आन्या ने मन में सोचा—
"कल तो ये पेस्ट्री तीस रुपये की थी... आज भी देख लूंगी, शायद वही हो।"
इतना सोचकर वह हल्की सी मुस्कान लिए रेस्टोरेंट में दाखिल हुई। रेस्टोरेंट कम और स्वीट बेकरी ज़्यादा लग रही थी। जैसे ही वह अंदर आई, उसकी आँखें चारों तरफ घूमने लगीं, लेकिन अभिमान कहीं नज़र नहीं आया। वो पेस्ट्री की तरफ बढ़ गई।
तभी पीछे से एक आवाज़ आई—
“क्या चाहिए तुम्हें?”
वो राघव था।
आन्या ने एक पेस्ट्री की तरफ इशारा करते हुए मासूमियत से कहा, “वो चाहिए... कितने की है?”
राघव मुस्कराया, “पैंतीस रुपये की है।”
यह सुनते ही आन्या का चेहरा उदास हो गया। उसने धीरे से कहा,
“पर... मेरे पास तो सिर्फ तीस रुपये हैं।”
राघव को थोड़ी झिझक हुई, फिर बोला,
“अच्छा रुको, मैं सर से पूछता हूँ।”
आन्या ने जल्दी से कहा, “पर मुझे स्कूल के बाद वापस आना पड़ेगा। आप तब पूछ लीजिएगा।”
इतना कहकर वह जल्दी से बाहर निकल गई। उसकी आंखों में मायूसी थी—ना पेस्ट्री मिली और ना ही अभिमान की एक झलक।
दोपहर 2 बजे
स्कूल की छुट्टी के बाद आन्या फिर से बेकरी में आ गई। इस बार काउंटर पर खुद अभिमान था, राघव शायद लंच पर गया हुआ था। अभिमान हिसाब-किताब में व्यस्त था।
जैसे ही आन्या ने उसे देखा, उसकी आंखों में चमक आ गई। वहां और भी बच्चे थे, सब मस्ती में थे, पर वो सीधा अभिमान के सामने जा खड़ी हुई।
“सुनिए सर...” उसने मीठी सी आवाज़ में कहा।
अभिमान ने सर उठाया, उसकी नजर आन्या से मिली। अभिमान की नजरें एक पल के लिए आन्या पर ठहर गई ओ बोहोत मासूम लग रही थी। उसने सर झटका।
“क्या चाहिए?” उसने रूखेपन से पूछा।
आन्या थोड़ी सहम गई, फिर बोली, “वो तीस वाली पेस्ट्री...”
अभिमान ने सख्त लहजे में जवाब दिया, “तीस वाली पेस्ट्री नहीं है।”
आन्या का चेहरा एकदम उतर गया। उसने उदास होकर कहा,“पर भैया ने कहा था कि आप देंगे...”
यह सुनकर अभिमान का पारा चढ़ गया। वह झुंझलाकर बोला—
“तुम्हें समझ नहीं आता? नहीं है मतलब नहीं है। हर कोई आता है, और पैसे नहीं होते तो क्यों आते हो? निकलो यहां से! और कल क्या लिखा था मिस्टर एंग्री तूम होती कौन हो मूझे कूछ भी कहने वाली। आन्या सहम गई ओ एक कदम पिछे हट कर लड़खड़ाती जुबान से बोली,,,,ओ ओ।।
अभिमान गूससे से बोला,,निकलो यहा सै गेट आउट।।
आन्या के मासूम दिल पर जैसे किसी ने हथौड़ा मार दिया हो। उसकी आंखों में आंसू आ गए, लेकिन वह कुछ नहीं बोली। बस हल्के से बोली,
और“ओके...”और लौट गई।
अभिमान ने देखा—वो छोटी-सी बच्ची बाहर जाकर अपने आंसू पोंछ रही थी। उसके हाथ में बस तीस रुपये थे। उसके गाल और नाक लाल हो गए थे। तभी अक्षत वहाँ आ गया। उसके हाथ में चोट लगी थी।
“क्या हुआ?” आन्या ने फिक्र से पूछा।
“गिर गया... खेलते-खेलते,” अक्षत बोला।
आन्या ने उसका बैग उठाया और उसका हाथ पकड़ लिया। तभी थोड़ी देर बाद तूकाराम जी आ पहुंचे।
उन्होंने गुस्से में आकर कहा,
“मैंने कहा था ना, इसका ध्यान रखना! कैसे लगी चोट?”
