🖋️ एपिसोड 2: “सामना — बरसों बाद”
"कुछ रिश्ते अल्फ़ाज़ नहीं, आँखों से बयान होते हैं…
और कुछ मुलाक़ातें… बस चुपचाप सब कह जाती हैं।"
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स्थान: पुणे – एक आलीशान कॉन्फ्रेंस हॉल
घड़ी की सुइयाँ शाम के पाँच बजा रही थीं। कॉन्फ्रेंस का पहला दिन खत्म हो चुका था।
रेहाना थोड़ी थकी हुई थी लेकिन मन ही मन कुछ बेचैन। जैसे कुछ होने वाला हो…
वो हॉल के बाहर खड़ी थी — हल्की बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी।
उसने अपना दुपट्टा सिर पर ओढ़ा और मोबाइल पर कैब बुक करने लगी।
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उसी समय —
एक काली SUV गेट पर आकर रुकी।
दरवाज़ा खुला और आरव बाहर निकला — काले कोट में, छाता हाथ में, आँखों में वही पुरानी गहराई लेकिन अब कुछ और ठंडी, कुछ और ठहरी हुई।
> उसने हॉल की तरफ नज़र डाली…
और उसकी आँखें… वहीं रुक गईं।
रेहाना।
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एक सेकंड… दो सेकंड…
दोनों की नज़रें मिलीं।
दोनों के शरीर जमे रहे, जैसे वक्त वहीँ रुक गया हो।
7 साल…
2555 दिन…
इतने सालों का हिसाब एक पल में उनकी आँखों ने कर लिया।
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रेहाना की नज़रें काँप रही थीं…
वो उसे पहचान गई थी।
चेहरा वही था — बस अब ज़्यादा समझदार, ज़्यादा शांत, लेकिन आँखें… अब भी वैसी ही बोलती हुई।
> वो सोच रही थी:
“क्या करूँ? कुछ कहूँ? या चुपचाप निकल जाऊं…?”
लेकिन शरीर उसकी नहीं सुन रहा था।
वो बस खड़ी रही… छाता अब भी हाथ में था, लेकिन बारिश से भीग रही थी।
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आरव आगे बढ़ा।
धीरे-धीरे… कदम दर कदम…
दोनों के बीच अब सिर्फ कुछ मीटर का फासला था, लेकिन दिलों के बीच तो पूरा एक युग बीत चुका था।
> “हाय…”
आरव की आवाज़ बहुत धीमी थी, लेकिन उसमें कम्पन था — भावनाओं का।
रेहाना ने हल्की सी मुस्कान दी, जो अधूरी थी।
उसने कुछ बोलना चाहा, लेकिन गले में जैसे कुछ अटक गया।
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कुछ देर चुप्पी…
> आरव ने कहा:
“काफी साल हो गए… तुम्हें देखकर अच्छा लगा।”
रेहाना ने बस गर्दन हिलाई — हाँ में।
> “तुम अब भी वैसी ही हो…”
“...बस शायद थोड़ी ज़्यादा ख़ामोश।”
रेहाना ने जवाब दिया:
> “वक़्त चुप कर देता है आरव… और कुछ सवाल जवाब माँगते नहीं, सिर्फ निगाहों से गिरा देते हैं।”
उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन चुभने वाली।
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फिज़ा में बारिश की आवाज़ थी… और उनके बीच सन्नाटा।
आरव की उंगलियाँ उस पुराने रेशमी रुमाल को मरोड़ रही थीं — वही रुमाल जो कभी रेहाना ने उसे लाइब्रेरी में दिया था जब उसके हाथ में चोट लगी थी।
> “अब कहाँ जा रही हो?” आरव ने पूछा।
> “जहाँ कोई सवाल न हों…”
“जहाँ बारिश सिर्फ़ भीगाए, रुलाए नहीं।”
वो मुड़ी और चल दी।
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पीछे खड़ा आरव बस देखता रह गया।
उसकी आँखें कुछ कह रहीं थीं…
लेकिन लब अब भी खामोश थे।
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Scene Shift — रात को, रेहाना का होटल रूम
रेहाना शीशे के सामने खड़ी थी — बाल भीगे हुए, आंखें लाल।
उसने बैग से वो पुराना रुमाल निकाला…
जिसमें अब भी वही हल्की सी महक थी — जैसे किसी पुराने खत की खुशबू…
> उसने धीरे से कहा:
“तुमने पूछा नहीं कि मैं कैसी हूँ…
और मैंने बताया नहीं कि मैं अब भी वही हूँ… तुम्हारी…”
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Scene Shift — अगली सुबह, कॉन्फ्रेंस हॉल
Event शुरू हो चुका था।
आरव मंच पर था — Architect’s keynote speaker बनकर।
वो माइक के सामने खड़ा था — पर उसकी नजरें दर्शकों में रेहाना को तलाश रही थीं…
लेकिन वो नज़र नहीं आई।
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एपिसोड की आख़िरी लाइन:
> "कुछ मुलाक़ातें सवाल नहीं पूछतीं…
लेकिन दिल के अंदर कई जवाब जगा देती हैं..."
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🔔 Episode 3 Preview:
"दिल की बात..."
जब आरव अपने दिल की बात एक डायरी में लिखता है — क्या वो उसे कभी देगा?
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