रात्रि ने वो सारे पेपर्स गुस्से में अगस्त्य के मुंह पर फेंके।
रात्रि:
"ये कॉन्ट्रैक्ट कैंसिलेशन के पेपर्स हैं जो तुमने भेजे हैं!
तुम होते कौन हो मुझे इस प्रोजेक्ट से निकालने वाले?"
अगस्त्य ने पेपर्स उठाए।
थोड़ा देखा, फिर शांत लहजे में बोला:
अगस्त्य:
"बस...?
यही बात है...?
इतनी सी बात पर तुम मुझे इतना कुछ सुना रही हो?"
रात्रि (सरप्राइज़्ड):
"क्या मतलब?"
अगस्त्य, बाकी सभी को देखकर बोला:
अगस्त्य:
"यही फिल्म देखोगे या अपनी बनाने के लिए निकलोगे भी?
यहां का पैकअप... जाओ सब।"
(सब जाने लगे)
अगस्त्य (रात्रि की तरफ):
"आप नहीं जा सकतीं।
कृपया अपने घर जाएं।"
रात्रि (गुस्से में उंगली दिखाते हुए):
"तुम—"
अगस्त्य उसकी उंगली पकड़ कर नीचे करता है:
अगस्त्य (गंभीर होकर):
"Now you're crossing your limits...
इससे पहले कि मैं अपनी लिमिट्स क्रॉस करूं,
तुम चली जाओ।
ओह! तुम तो जा नहीं सकती न —
तुम्हें तो डायलॉग बोलने हैं अभी गुस्से वाले...
तो मैं जाता हूं।"
(वो उसका हाथ झटक कर चला जाता है)
सब जा चुके हैं।
एवी अपनी गाड़ी से पहुंच रहा है।
अब वहां बस रात्रि और नेहा बची हैं।
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[INT. कॉरिडोर – MOMENTS LATER]
रात्रि, गुस्से में भरी, अगस्त्य के पीछे कोरिडोर में दौड़ती है।
रात्रि (जोर से):
"अगस्त्य!"
अगस्त्य रुकता है।
रात्रि:
"तुम खुद को समझते क्या हो!?
मेरी इस तरह इंसल्ट कैसे कर सकते हो?"
अगस्त्य (गुस्से में पास आता है):
"इंसल्ट...?
इसे तुम इंसल्ट कहती हो?
इंसल्ट वो है जो तुमने मेरी की है!
तुम शायद भूल रही हो...
मैं इस प्रोडक्शन हाउस का बॉस हूं।
जो हरकत तुमने की है...
मैंने क्यों बर्दाश्त की, पता नहीं...
वरना तुम दोबारा इस ऑफिस में घुस भी नहीं पातीं — so thank me."
रात्रि (तेज लहजे में):
"और जो तुम मेरे साथ कर रहे हो...
उसका क्या?"
अगस्त्य:
"क्या कर रहा हूं मैं तुम्हारे साथ...?"
रात्रि (धीरे से):
"...ये सब..."
अगस्त्य (इंटेंस लहजे में):
"और तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि
तुम मेरे साथ क्या कर रही हो।"
(चुप्पी...)
रात्रि (धीरे से):
"क्या...?"
अगस्त्य, बात टालते हुए, थोड़ी नॉर्मल आवाज़ में:
अगस्त्य:
"मुझे लगा था तुम पढ़ी-लिखी हो...
और मुझे बताया भी गया था कि तुम समझदार हो।
पर तुम—"
रात्रि:
"क्या मतलब?"
अगस्त्य:
"मतलब ये कि...
जिन डॉक्युमेंट्स को देखकर
तुम बदले की आग में जलती दौड़ती हुई मेरे पास आ गईं,
कम से कम पढ़ तो लेतीं।
और पढ़ती भी नहीं,
तो इतना तो देख लेतीं कि भेजने वाला कौन है!"
रात्रि:
"साफ-साफ बोलो!"
अगस्त्य:
"च-च-च...
और कितना साफ चाहिए तुम्हें...?
वो Contract Cancellation Papers मेरी तरफ से नहीं,
तुम्हारी तरफ से भेजे गए थे।
मैंने तो बस साइन करके वापस भेज दिए।
आया कुछ समझ में...?"
रात्रि शॉक में:
"क्या...? मेरी तरफ से...?
(सोचती है...)
भाई...? क्या ये उसने...?"
अब वो गिल्ट में डूब जाती है।
कुछ बोलती नहीं।
अगस्त्य:
"और जो हरकत तुमने पूरी टीम के सामने की है...
