प्यार: डर या उम्मीद?
लाइब्रेरी में एक पल के लिए खामोशी छा गई। बाहर से आती हल्की हवा के झोंके किताबों के पन्ने हिला रहे थे, जैसे वो भी इस बातचीत का हिस्सा बनना चाहते हों। समीरा किताब को थामे गहरी सोच में डूबी थी, जबकि रिया उसे ध्यान से देख रही थी।
"तो?" रिया ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी। "क्या तुम हमेशा के लिए प्यार से भागने वाली हो?"
समीरा ने धीरे से सिर उठाया, उसकी आँखों में एक अनकहा सवाल था। "मुझे नहीं पता, रिया। लेकिन जब प्यार इतना तकलीफ़ दे सकता है, तो मैं उसे अपनी ज़िंदगी में आने ही क्यों दूँ?"
रिया मुस्कराई, "तो क्या यह सही होगा कि एक बुरी कहानी की वजह से तुम बाकी सारी संभावनाओं को भी ठुकरा दो?"
समीरा ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसके अंदर एक जंग चल रही थी—दिल और दिमाग़ की।
एक नई कहानी का जन्म
तभी लाइब्रेरी के कोने में हलचल हुई। किसी ने ज़ोर से दरवाज़ा खोला, और कुछ किताबें गिरने की आवाज़ आई। दोनों ने चौंककर उस तरफ़ देखा।
"सॉरी, सॉरी!" एक लड़का हड़बड़ाते हुए किताबें समेट रहा था।
रिया ने समीरा की तरफ़ देखा और शरारती अंदाज़ में फुसफुसाई, "देखो, ज़िंदगी अपनी कहानियाँ खुद लिखती है। शायद तुम्हारे लिए भी कोई चैप्टर खुलने वाला है।"
समीरा ने उसे घूरा, "रिया, प्लीज़! हर किसी से प्यार जोड़ना बंद करो।"
रिया ने हँसते हुए कहा, "अच्छा बाबा, नहीं जोड़ूँगी। लेकिन मानो या ना मानो, ज़िंदगी हमें हमेशा संकेत देती रहती है। हमें बस उन्हें देखना आना चाहिए।"
अतीत के जख़्म और नए रिश्ते
लड़का अब तक किताबें समेट चुका था और एक किताब को उलट-पलटकर देख रहा था। अचानक उसने समीरा की ओर देखा, "माफ़ करना, यह तुम्हारी किताब तो नहीं?"
समीरा ने किताब पर नज़र डाली। यह वही किताब थी जिसे वो कुछ देर पहले पढ़ रही थी, लेकिन जब रिया आई, तो उसने उसे टेबल पर रख दिया था।
"हाँ, यह मेरी ही है," उसने संक्षिप्त जवाब दिया।
लड़के ने किताब उसकी ओर बढ़ाई और मुस्कान के साथ कहा, "अच्छी पसंद है।"
रिया ने समीरा की ओर देखा और धीमे से कहा, "अच्छी पसंद... सुना तुमने?"
समीरा ने नज़रें चुराते हुए किताब ली और बस हल्का-सा सिर हिला दिया।
प्यार: भरोसा या छलावा?
लड़का चला गया, लेकिन समीरा के दिल में एक अजीब-सी हलचल छोड़ गया। क्या सच में हर इंसान एक जैसा होता है? क्या प्यार का मतलब सिर्फ़ दर्द ही होता है?
