Ishq aur Ashq - 14 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 14

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इश्क और अश्क - 14

रात्रि (नींद में बड़बड़ाते हुए): "अव... वी... वी... अविराज..."

ये नाम सुनते ही अगस्त्य के चेहरे पर जैसे तूफान थम गया, और दिल का दरवाज़ा टूट गया।

उसके हाथ से रात्रि का हाथ छूट गया। उसके लब काँपने लगे...

अगस्त्य (आहिस्ता, टूटे स्वर में): "अविराज...?"

उसने रात्रि के माथे पर हाथ फेरा, उसकी उंगलियों में कंपन था, और आँखों में बेबसी।

"मैं तुम्हें तुम्हारी पुरानी यादों से दूर रखना चाहता था... लेकिन तुम उसी में उलझती जा रही हो... ऐसा मत करो रात्रि।"

"एक बेहतर कल तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है... भूल जाओ अपने बीते हुए कल को... और... मुझे भी।"

इतना कहकर अगस्त्य मुड़ा... और उसके हर कदम के साथ जैसे रात्रि की साँसें भारी होती चली गईं।


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मेघा का मातृत्व चीख उठा

मेघा (रोते हुए, कांपती आवाज़ में): "हमें उस पंडित की बात मान लेनी चाहिए थी... मैं अपनी बेटी को खो नहीं सकती परेश... आप कुछ कीजिए!"

एवी, जो ये सब सुन चुका था, चौंक पड़ा।

एवी: "कौन-सी बात आंटी...? कौन-से पंडित...?"

अर्जुन (गुस्से से): "तुझसे मतलब नहीं... ये हमारी फैमिली मैटर है!"

तभी एक डॉक्टर आता है और अर्जुन को बुला ले जाता है।

एवी अब भी वहीं ठहरा है — उसकी आँखों में बेचैनी, और आवाज़ में मिन्नत:

"आंटी... प्लीज़ बताइए... शायद मैं उसकी मदद कर सकूं। यकीन मानिए — अगर कोई रात्रि की अधूरी कहानी को पूरा कर सकता है, तो वो मैं हूं।"

मेघा और परेश — दोनों स्तब्ध।

मेघा (हकबकाई): "तुम...? कैसे?"

एवी: "क्योंकि मैं भी उसी अधूरी कहानी का हिस्सा हूं... जिसे रात्रि जन्मों से पूरा करने की कोशिश कर रही है।"

परेश और मेघा: "क्या!!!"

एवी: "प्लीज़ बताइए — वो कौन था? उस पंडित ने क्या कहा था?"


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मेघा की आंखों से बीते वर्षों की धुंध उतरती है

मेघा (धीमे स्वर में):
"बचपन से ही रात्रि अजीब सपनों से परेशान थी... डॉक्टर, पंडित, वैद्य — सब करके देख लिया।
फिर किसी ने ‘ऊँचे पहाड़ वाले बाबा’ का ज़िक्र किया...
वहाँ पहुंचे तो उन्होंने कहा — रात्रि का पिछला जन्म उसे जकड़े हुए है...
छुटकारा पाने के लिए... उसे अपने हाथों की चूड़ियाँ, पुराने कपड़े...
किसी विशेष जगह दफ़नाने होंगे — ताकि वो मुक्त हो जाए…
पर तब... वो इस जन्म के सारे रिश्ते भी भूल जाएगी..."

"इसलिए हमने नहीं किया। हमें उसके पिछले जन्म की मौत की जगह भी नहीं पता थी।"

एवी (धीमे पर भारी स्वर में):
"मुझे पता है... कहां मरी थी वो।"

परेश (हैरान): "तुम्हें कैसे...?"

तभी अनुज वापस आता है। एवी जल्दी से मेघा से कहता है:

"उसे मत बताइए। मैं वादा करता हूं — आपकी बेटी को कुछ नहीं होने दूंगा।"


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चमत्कार का क्षण

रात्रि के कमरे से अचानक एक नर्स भागते हुए बाहर आई:

"पेशेंट को होश आ गया... डॉक्टर साब... पेशेंट को होश आ गया!"

सब लोग अंदर की ओर भागे।

रात्रि — नींद से लड़ती हुई — धीरे-धीरे आँखें खोल रही थी। होंठ बड़बड़ा रहे थे, चेहरा पसीने में डूबा हुआ।

मेघा चारों ओर देखती है — एवी गायब है। उसके मन में शक की लहर उठती है...

पर इस वक़्त सवालों से ज़्यादा ज़रूरी था — रात्रि का ज़िंदा होना।


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Funny Emotional Relief

अनुज: "डॉक्टर, क्या रिपोर्ट है?"

डॉक्टर: "ये केस बेहद अलग था — अचानक कोमा, और फिर अचानक होश।
पर अब सब नॉर्मल है — हार्टरेट, पल्स, ऑक्सीजन... आप खुद देख सकते हैं।"

अनुज (रात्रि की ओर जाते हुए, मजाक में): "इतनी देर तक कौन सोता है! तू इंसान है या कुंभकरण?"

रात्रि (धीरे से मुस्कुरा कर): "पापा... भाई को डांटो।"

परेश (शिकायती अंदाज़ में): "ओए... खबरदार जो मेरी बेटी को कुछ कहा तो!"

सब हंसने लगे — और हँसी की गर्माहट पूरे कमरे में फैल गई।


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रात्रि का भाग जाना – एक cinematic chase

रात्रि अब अकेली है... लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर।

जैसे ही मेघा की आंख लगती है... रात्रि मशीनें हटाती है और चुपचाप बाहर निकल जाती है।

वो पूरे हॉस्पिटल में किसी को खोज रही है — कमरों में, गलियारों में, छतों तक।

रात्रि (घबराई आवाज़ में): "कहाँ हो तुम...? मुझे पता है वो तुम ही थे... कहाँ हो?"

घूमते-घूमते जब वो गिरने वाली होती है, तभी किसी ने उसे थाम लिया...

मजबूत बाजुओं में, जाना-पहचाना एहसास... उसकी आँखें उस चेहरे को खोज रही हैं।

रात्रि (धीमी आवाज़ में): "तुम..."

हाँ — वो अगस्त्य था।

अगस्त्य (काँपती मुस्कान में): "क्या तुम ठीक हो...? ऐसी हालत में यहाँ कैसे आई?"

रात्रि: "मुझे... माफ करना। मैं जल्दी में हूँ... मुझे किसी को ढूँढना है।"

अगस्त्य (रोकते हुए): "पर किसे...?"

रात्रि कुछ कहे बिना भाग गई।


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फाइनली — मिलन या विनाश?

रात्रि भागते-भागते उस जगह पहुँचती है... और रुक जाती है।

सामने खड़ा एक शख्स... शांत, गहरे नज़रें...

रात्रि: "मैंने पहचान लिया तुम्हें...
मैंने तुम्हें ढूँढ लिया!"

वो दौड़कर जाकर उससे लिपट गई।

वो शख्स: "तुम्हें याद आ गया...? बहुत टाइम लगा दिया रानी...!"

पीछे खड़ा अगस्त्य... ये दृश्य देखता रह गया...

उसके कदम वहीं जम गए...

उसके हाथ से मोबाइल गिर पड़ा... उसकी आंखों से सैलाब बह निकला।

वो पलटा और बोला:
"यही तो चाहता था मैं... कि वो मुझसे दूर चली जाए...
तो अब ये आंसू क्यों बह रहे हैं...?"

वो टूटे दिल से चला गया — पर कहानी अब सिर्फ उसकी नहीं रही थी...