उम्मीद करता हूं उसका अच्छा-खासा justification तुम लाओगी।"
रात्रि नजरें झुकाकर वहां से निकल जाती है...
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[EXT. ऑफिस गेट – MOMENTS LATER]
नेहा सामने आती है।
नेहा:
"मैम, मुझे नहीं लगता अगस्त्य सर ऐसा कुछ करेंगे,
वो भी आपके साथ।"
रात्रि (गुस्से में):
"क्यों...? क्या वो कहीं के PM हैं,
जो सबका भला करेंगे?"
नेहा:
"नहीं!
पर जब आप पानी में डूब रही थीं,
उन्हीं ने आपको बचाया था।
और शूटिंग से हॉस्पिटल तक,
कम से कम सौ बार उन्होंने आपको देखा और पूछा होगा।
डॉक्टर को भी धमका रहे थे आपके लिए।"
रात्रि मन में सोचती है:
"...क्या मैंने ज्यादा कर दिया...?"
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[INT. SHOOTING LOCATION – LATER]
सब लोकेशन पर पहुंच चुके हैं।
एवी (परेशान होकर):
"अर्जुन... रात्रि नहीं आई?"
अर्जुन:
"नहीं।
उसने हमसे Contract तोड़ दिया है।"
एवी:
"ऐसा कैसे हो सकता है!
मैं अभी—"
अर्जुन (कंधे पर हाथ रखता है):
"एवी, प्लीज़।
इतने दिनों बाद सब कुछ फिर से शुरू हुआ है।
कोई गड़बड़ मत करना।
शूटिंग पर ध्यान दो।"
एवी:
"पर..."
अर्जुन (सीरियस टोन में):
"तुम्हारी यहां जरूरत है।
और ये एक दोस्त नहीं,
एक प्रोड्यूसर बोल रहा है।"
एवी (रुकते हुए):
"हम्मम..."
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[EXT. जंगल – MEDIEVAL SET – DAY]
अगस्त्य, चुपचाप बैठा है —
कहीं और खोया हुआ।
CUT TO:
प्रणाली, दुख में डूबी,
अविराज के जाने से टूटी हुई,
शिकार के बहाने अपने दासियों संग जंगल पहुंची है।
तभी उसे जंगल में कोई अजनबी ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाता दिखता है।
प्रणाली (दूर से):
"कौन है ये...?
बग्गी आगे बढ़ाओ!"
वो देखती है —
एक अनजान इंसान, अकेले कुछ अदृश्य से बात कर रहा है...
प्रणाली (दासी से):
"तुम मुझे अपने वस्त्र दो।"
दासी (हैरान):
"जी...?"
प्रणाली:
"हाँ, जल्दी!"
(कपड़े बदलकर वो वहां जाती है)
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[EXT. जंगल – CONTINUOUS]
प्रणाली:
"किस बात पर इतने खुश हो...?
किससे बातें कर रहे हो?"
वर्धान (मुस्कुराता हुआ):
"ओ... फूल बेचने वाली, तुम?"
प्रणाली (भौचक्की):
"फूल बेचने वाली...?"
वर्धान:
"हाँ!
तुमने अपना नाम तो बताया नहीं,
तुम्हारे काम से बुला रहा हूँ।"
प्रणाली चुप...
वर्धान:
"वैसे तुम्हारी दलिया कहां है?
महल वालों ने निकाल दिया क्या?"
प्रणाली सोच में पड़ जाती है —
"इसे कैसे पता कि मैं महल में रहती हूं?"
(गंभीर होकर)
प्रणाली खंजर निकालती है और उसकी गर्दन पर रखती है।
प्रणाली:
"कौन हो तुम...?
और उस दिन मेरी जासूसी कर रहे थे?"
वर्धान (डरने का नाटक करते हुए):
"मुझे डर लग रहा है,
उसे हटाओ...
मैं प्रार्थना करता हूं।"
प्रणाली:
"तुम महल पर जासूसी करना चाहते हो?"
वर्धान (अपने अंदाज़ में):
"बस... हां।
अब इससे ज्यादा डरने का नाटक नहीं कर सकता।"
(वो अचानक उसका हाथ घुमाता है,
प्रणाली को पीछे पेड़ से टिका देता है,
खंजर छीन लेता है।)
अब वर्धान के एक हाथ में चाकू,
दूसरे हाथ से प्रणाली की कलाई को दबाए हुए।
वो धीरे-धीरे चाकू से उसके गालों को छूता है...
वर्धान (भारी आवाज में):
"अब बोलो फूल बेचने वाली...
अब क्या करोगी?"
प्रणाली, उसकी मासूम-सी आंखों में देख रही है —
बिलकुल चुप...
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