गाँव की गलियों से शुरू हुआ सपना
दीप्तु, जिसे सब प्यार से "बाबू" कहते थे, असम के एक छोटे से गाँव में रहता था।
सीधा-सादा, कम बोलने वाला, पर आँखों में बहुत कुछ कहने वाला लड़का।
घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, लेकिन मेहनत और इरादों में कोई कमी नहीं।
वहीं सालिनी जिसे बाबू प्यार से "सोना" बुलाता था एक मिडिल क्लास परिवार की इकलौती बेटी।
पढ़ाई में तेज़, बातों में मीठी और चेहरे पर ऐसी मासूमियत कि बाबू पहली बार में ही उसे देखता रह गया।
गाँव के स्कूल में दोनों एक साथ पढ़ते थे। शुरू में बस एक-दूसरे को देखना, फिर टिफिन शेयर करना, और धीरे-धीरे मन की बातें बाँटना।
भाग 2 – दिल का इकरार, लेकिन जुबान से नहीं
बाबू को सोना से प्यार हो गया था।
लेकिन वो कह नहीं पाया। बस हर दिन उसकी नजरों में वो एहसास दिखता रहा।
सोना भी सब समझ रही थी… पर शायद वो चाहती थी कि बाबू एक दिन खुद कहे।
फिर एक दिन, स्कूल की छुट्टी के बाद जब बारिश होने लगी, बाबू और सोना एक पुराने मंदिर की छत के नीचे रुक गए।
बाबू ने काँपते होठों से कहा
"सोना… अगर मैं कुछ कहूं तो छोड़ के तो नहीं जाओगी?"
सोना मुस्कुराई —
"बोलो बाबू…"
बाबू ने आँखें झुकाकर कहा
"तू जब पास होती है तो सब ठीक लगता है… और जब दूर जाती है तो दुनिया खाली सी लगती है… तू मुझे बहुत पसंद है सोना…"
सोना ने बिना कुछ कहे उसका हाथ पकड़ लिया।
भाग 3 समाज की दीवारें
प्यार अब गहरा हो चुका था।
लेकिन सोना के घरवालों को ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था।
"दीप्तु गरीब है", "पढ़ाई पूरी नहीं हुई", "कहाँ रहेगा बेटी? यही सब बातें सामने आने लगीं।
सोना पर बंदिशें लग गईं। फोन ले लिया गया।
बाबू को मिलने तक की इजाज़त नहीं थी।
लेकिन बाबू ने हार नहीं मानी।
उसने नौकरी की तलाश शुरू कर दी, छोटे-मोटे काम किए, और साथ ही ऑनलाइन पढ़ाई भी शुरू की।
भाग 4 – शहर की भीड़ और दिल का इंतज़ार
दो साल बाद बाबू ने गुवाहाटी में एक छोटी सी कंपनी में नौकरी पकड़ ली।
अब उसके पास थोड़ा पैसा था, थोड़ी पहचान, लेकिन सबसे बड़ी चीज़ थी उम्मीद।
सोना अब कॉलेज में थी, पर अब भी उसका मन बाबू के लिए धड़कता था।
वो हर रात अपनी डायरी में वही लिखती —
"बाबू आएगा… वो मुझे लेने ज़रूर आएगा…"
भाग 5 – फिर मिलेंगे... वादा रहा
एक दिन अचानक बाबू गाँव लौटा।
वहीं पुराने स्कूल के पास खड़ा हुआ — वही जगह जहाँ पहली बार टिफिन शेयर किया था।
सोना वहां पहले से मौजूद थी… मानो उसे पता हो कि बाबू आएगा।
उस दिन कोई शब्द नहीं बोले गए।
बस आँखों ने बात की, दिलों ने गवाही दी।
बाबू बोला
"मैं तैयार हूँ सोना, अब तुझे दुनिया से नहीं, तेरे पापा से भी मांगने आया हूँ…"
भाग 6 – अंतिम संघर्ष और जीत
सोना के पापा ने बहुत नाराज़गी दिखाई।
लेकिन बाबू अब वही लड़का नहीं था —
उसके पास नौकरी थी, आत्मसम्मान था और सबसे बड़ी बात — सोना के लिए अटूट प्रेम।
कुछ दिन के बाद, रिश्तेदारों और समाज के डर के बावजूद, सोना के पापा मान गए।
"अगर वो इतना सच्चा है कि सालों तक सिर्फ एक नाम जीता रहा —
तो मेरी बेटी उसके साथ ज़रूर खुश रहेगी।"
भाग 7 – साथ हमेशा के लिए
बाबू और सोना की शादी पूरे गाँव ने देखी।
लोगों ने कहा —
"ऐसा प्यार हर किसी को नहीं मिलता… और जो ऐसे साथ निभाए, वही असली जीवन साथी होता है।"
अब बाबू और सोना एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं।
बाबू अब अपनी एक चाय-कॉफ़ी शॉप खोलना चाहता है — जिसका नाम होगा:
"सोना बाबू कैफ़े – जहाँ पहली नज़र में प्यार होता है..."
इस प्रेम कहानी का सार:
प्यार जब सच्चा हो, तो इंतज़ार, दूरी, और समाज की बंदिशें
सब हार जाती हैं।
बाबू और सोना की प्रेम कहानी सिर्फ इश्क़ नहीं,
एक प्रेरणा है — उन सभी दिलों के लिए जो आज भी वक़्त से लड़ रहे हैं।
Thank you 👍