"बरसों बाद तुम..." का एपिसोड 1 — एक इमोशनल और रोमांटिक शुरुआत, जो धीरे-धीरे दिल में उतरती है।
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🖋️ एपिसोड 1: "पहचान जो अधूरी रह गई..."
> "कुछ मुलाक़ातें अधूरी होती हैं…
और कुछ अधूरापन ही पहचान बन जाता है।"
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दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी।
हर कोई अपनी मंज़िल की तरफ भाग रहा था। गाड़ियों की आवाज़ें, चायवालों की पुकार, और बैग घसीटते हुए लोग — मानो हर चेहरा किसी कहानी का हिस्सा हो।
रेहाना, 26 साल की, एक सादी सी लड़की — आँखों में गहराई और चेहरे पर सुकून। वो प्लेटफॉर्म नंबर 5 पर खड़ी, ट्रेन का इंतज़ार कर रही थी। सफर छोटा नहीं था, लेकिन उससे भी ज़्यादा मुश्किल थी वो यादें जो इस सफर में साथ चल रही थीं।
रेहाना की उंगलियों में एक पुरानी रेशमी रुमाल था — हल्का सा फटा हुआ, लेकिन उसमें अब भी वही पुरानी खुशबू थी — "उसकी..."
> "सात साल हो गए," उसने बुदबुदाया,
"लेकिन उस आख़िरी मुलाक़ात की तस्वीर अब भी वैसी ही है।"
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फ्लैशबैक — 7 साल पहले
कोलकाता यूनिवर्सिटी — लाइब्रेरी हॉल
वो पहली मुलाकात थी — आरव और रेहाना की।
आरव — बेपरवाह, बिंदास, थोड़ा सा घमंडी और बहुत ज़्यादा होशियार।
रेहाना — शांत, किताबों से प्यार करने वाली, सीधी-सादी।
दोनों एक ही टेबल पर बैठे थे, पर दुनिया अलग थी।
आरव म्यूजिक सुनते हुए नोट्स लिख रहा था, और रेहाना पूरे फोकस में किताब पढ़ रही थी।
"Excuse me..."
रेहाना ने धीरे से कहा।
"Can you please lower the volume? ये लाइब्रेरी है।"
आरव ने देखा — बड़ी बड़ी आँखें, हल्के से चूड़ीदार कपड़े, और एक सख्त लहजा।
> "Oh hello, मिस गांधी जी,"
"थोड़ा बहुत म्यूजिक भी ज़रूरी होता है पढ़ाई में।"
फिर उसने धीमी कर दी — पर मुस्कुरा कर।
वो पहली तकरार थी — और वहीं से शुरू हुआ था एक अनकहा रिश्ता।
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आज
रेहाना की ट्रेन आ चुकी थी — पुणे एक्सप्रेस।
वो चुपचाप डिब्बे में चढ़ी और खिड़की वाली सीट पर बैठ गई। बाहर बारिश की हल्की बूँदें गिरने लगीं।
बारिश उसे हमेशा वही दिन याद दिलाती थी — जब आरव पहली बार भीगा था उसके लिए।
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फ्लैशबैक – कॉलेज कैंपस
बारिश में सब भाग रहे थे, और रेहाना अपनी किताबें बचाने की कोशिश कर रही थी।
आरव ने दूर से देखा और दौड़ पड़ा।
"पगली! भीग जाएगी!"
उसने अपना जैकेट निकाला और रेहाना के ऊपर डाल दिया।
> "क्यूँ किया ये?" रेहाना ने पूछा,
"तुम खुद भीग गए..."
"क्योंकि तू भीग जाती, तो तुझसे ज्यादा किताबें रोतीं..."
फिर दोनों हँस पड़े।
वो हँसी आज भी उसके दिल में थी — गूंजती हुई।
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आज — ट्रेन में
रेहाना खिड़की से बाहर देख रही थी — उसके चेहरे पर एक शांत उदासी थी।
उसे नहीं पता था कि पुणे में जो कॉन्फ्रेंस है, वहां उसकी ज़िंदगी फिर से करवट लेगी।
उसे नहीं पता था कि जिस नाम से वो सात साल से दूर थी, वो अब फिर से उसकी किस्मत में दस्तक देने वाला है।
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Scene Cut — पुणे, उसी वक्त
एक ऑफिस — बड़ी बिल्डिंग, शानदार इंटीरियर्स
एक व्यक्ति लैपटॉप पर कुछ टाइप कर रहा था — उसकी उंगलियों में वही रेशमी रुमाल था, जो रेहाना के पास भी था — बस यह वाला थोड़ा और फटा हुआ था।
वो आरव था।
अब वो एक सक्सेसफुल आर्किटेक्ट था — शहर का जाना-पहचाना नाम।
लेकिन दिल में अब भी अधूरा था — खाली।
उसने खिड़की से बाहर देखा — और मना जाने किस अहसास में बुदबुदाया:
> "अगर कभी मिल गई न तू… तो सिर्फ देखूंगा…
न गिला करूँगा… न शिकवा… बस देखूंगा…"
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एपिसोड एंड लाइन:
> "कभी-कभी हम आगे बढ़ तो जाते हैं…
पर कुछ एहसास वहीं ठहर जाते हैं —
सात साल पहले की लाइब्रेरी की उसी सीट पर…"
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✅ अगला एपिसोड (Episode 2):
"सामना — बरसों बाद..."
> जब रेहाना और आरव पहली बार फिर आमने-सामने आते हैं… क्या वो एक-दूसरे को पहचान पाएंगे?
🔔 मैं आपको कल इसका अगला एपिसोड दूँगा।
लेखक - नीतू सुथार