Ishq aur Ashq - 45 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 45

Featured Books
Categories
Share

इश्क और अश्क - 45



बाबा: और तुम मुझे देख सकती हो... उसका मतलब तुम भी कोई साधारण कन्या नहीं हो!

प्रणाली: देख सकती हो का क्या मतलब है??????

वो वृद्ध हल्का सा मुस्कुराया और बोला: कुछ नहीं।

प्रणाली: आप एक गरुड़ होकर धरती पर कैसे और क्यों हैं?

वृद्ध: तुम्हें गरुड़ों में इतनी दिलचस्पी क्यों है?

प्रणाली: क्योंकि मैं एक ब्रह्मवर्धानी हूं...

वृद्ध: ओ... तो तुम हो वो...?

प्रणाली: वो कौन...? बाबा, आप मुझे जानते हैं? आप कौन हैं?

वृद्ध: मैं वो शापित गरुड़ हूं, जो इकलौता गवाह बचा है ३०० साल पहले हुई उस घटना का... जिसकी वजह से ये सब शुरू हुआ!

प्रणाली: कौन सी घटना, बाबा? बताइए... ये मेरे लिए बहुत ज़रूरी है।

वृद्ध: ये बात उस दौर की है जब तुम्हारे खानदान के लोग ब्रह्मवंशी कहलाते थे।
तब गरुड़ों और ब्रह्मवंशियों के संबंध बहुत घनिष्ठ हुआ करते थे।
तब तुम्हारे कुल की एक दिव्य कन्या ने कठोर तप करके अपने आराध्य ब्रह्मा को प्रसन्न कर, अपने कुल की हर स्त्री के लिए स्वर्ण पंख और स्वर्ग के रास्ते का वरदान मांग लिया। और वो बन गईं ब्रह्मवर्धानी।

इससे गरुड़ और ब्रह्मवंशी दोनों ही बहुत खुश थे।
किंतु स्वर्ग लोक, विष्णु लोक, कैलाश—हर जगह ये बात होने लगी कि ये ठीक नहीं है। इससे भविष्य में उन पर खतरा आ सकता है, और इतनी शक्ति कोई धरतीवासी संभाल भी नहीं सकता!

पर सवाल ये थे कि ब्रह्मा जी अपना दिया हुआ वरदान वापस नहीं ले सकते थे।
ये तभी मुमकिन था जब उस कुल की कोई स्त्री स्वयं अपनी शक्तियां त्याग दे।

और इस काम के लिए ब्रह्मा जी ने चुना गरुड़ों को।
ब्रह्मा जी ने गरुड़ों को आदेश दिया कि वो उनसे शक्तियां वापस लें, वरना स्वर्ग लोक के देवता उनके कुल का सर्वनाश कर देंगे।

कुछ पीढ़ियों बाद गरुड़ लोक के राजा ने ब्रह्मवर्धानी कन्या से प्रेम का छलावा करके उसे गरुड़ लोक ले गए, और उससे अपनी शक्तियों का त्याग करने को कहा गया।
उस ब्रह्मवंशी राजकुमारी ने प्रेम में बंधकर अपनी शक्तियों को त्याग दिया।

जब राजकुमारी और ब्रह्मवंशियों को उनके मंसूबे का पता चला, तो दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई।
दोनों वंश एक-दूसरे के खिलाफ हो गए।

इस युद्ध में बीजापुर की हार हुई, तथा गरुड़ और ब्रह्मवंशियों की दुश्मनी का आग़ाज़ हुआ।

मैं उस वक़्त के गरुड़ लोक के राजा का भाई था... मैंने इस युद्ध में ब्रह्मवर्धानियों का साथ दिया।
इसलिए मुझ पर वंशद्रोह का इल्ज़ाम लगा और गरुड़ लोक ने मुझे त्याग दिया।

एक गरुड़ होने के नाते कोई ब्रह्मवंशी मुझ पर भरोसा नहीं कर सका।
परिणामस्वरूप मैं शापित हो गया। मुझे श्राप मिला कि मेरा न कोई जीवन होगा, ना ही कोई मृत्यु।
ना मैं किसी को दिखूंगा, ना ही किसी भी चीज़ को छू पाऊंगा।

और इसलिए मैं यहां हूं... तब से अभी तक।

प्रणाली की आंखें खुली की खुली रह गईं...

प्रणाली: तो ये है इस दुश्मनी की वजह???

