काल कोठरी ----------(9)
जिंदगी एक सड़क की तरा है... बस चलते जाओ..चलते जाओ मंज़िले ही है रास्तो मे.... आपना है तो कभी मत ठहरो... कयो वो तुम्हे नजदीकियो से जानता है, करीबी से जानता है। ठहरना है तो अजनबी के पास ठहर जाना।
आपना बना तो फिर उसे भी मत छोड़ देना ---- पता कयो,
वो तुमाहरा कभी बुरा नहीं कर सकता। सोचो कयो --- बस यही बात ज़ब पले पड़े गी, तो वक़्त निकल चूका होगा।
केस घोसले के हाथ से निकल कर सीबीआई को दें दिया गया। हेड ब्राँच बम्बे के इलावा दिल्ली भी थी। घोसले की रिटायमेंट पार्टी --------------
जिसमे हर तरा की शराब थी। दीपक को भी इस पार्टी मे उसकी पत्नी समेत शमिल किया हुआ था।
ये पार्टी कोई तकरीबन एक वजे के करीब रात के खत्म हुई थी। एक पुराना पुलिस मुलाजिम जिसकी नौकरी पूरी हो चुकी के बाद भी पांच साल महकमे मे ही था। उसको छोड़ने के लिए घोसले जी ने कहा था कनाट प्लेस मे, वो मुसाफिर आगे बैठा था। पर सब पुलिस वाले उसको उसकी प्रसनेल्टी को नमस्ते बोलते थे... आज भी वो जवान लगता था। बाड़ी बिल्डर से कम नहीं था। दीपक की वाइफ उससे प्रभावित हुई थी।
उसने आपने आप से कहा था.. चलने से पहले "कितना खुश होगा ये परिवार " पर फिर बातचीत शुरू हुई।
उसने कहा " कया लगते हो तुम घोसले के। "
"सर कुछ नहीं " फिर रुक कर बोला, " सर हम दोस्त कह सकते हो। "
इस बात पर हस पड़ा। " मेरा नाम हेडली है --35 साल के तुजरबे मे आज तक दोस्त पुलिस का.... पहली बार सोच रहा हूँ। " दीपक उसकी बात से खींचा चला गया।
" वो पीता नहीं था ---- जैसे उसने पक्का याराना डाल लिया हो, उस भोले से परिवार से " हेडली चर्च को मानता था, उसकी एक बेटी थी, वाइफ समुद्री जहाज मे पेट की बेहद तकलीफ से मारी गयी। हेडली की दुखदायी आवाज सुन कर दोनों अफ़सोस मे थे। हेडली को लगा, जैसे कोई दिल का रिश्ता हो... इन परिवार से।
दीपक ने आपना नंबर दिया, हेडली ने भी... परिवार को फिर दुपहर को आपने कल घर बुलाया था। दोनों खुश थे। आगे बड़ गए।
कार गैरज मे लगा चुकने के बाद , दोनों फ्लैट मे पहुचे। बेटा सौ चूका था। दोनों ने दूसरे बच्चे के लिए ट्रायल तो करना ही था... आज मदहोश ही कर दिया, उस पार्टी ने, थके हुए करके जल्दी दीपक सौ गया... आज निराश थी ----- रोजा को वो 60साल का कयो याद आ कर, खलबली पा रहा था, कया जादू था उसमे। पता ही नहीं चला था।
वो दीपक से लेट उठी। तभी फोन वजा,
" हेलो, दीपक पानीपत की सवारी है चलेगा.... "
"हाँ कयो नहीं ---- कब। "
उसी टाइम पे दीपक पहुंच चूका था... दो जवान सुंदर मॉडर्न लड़कियां थी ....
"--हेलो----" उसमे एक ने कहा।
" बोले --- आप पानीपत चलेंगे.... " दूसरी ने हाँ मे सिर हिला दिया।
उसकी टी शर्ट मे आज कल लिखा हुआ था। एक आगे दूसरी पीछे बैठ गयी... ये तो मर्जी गाहक की है।
वो चुप सा था। हाई रोड पे गाड़ी तेजी से सब ट्रेफिक को पीछे छोड़ ती जा रही थी।
तभी एक बोली जो पास बैठी थी ----" दीपक एक बात जो तुम जानते हो, उसकी कहानी दुबारा से शरू करो। "
मैडम कौन सी कहानी ---" जो तुमने घटी है "
"सारी मैडम, आप सफर पे निकली है न की रिपोटर बन कर। " दीपक ने एक झटके से कहा।
"कार खड़ी करो। "
"----लो मैडम "
"हम आज कल की रिपोटर है... प्ल्ज़ हमारी मदद करो। "
"कैसी मदद मैडम जी "
"सत्य कहानी है, इसे जान लो " मातृभूमि का मे हार्दिक अविवादन करता हूँ... जिनो ने मुझे इस लाइक बनायेया।
(चलदा )--------------- नीरज शर्मा -----