आन्या पीछे हट गई, उसका शरीर डर से कांप उठा।
“पापा, उनकी गलती नहीं है,” अक्षत बोला, “मैं खुद गिरा।”
तूकाराम जी चुप हो गए, और बोले, “बैठो।”
आन्या चुपचाप बैठ गई। उसने एक बार पीछे मुड़कर बेकरी की तरफ देखा, फिर नजरें झुका लीं।
बेकरी में
राघव वापस लौटा और अभिमान से बोला,
“अभी, वो लड़की फिर आई थी पेस्ट्री लेने।”
“हम्म... मैंने नहीं दी,” अभिमान ने रूखेपन से कहा।
राघव को बुरा लगा, उसने कहा,
“पांच रुपये की ही तो बात थी यार... कल भी आई थी, तब पेस्ट्री बनी ही नहीं थी। आज भी खाली हाथ लौट गई।”कीतनी प्यारी थी ओ लडकी।।
अभिमान गूससे से बोला,,,ईतनी ही प्यारी है तो अपने पैसे से लेकर दै पेस्ट्री।।
राघव अभिमान को देखकर बोला,,यार अभी तू ईतना हार्पर क्यूं हो रहा है।
वह अपने काम में लग गया।
अभिमान वहीं बैठा सोचने लगा,“मुझे इतना गुस्सा क्यों आया?”
झुंझलाकर बोला, “मैं घर जा रहा हूँ,” और निकल गया।
घर पर
आन्या चुपचाप घर पहुंची। उसका चेहरा बुझा हुआ था।
ममता जी ने पूछा, “क्या हुआ बेटा?”
आन्या ने कुछ नहीं कहा। वह अपने कमरे में चली गई। अक्षत ने धीरे से बताया,
“पापा ने डांटा था।”
ममता जी चुप रहीं। तूकाराम जी ने सख्त लहजे में कहा,
“चोट लगी है, दवाई लगाओ। मैं एक बार चेक कर आता हूँ।”
ममता जी ने अक्षत को अंदर ले जाया। वहीं, आन्या कपड़े बदलकर किचन में आई। ममता जी बोलीं,
“खाना खा लो।”
आन्या बोली, “रसोई साफ करके बाद में खा लूंगी,” और काम में लग गई।ममता जी आन्या को देखकर बोली,,अक्षत को चोट कैसे आई, तुम्हें उसका ख्याल रखना चाहिए ना।।।
ममता जी कूछ बोलतीं।तूकाराम जी ने गूससे से भरी आवाज आई,,आन्या।।
आन्या ने अपनी मूठठीया भिच ली उसका शरिर कांपने लगा ओ ममता जी को देखने लगी जो काम करने का नाटक कर रही थी।।
आन्या तूकाराम जी के सामने खडी थी।।तूकाराम जी गूससे से बोले,,,अक्षत को चोट कैसी लगी।। आन्या ए सूनकर डरते हुए बोली,,,हमे नही पता पर।।तूकाराम जी ने गूससे से बोला,,बाप से जबान लडा रही हो यहा तूम्हे मै घर पर रख रहा हूं और तूमने मेरे बैटै को चोट पोहचाई।।आन्या नमः आंखों से बोली,, हमने कूछ नही कीया खेलते हुए लग। ईतना ही बोला था की तूकाराम जी ने गूससे से उस पर हाथ उठा लिया।।। आन्या जाकर निचे गिर गई।।।तूकाराम जी गूससे से बोले,, आईंदा अगर मेरे सामने जबान खोली ना जमडी उजाड दूंगा मै तूम्हारी।।।
ममता जी अपना सर झूकाऐ हूए खडी थी।।ओ जल्दी से आन्या के पास आई।। आन्या रोते हुए बोली,, क्यूं मां मै भी तो उनकी ही बेटी हूं ईतनी नफ़रत क्यूं है।। ममता जी उसे उठाकर कमरे मै आई। आन्या रोते हुए सो गई उसके माथे पर कट लग गया था शायद कूछ लग गया था।।
दूसरी तरफ...
अभिमान जैसे ही जल्दी घर पहुंचा, सरस्वती जी ने पूछा,
“क्या हुआ? ऐसे परेशान क्यों हो?”
अभिमान बस इतना ही बोला,
“मुझे डिस्टर्ब मत करना।”
और अपने कमरे में चला गया।
क्या अभिमान की सोच बदलेगी? क्या मासूम सी आन्या को मिलेगी वो पेस्ट्री?
जानने के लिए पढ़ते रहिए —
"Age Doesn’t Matter in Love" 💖