Kurbaan Hua - Chapter 40 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 40

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Kurbaan Hua - Chapter 40

"सब इन तीनों तितलियों की वजह से हुआ है!" उसने तेज़ आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा। "इन्हीं के संग घूमती थी मेरी संजना, और अब देखो न जाने कहाँ चली गई।"

मिताली, अवनी और लवली डर से एक-दूसरे की तरफ देखने लगीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें।

तभी भीड़ में से एक मज़बूत आवाज़ आई, "आप यह ड्रामा बंद कीजिए, संध्या बहू!"

संध्या ने गुस्से में मुड़कर देखा। यह आवाज़ सुषमा मासी की थी, जो संजना की पुरानी नौकरानी थी, लेकिन कपूर परिवार में सभी उन्हें परिवार के सदस्य की तरह मानते थे।

"तुम्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, मासी!" संध्या ने नाक चढ़ाकर कहा। "तुम नौकरानी हो, अपनी हद में रहो!"

सुषमा मासी ने ठंडी, मगर सख्त नज़रों से उसे देखा। "मैं नौकरानी हूँ, लेकिन इंसान भी हूँ, और इस घर की हर धड़कन को समझती हूँ। और तुमसे ज्यादा तो मैं ही संजना को जानती हूँ।"

"ओह! तो अब तुम मुझे बताएगी कि मेरी संजना कैसी थी?" संध्या ने ताने मारते हुए कहा। "तुम होती कौन हो?"

"मैं वही हूँ जिसने संजना को तुम्हारे नकली प्यार और दिखावे की दुनिया से बचाने की कोशिश की थी!" सुषमा मासी का स्वर अब और भी सख्त हो गया था।

"क्या बकवास कर रही हो?" संध्या का चेहरा लाल हो गया।

"बकवास?" सुषमा मासी ने व्यंग्य से हंसते हुए कहा। "असली बकवास तो तुम कर रही हो, रो-धोकर सबको बेवकूफ बना रही हो। सच तो ये है कि तुम्हें संजना की कोई परवाह नहीं थी। जब वह घर में थी, तब तो कभी तुम्हें उसकी चिंता नहीं हुई, और अब जब वह नहीं है, तो अचानक तुम्हें उस पर प्यार आ गया?"

संध्या गुस्से से कांपने लगी। "तुम ये सब कहने वाली कौन होती हो? मैंने हमेशा इस घर के बच्चों को अपने बच्चों की तरह समझा है!"

सुषमा मासी ने ठहाका मारा। "हाँ, हाँ, देखा था मैंने तुम्हारा प्यार! जब संजना को पढ़ाई के लिए देर तक जागना होता था, तो तुम कहती थी कि ‘रात-रात भर जागकर ये बहाने बना रही है’। जब वो दोस्तों के साथ समय बिताती थी, तो तुम कहती थी कि ‘बिगड़ रही है’। और जब उसे अपने सपने पूरे करने थे, तब तुमने कहा था कि ‘लड़कियों को इतना उड़ने की जरूरत नहीं है’!"

संध्या के चेहरे पर घबराहट थी, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "बस बहुत हो गया! तुम नौकरानी हो, तुम्हारी औकात नहीं है मुझसे इस तरह बात करने की!"

सुषमा मासी की आँखों में आग थी। "औकात की बात मत करो, संध्या बहू! औकात तो तुम्हारी भी सब जानते हैं। जब जरूरत पड़ी थी, तब तुमने संजना को एक पल भी प्यार से नहीं देखा, और अब दिखावा कर रही हो?"

संध्या ने क्रोध में कांपते हुए कहा, "देखो मासी, अब तुम हद पार कर रही हो!"

"मैं हद पार नहीं कर रही," सुषमा मासी ने जवाब दिया। "मैं सिर्फ सच कह रही हूँ। और सच यह है कि अगर संजना आज यहाँ नहीं है, तो उसके लिए तुम भी जिम्मेदार हो!"

पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। सबकी नज़रें संध्या पर टिकी थीं, जिसका चेहरा अब सफेद पड़ चुका था।

तभी महेश कपूर ने धीरे से कहा, "बस करो, संध्या। जो सच है, उसे झुठलाने की कोशिश मत करो।"

संध्या कुछ और कहने ही वाली थी कि दमनी—धनुष की पत्नी—ने उसे चुप करा दिया।

सुषमा मासी ने एक गहरी सांस ली और बोली, "संजना जहाँ भी होगी, सही-सलामत होगी। लेकिन इस घर में जो नाटक चल रहा है, वो अब बंद होना चाहिए।"

और इतना कहकर वह वहाँ से चली गई, लेकिन हॉल में मौजूद हर कोई यह जान चुका था कि सुषमा मासी ने जो कहा, वह पूरी तरह सच था।

बाकि सब भी अपने अपने कमरे में चले गए , तीनों सहेलियों भी अपने कमरे में जाकर  रहे सोचने लगी थी कि संध्या चाची कि बात सही तो नहीं थी कही उनकी वजह तो संजना किडनैप नहीं हुई है |