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🖋️ एपिसोड 3: “दिल की बात...”
> “कुछ बातें कहने की नहीं होतीं...
बस लिखी जाती हैं, किसी के लिए — जो कभी पढ़े... या फिर कभी नहीं।”
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स्थान: पुणे — सुबह की हल्की ठंडी धूप
कॉन्फ्रेंस हॉल की खिड़कियों से हल्की रोशनी छन रही थी।
बाहर चाय की दुकान पर भाप उड़ती कटिंग चाय, और अंदर हॉल में कॉफी की मशीनें गरम गरम बातों में लगी थीं।
लेकिन एक कोना... आज भी चुप था।
रेहाना आज नहीं आई थी।
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आरव बार-बार इधर-उधर देख रहा था।
वो स्टेज पर बैठा था — सामने दर्जनों चेहरे, लेकिन उसकी निगाहें किसी एक को खोज रही थीं।
रेहाना...
उसने धीमे से डायरी निकाली — एक पुरानी, चमड़े की बंधी हुई डायरी।
उसमें पन्ने भरे हुए थे… लेकिन जो पन्ना आज उसने खोला, वो खाली था।
> और फिर उसने लिखा:
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✍️ (डायरी एंट्री)
“तुम आई थीं…
और लगा कि जैसे सब रुक गया।
वो सात साल, सात सेकंड से ज़्यादा नहीं लगे।”
“तुमने कुछ नहीं पूछा — और मैं कुछ कह न सका।
लेकिन तुम्हें देखकर लगा कि तुम अब भी मेरी अधूरी कहानी की आख़िरी लाइन हो।”
“काश… तुम इस पन्ने को कभी पढ़ सको।
क्योंकि अब मैं कह नहीं सकता… लेकिन लिख सकता हूँ।”
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दूसरी ओर — रेहाना का होटल रूम
वो खामोश बैठी थी — लैपटॉप सामने खुला था लेकिन आंखें कहीं और थीं।
ब्राउज़र में लिखा था:
“Train Ticket: Pune to Delhi – Today, 6:45 PM”
> “अब और कुछ नहीं बचा,” उसने खुद से कहा,
“उसे देखा, जाना… और अब चला जाना ही ठीक है।”
पर दिल की ज़िद… वो कब मानता है?
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Scene Shift — शाम 6 बजे, स्टेशन
रेहाना अपनी ट्रेन के लिए प्लेटफॉर्म पर खड़ी थी।
चारों ओर भागदौड़, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी शांति — या शायद टूटन।
एक हाथ में वो पुराना रुमाल था — और एक दिल में अधूरा एहसास।
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ठीक उसी वक़्त — स्टेशन के बाहर एक बाइक रुकी।
आरव उतरा — जल्दी-जल्दी भागते हुए अंदर आया।
उसके हाथ में वही डायरी थी — उस पन्ने के साथ जो उसने आज लिखा था।
> “प्लीज़ टाइम पर पहुँच जाऊँ…”
“कम से कम आज... एक बार और मिल जाऊं…”
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घड़ी — 6:39 PM
रेहाना अपनी सीट पर बैठ चुकी थी।
उसने खिड़की से बाहर देखा — और वहीं... भागते हुए एक चेहरा नजर आया…
आरव।
उसकी सांसें थमीं।
वो सचमुच आया था।
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आरव दौड़कर खिड़की तक पहुँचा।
> “रेहाना!”
“एक बार बस मेरी बात सुन लो .... ।। "
" प्लीज रेहाना बस एक बार और सुन लो....।। "
" रेहाना के चेहरे पर आंसू थे — वो चुप रही। "
> “मैंने कुछ नहीं कहा…
पर सब कुछ लिखा है।”
(उसने डायरी का पन्ना आगे किया)
रेहाना ने धीरे से वो पन्ना थाम लिया।
और ट्रेन चल पड़ी…
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धीरे-धीरे स्टेशन पीछे छूट गया।
आरव वहीं खड़ा था — हाथ में खाली डायरी, और दिल में भरी उम्मीद।
रेहाना खिड़की से बाहर देख रही थी — हाथ में वो पन्ना…
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✨ पन्ने पर आख़िरी लाइन:
> “अगर तुमने ये पढ़ा,
तो जान लेना...
मैं अब भी वहीं हूँ —
उसी बारिश, उसी लाइब्रेरी, उसी रुमाल के साथ।”
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💔 " एपिसोड एंड लाइन: "
> "कुछ मुलाक़ातें आख़िरी नहीं होतीं...
बस थोड़ी देर के लिए रुक जाती हैं..."
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🔔 Episode 4 Preview:
"वो पन्ना जो दिल को छू गया..."
* जब रेहाना ट्रेन में बैठी अकेले वो शब्द पढ़ती है — क्या वो लौटने का फैसला करेगी?
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लेखक - नीतू सुथार