इंदौर के एक आलीशान बंगले में सुबह की हलचल अपने चरम पर थी। रसोई में एक मिडल एज महिला बड़ी तल्लीनता से नाश्ता तैयार कर रही थी। उनका नाम था सरस्वती जोधा — एक स्नेही, समझदार और परंपराओं को मानने वाली गृहिणी। उनका जीवन उनके परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमता था।
जैसे ही उसने पराठे तवे से उतारे, उसने रसोई से आवाज़ लगाई,
“अभि... अभि! कहाँ हो बेटा?”
तभी एक लड़का सीढ़ियों से नीचे उतरता दिखा, अपनी शर्ट की बाँहें मोड़ते हुए, चेहरे पर हल्की सी नाराज़गी का स्थायी भाव लिए।
“जी मां...” उसने संक्षिप्त जवाब दिया।
सरस्वती जी ने नाश्ता डाइनिंग टेबल पर सजाते हुए प्यार से कहा,
“बेटा, देर मत करना... समय पर लौट आना।”
उसका नाम था अभिमान जोधा। ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद उसने अपने पिता के साथ मिलकर उनका पारिवारिक बिज़नेस संभालना शुरू किया था। आज ‘जोधा रेस्टोरेंट’ इंदौर ही नहीं, आस-पास के शहरों में भी अपनी पहचान बना चुका था — पाँच ब्रांचों के साथ एक बड़ी सफलता की कहानी बन चुका था।
लेकिन... अभिमान का स्वभाव उसकी सफलता से एकदम उलट था। वो गुस्सैल, अहंकारी और हर वक़्त चिड़चिड़ा रहने वाला लड़का था। और सबसे हैरानी की बात — उसे लड़कियों से सख्त नफरत थी। क्यों? इसका जवाब शायद खुद उसके पास भी नहीं था। बस, उसने खुद को औरों से अलग-थलग रखना सीख लिया था।
तभी एक व्यक्ति, जिनकी उम्र लगभग पचास के आसपास रही होगी, टेबल पर बैठे अभिमान की ओर देखते हुए बोले,
“अभिमान, तुम्हें शनाया के बारे में कुछ बताना था...”
बस इतना सुनना था कि अभिमान का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसने झुंझलाकर कहा,
“डैड! मैंने कितनी बार कहा है... मुझे उस लड़की से शादी नहीं करनी! क्यों बार-बार वही बात दोहराते हो आप?”
ये कहकर वह गुस्से में अपनी बुलेट की चाबी उठाता है और बिना कुछ खाए घर से बाहर निकल जाता है।
उस आदमी का नाम था अमित जोधा — अभिमान के पिता, एक अनुशासनप्रिय और सख्त मिज़ाज इंसान। उन्होंने बेटे की हरकत देखकर मायूस होकर सरस्वती से कहा,
“देख लिया अपने लाडले को? बाप से ही ज़बान लड़ाने लगा है।”
सरस्वती ने पति की ओर नाराज़गी से देखा और बोलीं,
“आप ये सब बातें नाश्ते के बाद नहीं कह सकते थे क्या? मेरा बेटा बिना कुछ खाए चला गया।
अमित जी कुर्सी से उठते हुए बोले,
“उसका तो रोज़ का ही ड्रामा है... न जाने अब किस पर गुस्सा निकालने चला गया है। एक दिन खींच के एक दूँगा, सारा घमंड निकल जाएगा।”
सरस्वती जी ने थके हुए अंदाज़ में सिर हिलाया और बुदबुदाई,
“हाँ, हाँ… ऐसी बातें तो आप बस मेरे सामने ही कर सकते हो।”
तो कैसी लगी हमारे हीरो की एंट्री?
क्या आपको भी किसी की याद आ गई थी ये पढ़कर?
अभी तो बस शुरुआत है, आगे इस गुस्सैल दिल के पीछे छुपी कहानी जाननी बाकी है...
आगे ईस कहानी में क्या होगा ए जानने कै लिऐ आपकौ अगला चापटर पढना होगा।।।
कैसी लगी हमारे हीरो की एंट्री?
क्या आपको भी किसी की याद आ गई थी ये पढ़कर?
अभी तो बस शुरुआत है, आगे इस गुस्सैल दिल के पीछे छुपी कहानी जाननी बाकी है...
आगे ईस कहानी में क्या होगा ए जानने कै लिऐ आपकौ अगला चापटर पढना होगा।।।