Beete samay ki REKHA - 16 - Last part in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बीते समय की रेखा - 16 (अंतिम भाग)

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बीते समय की रेखा - 16 (अंतिम भाग)

17. (अंतिम भाग )
पाठको, इस लंबी कहानी के बीच हम आपको एक छोटा सा सिनेमा भी दिखाना चाहेंगे। ये कुल पौने तीन घंटे की एक डॉक्यूमेंट्री है जिसमें कोई पात्र नहीं है। 
बिजली भी गुल है, लिहाज़ा सर्वत्र अंधेरा है।
कहीं कोई शोर आपकी तन्मयता में व्यवधान नहीं डालेगा क्योंकि चारों ओर नीरव सन्नाटा है। सारा जहां सोया हुआ है।
यदि कहीं कोई पशु - पक्षी की बेचैनी की आहट भी होगी तो यह परिसर से बाहर की बात होगी क्योंकि परिसर में तो कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
कड़ा पहरा है।
अलबत्ता हमारी यह फ़िल्म शुरू होती है एक सपने से।
ये सिनेमा एक काल्पनिक सपना है जो रात को ढाई बजे सोने के बाद संभवतः रेखा ने नींद में ही देखा होगा...
कहते हैं कि सपने में इंसान ख़ुद को कभी नहीं देखता, इसलिए सूर्योदय की लालिमा ही आकाश में बिखरी है। बादलों में हल्की सी हलचल है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि भोर का कोई तारा टूट कर शायद ज़मीन पर आ गया है।
दरिया, वन, मैदान, पहाड़, बस्ती , गांव, नगर, महानगर की विराट हलचलों में समय कब बीत गया, आभास ही नहीं हुआ।
संकेत बताते हैं कि इस सितारे ने दुनियावी वादियों में लगभग आधी सदी बिताई है। 
अब ये अपने आकाश में लौटने के लिए कसमसा रहा है।
इशारों ही इशारों में इसने अपनी छोटी सी कहानी भी सुनाई है। इसकी कहानी में सपने भी हैं और सपनों की ताबीर भी। सपने पूरे होते देखना किसे नहीं सुहाता?
इसने जैसे चाहा वैसे जीवन जिया, ये बात और है कि हर जलधार आपकी प्यास के अनुकूल हो ये ज़रूरी तो नहीं।
इसने अपनी संतति को भी वही आशीर्वाद दिया जो दुनिया में रहने के लिए ज़रूरी समझा। सकारात्मक, काबिलियत और सलाहियत से सराबोर...
इसने जहां हाथ रखा, वहीं हरियाली खिल गई। जिसे छुआ सोना हो गया!
जीवन बस यही तो है। 
लोग अगर एक सराय को अपना जनम- जनम का आशियाना समझ लें तो इसमें भला सराय अर्थात दुनिया का क्या दोष?
इसे सादर नमन! 
दी एंड!!!
सुबह लगभग साढ़े आठ बजे रेखा ने फ़ोन पर अपने पति से बात की। बेहद उत्साह के साथ उसने बताया कि थोड़ी देर में पूजा के बाद सत्र के उदघाटन का समारोह शुरू हो जाएगा। शाम को सभी अभिभावकों और मेहमानों के साथ विद्यार्थियों का डिनर रखा गया है। आप भी समय से आ जाना। उसके बाद घर चलेंगे!
रेखा तैयार होकर नीचे प्रशासनिक भवन में चली गई जिसके सामने वाले कॉरिडोर में हवन पूजा का कार्यक्रम रखा गया था। 
विधिवत मंत्रोच्चार के साथ हवन शुरू हुआ और बेहद शांति पूर्ण माहौल में संपन्न हुआ। पूरे परिसर में पावन पवित्रता का धुआं फैल गया। हर मस्तक पर तिलक सुशोभित होने लगा।
पूजा के तत्काल बाद सभी लोग उस सभागार में आ गए जो प्रशासनिक भवन के सामने वाली चार मंजिला इमारत के प्रथम तल पर बना हुआ था। यहीं कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
दीप प्रज्वलन के साथ औपचारिक भाषणों का दौर और फ़िर रेखा भी माइक पर आई। 
राज्य की विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम के माध्यम से गठित नवनिर्मित महिला विश्वविद्यालय की पहली वाइस चांसलर के रूप में रेखा ने अपना भाषण आरम्भ किया।
अभी चंद मिनट ही हुए हैं कि अपनी बात कहते - कहते रेखा को हल्की सी खांसी उठी।
वीडियो बना रहे और फ़ोटो ले रहे फोटोग्राफर्स कुछ विचलित होकर रुके और तत्काल बाद ही खांसी के दौर के साथ रेखा के शरीर में कुछ कंपन सा हुआ, आँखें बंद होने लगीं, मानो कोई लहर सी आई और देखते- देखते रेखा अचेत हो गई। माइक से होते हुए हाथ की पकड़ ढीली होती चली गई और वह ज़मीन पर निढाल हो गई। इतना भी समय नहीं मिल सका कि पानी का गिलास होठों तक पहुंच सकता या कोई मित्र, सहकर्मी, विद्यार्थी, अन्य महिला गिरते हुए शरीर को थाम सके। सब किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखते रह गए। किसी की समझ में नहीं आया कि सहसा क्या हुआ और सबके बीच से फड़फड़ा कर एक कर्मनिष्ठा , विदुषी, विलक्षण महिला का प्राणपंछी... न जाने किस गंतव्य की ओर ओझल हो गया।
आनन- फानन में गाड़ी लगी, कुछ वरिष्ठ साथियों की मदद से उसे गाड़ी में लिटाया गया और नज़दीक के हस्पताल का रुख किया गया। कुछ लोग साथ में भी गए। 
चिकित्सालय में तत्काल जांच की गई।
डॉक्टर ने कहा... क्षमा करें, आप हमारे पास स्पंदनहीन शव मात्र लाए हैं!
