प्रस्तावना
गांव की मिट्टी में पले-बढ़े प्यार अक्सर सबसे सच्चे होते हैं, लेकिन जब वो समाज की कड़वी हकीकतों से टकराते हैं, तो टूट जाते हैं। ऐसी ही एक दिल को छू जाने वाली कहानी है — यादव और सीता की। ये कहानी केवल प्रेम की नहीं, त्याग, दर्द और सामाजिक बंधनों की भी है।
भाग 1: पहली मुलाकात
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव "रमपुरा" में यादव नाम का एक सीधा-सादा किसान रहता था। उम्र लगभग 24 साल, मेहनती, ईमानदार, और गांव के बड़े ज़मींदारों में गिना जाता था। खेत, मवेशी, और मेहनत से कमाया हुआ सम्मान — यही उसकी पूंजी थी।
सीता, उसी गांव की एक गरीब ब्राह्मण लड़की थी। उसके पिता बीमार रहते थे और मां दूसरों के घरों में काम करके गुज़ारा करती थी। सीता पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उसकी आंखों में सपने थे और दिल में कुछ बनने की चाह थी।
यादव और सीता की पहली मुलाकात गांव के मेले में हुई, जब यादव ने उसे गलती से ठोकर मार दी थी। उसने माफ़ी मांगी, और सीता की मुस्कराहट ने उसका दिल छू लिया।
भाग 2: प्रेम की शुरुआत
धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं — कभी मंदिर में, कभी खेतों के रास्ते में। सीता की सादगी और यादव का अपनापन दोनों को एक-दूसरे की ओर खींचने लगे।
प्यार कभी ज़ोर से नहीं आता — वो तो धीमे से दिल में बस जाता है। दोनों को खुद भी पता नहीं चला कब वे एक-दूसरे के बिना अधूरे लगने लगे। एक दिन यादव ने सीता से कहा, "अगर तू साथ चले, तो मैं दुनिया से लड़ जाऊं।"
सीता ने नज़रें झुका लीं। वो हां थी।
भाग 3: समाज की सच्चाई
लेकिन हर प्रेम कहानी इतनी आसान नहीं होती। यादव और सीता अलग-अलग जाति से थे। यादव एक "यादव" था और सीता एक ब्राह्मण। समाज के लिए यह रिश्ता अस्वीकार्य था।
जब गांव वालों को उनके रिश्ते का पता चला, तो पंचायत बैठ गई। यादव के घर वालों ने उसे धमकाया — "अगर तूने उस ब्राह्मण लड़की से शादी की, तो हमारा नाम मिट्टी में मिल जाएगा।"
उधर सीता के घर में मातम छा गया। उसकी मां ने रोते हुए कहा, "हमारे पास तो दो वक़्त की रोटी नहीं, और तू ज़मींदार के लड़के से शादी करेगी? वो तुझे छोड़ देगा!"
भाग 4: भागने की कोशिश
यादव और सीता ने तय किया कि वो गांव से भाग जाएंगे। एक रात यादव सीता को लेने उसके घर के पीछे पहुँचा। सीता अपने बिछावन के नीचे से चिट्ठी निकालकर लाई — "मां को बताना मत, मैं उसे दुख नहीं देना चाहती।"
लेकिन भाग्य को कुछ और मंज़ूर था। किसी ने पंचायत को खबर कर दी। दोनों को भागते वक्त पकड़ लिया गया। यादव को गांव के चौक पर बांध कर पीटा गया। सीता को घसीटकर उसके घर ले जाया गया।
यादव की आंखों से खून बह रहा था, लेकिन सीता की आंखों में आंसू बह रहे थे।
भाग 5: अलगाव
उसके बाद सीता की जबरदस्ती एक बूढ़े विधुर से शादी करा दी गई, जो पास के गांव में रहता था। सीता के आंसू और चीखें किसी को नहीं दिखाई दीं — क्योंकि समाज को अपनी ‘इज़्ज़त’ प्यारी थी।
यादव को गांव छोड़ना पड़ा। वो शहर चला गया, मज़दूरी करने लगा। उसका तन मज़दूरी करता रहा, लेकिन दिल वहीं गांव में पड़ा रहा — सीता के पास।
भाग 6: अंत की वेदना
करीब 6 साल बाद यादव एक बार फिर गांव लौटा। अब वह बूढ़ा-सा लगने लगा था, बाल सफ़ेद, आंखें बुझी हुईं।
उसने सबसे पहले सीता के बारे में पूछा।
लोगों ने सिर झुका लिया — "सीता अब नहीं रही। ससुराल में उसे बहुत सताया गया। बच्चों को जन्म देते हुए उसका देहांत हो गया।"
यादव वहीं बैठ गया, उसी जगह जहां वो सीता से पहली बार मिला था। उसकी आंखों से आंसू नहीं निकले — शायद अब आंसुओं में भी जान नहीं बची थी।
उसने सीता की चिता की राख अपने हाथों में ली और कहा:
"मैं ज़िंदा था, मगर अब तू चली गई... अब शायद मैं भी मर जाऊं, सीता..."
सीख
यादव और सीता की कहानी सैकड़ों कहानियों में एक है, लेकिन इसका दर्द अनोखा है। यह हमें बताती है कि प्यार को ना जात-पात देखना चाहिए, ना समाज की बेड़ियों को।
क्योंकि सच्चा प्यार हमेशा समाज से बड़ा होता है।