Ishq aur Ashq - 15 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 15

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इश्क और अश्क - 15



एवी सिसकियों के बीच खुद से बड़बड़ा रहा था...

एवी (टूटे हुए लहजे में):
"ये दर्द समझने वाला कोई नहीं है...
अब क्यूं परेशानी हो रही है तुझे...?
यही तो तू चाहता था ना... कि वो तुझसे दूर चली जाए...
फिर आज जब वो आगे बढ़ रही है...
तो ये आंसू क्यों बह रहे हैं...? क्यों...?"

(उसने खुद को ही शीशे में घूरते हुए देखा, और खुद से नफ़रत सी महसूस की…)


---

दूसरी ओर, रात्रि खुश है... बहुत खुश।

उसने किसी को बेहद अपनेपन से गले लगाया...
और वो शख्स कोई और नहीं, एवी ही था।

एवी (भीगी आंखों से मुस्कुराते हुए):
"मैंने इस दिन के लिए कितना इंतज़ार किया है रात्रि...
कितना कुछ किया... खुद को खो दिया...
पर आज जब तुम मेरी बाहों में हो,
तो यकीन ही नहीं हो रहा कि ये सब सच है..."

(उसने रात्रि के गालों को धीरे से छूआ…)

रात्रि (धीरे से मुस्कुराते हुए):
"आख़िरकार मैंने वो पहेली सुलझा ही ली...
तुम ही थे ना जिसने मुझे पानी से बचाया था...?"

एवी का चेहरा अचानक सख़्त हो गया... उसका हाथ रात्रि के चेहरे से खुद-ब-खुद हट गया।

एवी (हैरानी से):
"क्या...? क्या कहा तुमने...?"

रात्रि (धीरे से):
"हां... जब मैं बेहोश हुई थी...
किसी ने मुझे उस पानी से बाहर निकाला था...
फिर अचानक सब धुंधला हो गया...
पर एक अजनबी स्पर्श... किसी की सांस...
जैसे किसी किताब के पन्ने पलटते हैं वैसे ही
मेरे सामने कई पुराने चित्र खुलने लगे... पुरानी यादें... बीजापुर..."


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[रात्रि की यादों में — Flashback begins]

बीजापुर राज्य...
धरती पर परियों का राज्य...
जहां की स्त्रियां स्वर्ग का रास्ता जानती थीं...

Narration continues (Voiceover style):
"एक बार, बीजापुर की एक परी ने गरुड़ वंश के एक युवक से प्रेम कर लिया...
उसके प्रेम में, उसने अपने पंख त्याग दिए... अपनी पहचान खो दी...
लेकिन वो प्रेम धोखा बन गया...
वो उसे गरुड़ लोक ले गया... और बंधक बना लिया गया..."

उस गलती की सज़ा बीजापुर को शाप के रूप में मिली —
"अब इस वंश में कभी कोई स्त्री जन्म नहीं लेगी..."

सदियों बाद...

महाराज अग्रेण की संतान बनी एक लड़की — प्रणाली।


---

[बीजापुर महल का दृश्य]

प्रणाली बाग में अपनी दासियों के साथ घूम रही है, तभी एक छाया पेड़ से कूदती है...

प्रणाली (डर के मारे चिल्लाती है):
"हे देवी माँ!!"

(फिर जैसे ही वो चेहरा देखती है, उसकी सांसें थम जाती हैं...)

प्रणाली:
"अविराज...? तुम...? आज...? कल तो आना था ना?"

अविराज (हंसते हुए):
"आना तो कल था, पर सोचा...
अपनी होने वाली रानी से एक दिन पहले मिल लूं!"

प्रणाली (नकली गुस्से से):
"बहुत बहादुर हो ना तुम...?
अगर तुम्हारे पिता को पता चला कि राज्य अभिषेक से पहले तुम पराई स्त्री से मिलने आए हो..."

अविराज (रुक कर, गंभीर होकर):
"खबरदार प्रणाली...
पराई कहकर खुद को मुझसे दूर मत कर...
मेरे दिल, मेरी सांसों, और मेरी रगों में सिर्फ एक ही नाम है—
प्रणाली... प्रणाली... प्रणाली!"

प्रणाली (हंसते हुए):
"ठीक है फिर... पहले मुझे पकड़ के तो दिखाओ!"

(दोनो भागने लगते हैं, खेलते हुए...)

अविराज उसे पीछे से पकड़ लेता है, और उसे प्यार से गले लगा लेता है...)

प्रणाली (शरारत से):
"अरे! वो देखो मेरी दासी आ गई! अब तो तुम्हारे पिताजी को पता चल जाएगा!"

अविराज (डरते हुए):
"क्या!? कहां!?"

प्रणाली जोर से हँसने लगती है:
"वाह! क्या बहादुरी है!"

अविराज (उसे निहारते हुए):
"तुम... बस तुम..."

प्रणाली (धीरे से):
"अब जाओ... तुम्हारा अभिषेक है अगले हफ्ते..."

अविराज (मुस्कराते हुए):
"जाऊंगा... पर लौटूंगा भी। और इस बार... तुम्हें जीत कर ले जाऊंगा।"


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[उधर प्रणाली महल में जाती है और देखती है सब तैयारियां हो रही हैं]

प्रणाली:
"मां...? ये सब क्या हो रहा है?"

मालविका:
"पुत्री... ये तुम्हारे स्वयंवर की तैयारियां हैं..."

प्रणाली (हैरान होकर):
"क्या...? स्वयंवर...?
मैं तो अभी 20 की भी नहीं हुई मां... इतनी जल्दी...?"

मालविका (धीरे से):
"हर काम का अपना समय होता है पुत्री... और ये समय अब है।"


---

[उसी समय सीकर पुर महल — अविराज घोड़े से उतरता है]

राजा माहेन्:
"तुम समय पर आए हो पुत्र... तुम्हें एक काम करना है…"

(वो प्रणाली के स्वयंवर का निमंत्रण दिखाते हैं)

अविराज (गुस्से में आगबबूला होकर):
"क्या...? महाराज अग्रेण को पता है कि मैं प्रणाली से विवाह करना चाहता हूं... फिर भी ये स्वयंवर...?
ये अपमान है... या युद्ध का आमंत्रण...?"


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[Back to Present — मेघा की आवाज]

मेघा:
"रात्रि...? तू यहां...? चल भीतर चल, तुझे आराम करना चाहिए।"

रात्रि:
"मां... ये एवी है..."

मेघा (मुस्कराकर):
"मैं जानती हूं बेटा... शुक्रिया। अब तुम भी आराम करो।"

(मेघा रात्रि को लेकर अंदर चली जाती है)


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[दूसरी तरफ — अगस्त्य]

अगस्त्य फोन पर गुस्से में चिल्लाता है:
"What do you mean tickets available नहीं हैं!?
मुझे कल ही अमेरिका निकलना है... टिकट्स अरेंज करो!!"

(फोन पटक देता है)

अगस्त्य (टूटे स्वर में):
"Why always me...? क्या ये इतना आसान था तुम्हारे लिए रात्रि...?
I hate you...
I hate you Ratri Mittal!
मैं जा रहा हूँ... हमेशा के लिए...!"


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