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समय अपनी रफ़्तार से चला जा रहा था। उधर देश के माहौल में भी स्वतंत्रता पाने की आस तेज़ी दिखा रही थी। लोग एक नए ज़माने का स्वागत करने को आतुर थे। राजस्थान में और अन्य राज्यों में भी छितरी - बिखरी रियासतों का एकीकरण हो रहा था। शास्त्री जी की छवि भी एक बड़े नेता के तौर पर निरंतर उभर रही थी। शिक्षा के प्रति उनकी सरपरस्ती में चलने वाले इस संस्थान के कारण अपनी पार्टी और समूह में भी उनका कद खासा बढ़ रहा था।
देश के बड़े - बड़े नेताओं के साथ और सहयोग से विद्यापीठ की राह भी कुछ सुगम हो रही थी। जयपुर राजघराने के तत्कालीन प्रधान मंत्री मिर्ज़ा इस्माइल ने इस विद्यापीठ को एक सड़क मार्ग से भी जोड़ दिया। जयपुर से कोटा जाने वाली सड़क पर एक सात किलोमीटर का अतिरिक्त टुकड़ा जोड़ कर विद्यापीठ तक पक्की सड़क बन गई।
इस सुविधा से विद्यापीठ में आवागमन सुगम हो गया। सीमित मात्रा में निजी वाहन आने-जाने लगे।
और तभी हुआ वो नया सवेरा, जिसके लिए सदियों तक भारतीय मानस छटपटाता रहा था। लाखों लोगों ने बलिदान दिए थे। तरह- तरह के शांत और ज्वलंत आंदोलन हुए थे।
देश को आज़ादी मिली। हर भारतवासी का सपना साकार हुआ।
और इसके साथ ही बनस्थली विद्यापीठ का गौरव और भी कई गुणा बढ़ गया जब इसके संस्थापक पंडित हीरालाल शास्त्री राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री चुन लिए गए।
और कोई समय होता तो शास्त्री जी का राज्य प्रमुख चुना जाना विद्यापीठ के लिए एक छप्परफाड़ सौगात की तरह समझा जाता। लेकिन ये नई - नई आज़ादी का वो समय था जब शिक्षा से जुड़े लोग राजनीति में अपने को असहज ही पाते थे। उनके ज़मीर को लगता था कि इस तरह हम न शिक्षा के साथ न्याय कर सकेंगे और न ही राजनीति के साथ।
शास्त्री जी ने भी कुछ समय बाद अनमने होकर पद छोड़ दिया और अपने आप को पूरी तरह बनस्थली के कामकाज में ही समर्पित कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद इस विद्यालय की गतिविधियों में और भी तेज़ी आ गई। शास्त्री जी ने राजनीति से लगभग संन्यास ले कर अपना पूरा समय इसी को देना शुरू कर दिया। वो देश भर में घूमते। सघन दौरे करते और पूंजीपतियों, उद्योगपतियों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों से मिल कर विद्यापीठ के लिए आर्थिक संसाधन जुटाते। इसके साथ - साथ वो देश भर से योग्य तथा अनुभवी लोगों को भी चुनकर बनस्थली आने के लिए प्रेरित करते। स्त्री शिक्षा के उनके मिशन को जानकर लोग तन मन धन से सहयोग करते। कई नामी-गिरामी लोग कार्यकर्ता के रूप में विद्यापीठ से जुड़े।
बेतरतीब फैले बड़े भूभाग को उन्होंने व्यवस्थित करके संवारने का काम भी शुरू कर दिया। कुछ बड़े नेताओं के सहयोग और आश्वासनों से उन्होंने विद्यापीठ के परिसर में अपना एक हवाई जहाज मैदान भी बना लिया। इसमें छोटे विमानों से अब लड़कियों को हवाई जहाज उड़ाना भी सिखाया जाने लगा। विद्यापीठ के अपने फ्लाइंग क्लब की स्थापना हो गई। लड़कियों को स्वतंत्र रूप से हवाई जहाज उड़ाते देख कर सब गर्व से भर जाते। संस्था की प्रतिष्ठा दिनों दिन और बढ़ाने में भी इन गतिविधियों ने मदद की।
यह भी एक सुखद संयोग रहा कि उनके साथ कभी राजस्थान के शिक्षा मंत्री रहे प्रो. प्रेम नारायण माथुर भी विद्यापीठ में ही आ गए और यहां की गतिविधियों से जुड़ गए।
