू मुझे जीत पाएगा।”
अर्णव की आँखें भर आईं।
“मुझे त्रैत्य को हराना नहीं…
मुझे उस नफ़रत को हराना है, जिससे वो जन्मा है…”
🔚 अंत या नई शुरुआत?
कहानी यहाँ नहीं रुकती।
अभी सुधा माई जीवित है या नहीं, ये भी पता नहीं…
भास्कर की आत्मा त्रैत्य के वश में क्यों है, और नैना की छवि कहाँ तक असली है…
और सबसे बड़ा सवाल:
क्या अर्णव के भीतर का राक्षस कभी उसके नायक को हराएगा?
🔜 आगे क्या?
Next Part — “अग्नि द्वार का रहस्य”
जहाँ अर्णव एक ऐसे प्राचीन द्वार के पास पहुँचता है जो उसे त्रैत्य की आत्मा के अतीत में ले जाएगा