वृद्ध: और तुम इस दुश्मनी को हवा दोगी! क्योंकि गरुड़ तुम्हें छोड़ेंगे नहीं, और ब्रह्मवंशी तुम्हें बचा कर रहेंगे।

प्रणाली: बाबा, क्या इसका कोई अंत नहीं है???

बाबा: वो तो ब्रह्मा जी ही जानें।

प्रणाली को एकाएक अपने गरुड़ लोक जाने के तरीके का पता लगाने की उम्मीद दिखी।

वो अपने लहजे को नर्म करते हुए बोली: क्या कोई इंसान गरुड़ लोक जा सकता है?

बाबा: नहीं... आज तक इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।

प्रणाली: तो क्या एक ब्रह्मवर्धानी भी नहीं?

बाबा ने शक भरी नज़रों से उसे देखा:

बाबा: तुम्हें गरुड़ लोक क्यों जाना है?

प्रणाली: बाबा, यकीन मानें, मेरा कोई गलत इरादा नहीं है।
मेरा भाई गरुड़ लोक के विष से मृत्यु की चौखट पर खड़ा है। उसके लिए मुझे गरुड़ पुष्प लाना है।

बाबा ने सहसा प्रणाली को देखा:
बाबा: क्या... गरुड़ों ने ब्रह्मवंशियों पर हमला किया? क्या ऐसा भी संभव है? किन्तु ऐसा सम्भव नहीं...

प्रणाली: कैसा बाबा... आप मुझे रास्ता बताएंगे न?

बाबा:  गरुड़  कभी सीधा बीजापुर पर हमला नहीं करेंगे ,
प्रणाली: किन्तु ऐसा हुआ है, उस तलवार पर गरुड़ विष था।।।।

बाबा:अगर गरुड़ अपने मकसद के लिए सारे नियम-कानून तोड़ सकते हैं... तो मैं बताऊंगा।

बाबा आगे बोलते हैं: गरुड़ और ब्रह्मवंशी भले ही एक-दूसरे के दुश्मन हों, पर एक चीज़ है जो उन्हें साथ जोड़े रखती है — और वो है ब्रह्म देव!
दोनों के ही आराध्य हैं ब्रह्मा जी।

तुम्हारी राज्य सीमा पर एक मंदिर है, जिसमें सदियों पहले गरुड़ और ब्रह्मवंशी साथ में पूजा करते थे।
उसे उस हादसे के बाद बंद कर दिया गया।
उसी मंदिर के तालाब से होकर ही गरुड़ पहले धरती पर आते थे।
उसी तालाब से गरुड़ लोक का रास्ता खुलेगा।
पर हर कोई वहां नहीं जा सकता।

वो रास्ता सीधा गरुड़ महल के पीछे खुलता है।
तुम्हें महल के अंदर जाकर किसी गरुड़ का पंख लेना होगा, तभी तुम गरुड़ उपवन में जा सकोगी, वरना पकड़ी जाओगी।

प्रणाली: शुक्रिया बाबा... आप मुझे यहीं मिलिएगा! (कहकर वो भाग गई)


---

दूसरी तरफ:
गरुड़ लोक में...

वैद्य: गरुड़, मैं ये कहना तो नहीं चाहता था किंतु मुझे लगता है, राजकुमार के लिए हमें गरुड़ पुष्प ले आना चाहिए।

गरुड़ शोभित भड़क गए: तुम पागल हो क्या? तुम्हें पता भी है गरुड़ पुष्प का इस्तेमाल सिर्फ गरुड़ विश से मरते हुए के लिए किया जाता है!
तुम्हारे अनुसार हमारा बेटा मर गया है क्या?

वैद्य: महाराज, मैंने हर तरीके का इलाज कर लिया, किंतु कुछ असर नहीं किया।

कोई कुछ न बोल सका।

गरुड़ शोभित: ठीक है, आज रात सेवकों से कह कर उसे मंगवा लीजिए।


---

दूसरी तरफ:
प्रणाली तालाब के सहारे गरुड़ लोक पहुंची।
(चूंकि वो एक गरुड़ वर्धानी थी और इस पीढ़ी की परी भी, तो उसके लिए वहां पहुंचना ज्यादा मुश्किल न था।)

प्रणाली सब से बचकर महल में दाखिल होने की कोशिश करती है, पर ये क्या...
यहां तो हर दरवाज़े से पहले अपनी हाथों की छाप लगानी है।


---