रतन जी के लड़कियों की आत्मनिर्भता के लिए किए गए विभिन्न शैक्षणिक कार्य भी अकादमिक रूप से यहां की शिक्षा प्रणाली से जुड़े और यहां "पंचमुखी शिक्षा" के रूप में शारीरिक, व्यावहारिक, बौद्धिक, तकनीकी और अकादमिक पाठ्यक्रमों को जोड़ कर एक नेतृत्वकारी शिक्षा नीति बनाई गई जो अपने आप में अनूठी तथा विलक्षण थी। यह लड़कियों को समाज में नेतृत्व करने में सक्षम बनाने के साथ - साथ परिवार की धुरी के रूप में उनका व्यक्तित्व गढ़ने वाली शिक्षा के रूप में प्रसिद्ध हुई।
यहां की छात्राओं ने राजस्थान विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष, मंत्री, राज्यपाल आदि बन कर देश दुनिया में नाम कमाया। इंजीनियर, डॉक्टर, अफ़सर, सेना अधिकारी, पायलट, प्रशासनिक अधिकारी, प्रोफ़ेसर आदि बनते हुए इस विद्यापीठ की सैकड़ों छात्राओं को देखा गया।
विद्यापीठ से सात किलोमीटर दूर जयपुर सवाई माधोपुर रेलवे लाइन पर एक रेलवे स्टेशन का निर्माण भी हो गया। कुछ गाड़ियां यहां ठहरने लगीं जिससे अब विद्यापीठ पहुंचने का एक रास्ता और भी खुल गया। स्टेशन से विद्यापीठ तक जाने आने के लिए सीमित संख्या में तांगे उपलब्ध होते थे।
इसी समय एक दिलचस्प घटना और घटी जिसके बारे में अब तक लोगों में संशय बना हुआ है।
लगभग नब्बे साल पुराने इस विद्यापीठ का नाम हिंदी में वनस्थली (वन का स्थल) और अंग्रेज़ी में बनस्थली लिखा जाता है। "व" और "ब" का यह रहस्य कोई नहीं जानता था और लोग परंपरा से इसी तरह लिखते आ रहे थे।
दरअसल इसका कारण भी इसी रेलवे स्टेशन के नाम से जुड़ा हुआ है। एक उम्रदराज़ बुजुर्ग ने बताया कि इस रेलवे स्टेशन से विद्यापीठ सात किलोमीटर दूर है और नज़दीक का कस्बा (तहसील) निवाई चार किलोमीटर दूर है। अतः रेलवे ने इस स्टेशन का नाम दोनों स्थानों के नाम पर संयुक्त रूप से "निवाई- वनस्थली रेलवे स्टेशन" रखने का प्रस्ताव रखा।
तभी रेलवे के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि अंग्रेज़ी अक्षरों के क्रम से इस स्टेशन का नाम निवाई-वनस्थली होगा। किंतु यदि विद्यापीठ का औपचारिक नाम "बनस्थली विद्यापीठ" रखने के दस्तावेज़ उपलब्ध करा दिए जाएं तो यह नाम स्वतः ही बनस्थली-निवाई हो जाएगा। इस तरह नाम परिवर्तन से बनस्थली का नाम रेलवे की डायरेक्ट्री में निवाई से पहले आ गया।
विद्यापीठ राजस्थान राज्य का पहला महिला शिक्षा केंद्र होने से इसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती गई। यहां के वार्षिक उत्सवों और दीक्षांत समारोहों में देश के सर्वोच्च स्तर के अतिथि निरंतर आते रहे। इनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ ज़ाकिर हुसैन, श्रीमती इंदिरा गांधी आदि शामिल रहे।
देश के कई सुविख्यात लोगों, राज्यपालों, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्य मंत्रियों, बड़े उद्योगपतियों, मंत्रियों आदि ने अपनी पुत्रियों को पढ़ने के लिए इस विद्यापीठ में भेजा।
इससे जहां इन विशिष्ट लोगों की बच्चियों को पंचमुखी शिक्षा मिली, वहीं विद्यापीठ को भी अपने स्रोत संसाधन पुष्ट करने के अवसर मिले। यहां देश भर से छात्राओं व कार्यकर्ताओं का आना-जाना लगा रहा और इसे देशव्यापी ख्याति मिली।
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