महाप्रस्थान सुनिश्चित हो जाने के बाद उसी परिसर में रेखा की मिट्टी वापस लौटी जिसे सजाने - संवारने के लिए रेखा पिछले कई महीनों से सब कुछ भूल कर दिन- रात एक किए हुए थी।
परिसर में मातम पसर गया। 
क्या सोचा गया था और क्या हो गया!
दूर- दराज से पढ़ने आई छात्राओं और उनके अभिभावकों, अतिथियों, कर्मचारियों, शिक्षकों के बीच हड़कंप सा मचने के बाद नीरव सन्नाटा छा गया।
एक विशाल कक्ष के बीचों बीच एक सफ़ेद चादर ओढ़ कर रेखा गहरी नींद सो गई।
कक्ष के दूसरी ओर असहाय, निरूपाय, निरीह से लोग उस मंज़र को टुकुर- टुकुर देखा किए जिसकी उन्होंने कभी कल्पना तक न की थी।
प्रदेश का पहला महिला शिक्षा केंद्र बनस्थली विद्यापीठ जहां एक युवती की आहूति देकर अस्तित्व में आया था वहीं इस दूसरे केंद्र ने अस्तित्व में आते ही एक स्त्री की बलि ले ली।
मानो देश में स्त्री शिक्षा के आगाज़ के लिए यह एक कठोर नियति ही बन गई कि शिक्षित होने के लिए महिलाओं को जान पर ही खेलना ज़रूरी हो गया।
***
पाठको, 
अब इस कहानी में आगे आपको बताने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है।
इस बात का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता कि यह कहानी सच्ची है या बनावटी। इस संदर्भ में अपना स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए आप स्वाधीन हैं।
कई बार दुनिया में कुछ लोग इस तरह जीवन जी गए कि बाद की नस्लें चकित होकर असमंजस में ही रहीं - क्या ऐसे भी होते हैं लोग?
फ़िर भी इतना ज़रूर जान लीजिए कि आपके लिए यह कहानी उसी व्यक्ति की लिखी हुई है जिससे रेखा ने विवाह किया। 
प्रेम विवाह!
हो सकता है कि कहीं रेखा के संदर्भ में कोई बात अतिरेकी पक्षधरता से लिख दी गई हो, लेकिन यक़ीन जानिए, यह भी हुआ है कि कुछ बातों को कम करके भी लिखा गया होगा... पति-पत्नी में केवल प्रेम ही नहीं, ईर्ष्या भी तो होती है।
लेकिन एक लेखक में अपने पाठकों के लिए ईमान भी होता है। एक प्रतिबद्धता भी होती है। एक ज़िम्मेदारी भी होती है।
चलिए, सारी बात को एक दुखांतिका बना कर छोड़ने से बेहतर है कि कुछ इधर - उधर की बातें करके इसे दुनिया में आए एक प्राण-बुलबुले का किस्सा बना कर ही ख़त्म किया जाए, किसी कहानी की ही तरह!
गुरु नानकदेव के किस्से की तरह एक परिवार दुनिया में बिखर गया। इतना ही नहीं, बल्कि इसके कण - अंश दूसरी दुनिया तक भी पहुंच गए।
विश्वविद्यालय ने स्मृति स्वरूप उस सभागार का नाम रेखा के नाम पर "प्रो. रेखा गोविल सभागार" रख दिया। 
इस तरह एक हंसती- खेलती जीवंत कहानी हमेशा के लिए दीवारों में क़ैद अफसाना बन गई।
- प्रबोध कुमार गोविल