Kaal Kothri - 6 in Hindi Horror Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काल कोठरी - 6

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काल कोठरी - 6

(6)------------ काल कोठरी।

                              कोई चीज सननीखेज नहीं होती, ज़ब तक प्रकिति नहीं चाहती। ये दीपक मान गया था। कि

अश्क़ आँखो मे भरे हो ये तभी किसी को दिखेंगे ज़ब कोई गम या मुस्कराहट इसका कारण बने गे ?

आज दूध वाला थोड़ा लेट था। इस लिए टहलते टहलते वो फ्लैट से अख़बार और दूध का एक लीटर अमूल का ले आया था। मौसम सुहावना था।

दीपक चेयर पे बैठा बालकोनी मे न्यूज़ पढ़ रहा था।

जिंदगी इतनी सुवाविक गुज़र बसर हो रही थी। ये दीपक रोजा और बच्चो मे ही रह कर पता चलता है।

पता नहीं वो मोबाइल को देख लेता फिर चिड़ कर आखें बंद कर लेता था। सोचता था :- ये किस बे आराम व्यक्ति ने इसका अविष्कार किया, जो मौत से भी बहुत गरक जैसी हालत कर देंता है। लैंडलाइन फोन कितना अच्छा था। घर हो तो सुनो, नहीं तो मौज ही मौज। मोबाइल तो बे आरामी के सिवा कुछ नहीं देता। परमाणु है या मोबाइल एक ही है। मोबाइल आदमी की जड़ खराब करे, परमाणु धरती से नामों निशान मिटा दें।

आज चौथा दिन था।

सोच रहा था, मेरे साथ ही ये सब कयो हुआ ?फिर खुद ही उत्तर दिया ----" परमात्मा ने सब काम अच्छे से करने होते है।

बालकोनी मे रोजा आयी ----" हाजी कल काफ़ी लेट हो गए। "

"हाँ काफ़ी लेट " दीपक ने काफ़ी का कप हाथ मे पकड़ते कहा।

" सब ठीक है न " दीपक ने कहा था -----" हाँ बिलकुल रोजा। "

उसने फिर रोजा से पूछा ---" कचन कल कया फोन पे बता रही थी, उसे मेरी तरफ से सलाह देना, कि खुद भी पैसा कमा कर देखे, अमीर बिगड़ैल औलाद। "

रोजा चुप ही थी उसने कहा ----" मुझे कोई इटरस्ट नहीं है, फालतू के किसी झमेले मे पड़ने का ----"

फिर चुप पसर गयी। घड़ी पर 10 का समय था। क्लॉक की घड़ी टिक टिक का शौर करती जैसे संदेह भरा वाक्य बता रही हो।

आज पाँचवा दिन हो चूका था।

कुर्ते और पजामे मे ही वोह टेक्सी स्टेड की और निकल पड़ा था। साथ थे भजन माला... चल रहा भजन "कृष्णा अरे गोपाला तेरा मुस्काना गजब हो गया।"

काफ़ी माजूस सा था। चितक था। उसके साथ वाले दोस्त ताश की बाजी लगा रहे थे।

                   " दीपक कल वो वर्दी वाले के साथ ----" दीपक हस पड़ा।

"फालतू का पले पड़ गया ----" दीपक ने हसते हुए कहा।

जगमोहन एक दम से बोला -----" तू सच मे भूत देखा --- या बना रहा है ---- पुलिस तो आप यमराज है " फिर से सब हस पड़े।

योगा भी वही था। "दीपक ये पुलिस गिरी मे फ़स मत जाइयो... ये बहुत मुँह के मीठे और फसा लेते है... मेरे चाचा को ऐसा इन्होने  चक्र मे डाला मुड़ के कमखतो ने फसा दिया... जुर्म कोई कर गया, और सिर चचा के पा दिया...." सुन कर दीपक चुप सा हो गया।

" सही कहते हो, फकीर चंद की बात भूल गया तू, कैसे बे कसूर वाले को ही पकड़ लिया... अगर यूनियन न होती तो फिर... उसका कौन था। " दीपक सब की सुन रहा था।

पर करे कया। ये कहे खुद ही घंटी बांध आया हूँ बिल्ले के गले मे.... सुन कर सब गालिया निकाल ते।

" चलो कुछ भी हो जाये, अब भुगतान तो भुगतना ही पड़ेगा। "

एक ग्राहक ने आवाज दी, "लालकिले को जाना है साहब, चलोगे "

"पर दीपक के साथ " योगा ने  कहा " ओह दीपक तेरा पूछता है, चल वही। "

"----पप्लूर हो गया दीपक " जगमोहन ने कहा।

"हाँ ---हमें भेजा है घोसले सर ने --- हम उनके रिश्तेदार है" दीपक ने  सोचते हुए कहा, आज कार खराब हो गयी, तो वैसे दोस्तों के संग ताश खेलने आ गया।

दो मिनट मे आँख फरकते फरकते वो निकल गया।

मूड काफ़ी खराब हो चूका था, दीपक का। मन मे आ रहा था, यकीन का खून कितनी बार हो चूका था।

(चलदा )-------- नीरज शर्मा