रिया ने समीरा की उलझन भांप ली और मुस्कराते हुए कहा, "देखो, मैं यह नहीं कह रही कि तुम अभी किसी के प्यार में पड़ जाओ। लेकिन कम से कम खुद को प्यार से पूरी तरह दूर मत करो। हर कहानी का एक अलग अंत होता है, और तुम्हारी कहानी अभी शुरू भी नहीं हुई है।"
समीरा ने गहरी सांस ली और किताब को कसकर पकड़ा। शायद रिया सही कह रही थी। शायद प्यार सिर्फ़ एक छलावा नहीं, बल्कि उम्मीद भी हो सकता है।
ऑफिस के केबिन में दानिश का जुनून
हल्की धूप ऑफिस की खिड़की से छनकर अंदर आ रही थी। पूरे ऑफिस में एक शांत माहौल था, केवल कीबोर्ड पर उंगलियों की टक-टक और फोन की हल्की रिंग सुनाई दे रही थी। मगर दानिश के केबिन के अंदर एक अलग ही माहौल था।
टेबल पर उसका लैपटॉप खुला था, स्क्रीन पर समीरा की तस्वीर चमक रही थी। समीरा की हल्की मुस्कान, उसकी चमकती आँखें और चेहरे की मासूमियत ने दानिश को एक अजीब सी दुनिया में पहुँचा दिया था। उसने स्क्रीन की ओर झुकते हुए धीरे से कहा, "तुम सिर्फ मेरी हो..."
उसकी आवाज़ में एक अजीब सा जूनून था, जैसे यह कोई साधारण शब्द नहीं बल्कि एक कसम थी, एक दावा था। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे स्क्रीन के किनारे को छू रही थीं, मानो वह समीरा के चेहरे को महसूस कर रहा हो। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी, साँसें गहरी होती जा रही थीं।
"कोई तुम्हें मुझसे दूर नहीं कर सकता," उसने फुसफुसाते हुए कहा।
उसकी आँखें जल रही थीं, एक अलग ही पागलपन झलक रहा था उनमें। समीरा सिर्फ एक तस्वीर थी अभी उसके सामने, मगर दानिश के लिए वह तस्वीर नहीं थी – वह एक अहसास थी, एक चाहत थी, एक ज़िद थी।
वह कुर्सी से उठकर केबिन में टहलने लगा, उसके दिमाग में केवल एक ही बात घूम रही थी – समीरा सिर्फ मेरी है, और किसी की नहीं हो सकती।
उसे याद आया जब पहली बार उसने समीरा को देखा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी मासूमियत थी। तभी से दानिश के दिल में एक हलचल मच गई थी। उसने खुद से कहा था कि यह लड़की उसकी है, हमेशा के लिए।
उसने समीरा के साथ बिताए हर पल को याद किया – उसकी हल्की मुस्कान जो दानिश को दिनभर बेचैन कर देती, उसकी बातें जो कानों में मधुर संगीत की तरह गूंजती रहतीं। मगर यह सब काफी नहीं था। वह उसे पूरी तरह चाहता था – सिर्फ अपने लिए।
उसने फिर से स्क्रीन की ओर देखा, उसकी आँखों में लाल डोरे उभर आए थे। उसने गहरी सांस ली और कुर्सी पर वापस बैठ गया।
"समीरा, तुम जानती भी नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ," उसने धीरे से कहा।
उसका मन अशांत हो उठा। क्या समीरा भी उसे उसी तरह चाहती थी? या फिर वह किसी और के बारे में सोच रही थी? यह सोचकर उसके भीतर एक अजीब सी आग भड़क उठी।
उसने अपना फोन उठाया और समीरा का नंबर देखा। उंगलियाँ कॉल बटन पर जाने को बेताब थीं, मगर उसने खुद को रोका। नहीं, अभी नहीं। वह समय आएगा जब समीरा खुद उसके पास आएगी, जब वह खुद कहेगी – "दानिश, मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ।"
उसका जुनून अब पागलपन की हद तक बढ़ता जा रहा था। उसे समीरा के बिना कुछ भी अधूरा लगता था। वह हर हाल में उसे पाना चाहता था, किसी भी कीमत पर।
"तुम मेरी हो, समीरा... और हमेशा मेरी ही रहोगी," उसने ठंडे लहजे में कहा।
उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जुनून की, मोहब्बत की, और एक ऐसे इरादे की जिसे वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था।